Bijay Mehta
Hitlar Anurag
ईश्वर एक नाम अनेक

सनातन धर्म में माना जाता है कि ईश्वर एक है लेकिन उसके नाम अनेक हैं। ऋग्वेद के अनुसार ईश्वर एक ही है लेकिन अपने कर्ताभाव के अनुसार वह अलग- अलग नामों से जाने जाते हैं जैसे कि- नाम अनेक सृष्टिकर्ता रूप में ईश्वर को ब्रह्मा कहा जाता है।  * विद्या की देवी को माता सरस्वती के नाम से जाना जाता है।  * सर्वत्र व्याप्त या जगत का पालन करने श्री विष्णु हैं।  * समस्त धन-सम्पत्ति और वैभव की देवी लक्ष्मी हैं।  * रुद्र यानि शिवजी संहारक हैं।  * जिस रूप में ईश्वर समस्त शक्ति को पाते हैं उसे दुर्गा जी कहते हैं।  * सामूहिक बुद्धि का परिचायक गणेश है।  * पराक्रम का भण्डार स्कंद है।  *जिस रूप में ईश्वर आनन्ददाता है, मनोहारी है उसका नाम राम है।  * धरती को शस्य से भरपूर करने वाले ईश्वर का नाम सीता है।  * सबको आकृष्ट करने वाले, अभिभूत करने वाले रूप में उसका नाम कृष्ण है।  * सबको प्रसन्न, सम्पन्न और सफलता दिलाने वाले ईश्वर का नाम राधा है। रूप है एक ईश्वर के चाहे नाम कितने भी हो लेकिन उनका रूप एक ही है। कई जगह हिन्दू धर्म में आदि शक्ति मां दुर्गा को सर्वोपरि माना गया है। वेद पुराणों में इस तथ्य को लिखा भी गया है कि धरती को संभालने वाले त्रिदेव भी दुर्गा जी की आराधना करते हैं।

स्वर्गीय दादी माॅ अनोधन महतो कोइरी

#कहानीः- शीर्षकः- हजूरआमाको बेशर्त प्रेम- हाम्रो सयुक्त परिवारमा दश जना सदस्यहरु थिए। म हजुर आमाको मायाको केन्द्र थिए। आमावुवा र अन्य परिवारको माया कन्डिशनल (सशर्त) थियो भने हजुर आमाको बेशर्त। मैले परिवारलाई राम्रो लाग्ने खालका व्यवहार गरे भने मात्र माया पाउथेँ र यसको विपरीत भयो भने हप्काई दप्काई देखि कुटाई सम्म खान्थेँ। हजुर आमाको माया भने एकतमास बगिरहने नदी जस्तै थियो। मेरो सम्पूर्ण बदमासी गल्ती देखि बाल अपराध सम्म महादेवले कालकुट विष पँचाए झै पचाउनु हुन्थ्यो हजुर आमाले। म तत्काले शिक्षक पेशामा भोजपुरमा छदाँ मिति 2067/09/27 गते बेलुकामा उहाँको देहावसान भएको थियो त्यसपछि अहिले सम्म पनि उहाँको सम्झनाले आँखा रसाउन छोडेन। बिछुड गए बीच राहो मेँ दिल से ना जा पाओगेँ। आँशूओ की धाराओँ मे जीवन भर हमे तडपाओगेँ।। परिवारका अन्य सदस्यहरु सँग समयको अन्तराल सँगसँगै, सोचे जस्तो हुदो रहेन रेछ जीवन, जस्तो भोग्यो उस्तै रेछ जीवन, मेरो वैवाहिक सम्बन्ध मिति 2061/01/25 गतेको रात्री लगनमा म वैवाहिक सुत्रमा बाँधिए....र त्यस पछाडी समय सँगै परिवारका सदस्यहरु सँग मेरो न्यानोपना घटदै थियो, जेनेरेशन ग्याप बढदै थियो भने हजुरआमा माथी यो नियम कहिले लागू भएन। उहाँको र मेरो सम्बन्ध सदाबहार गीत झै अजर भै रहयो। यसपछि क्रमशः गाँउमा धेरै मान्छैहरु बिते तर केवल बेशर्त प्रेम गर्ने मेरी हजुरआमा मात्रै मेरो स्मृति-पटलमा अमर बनिरहनु भयो। आप गये खुशिया गई, मन तो उदास होता रहेगा। आँखो मेँ आँसू दिखे न दिखे हृदय तो रोता रहेगा।। यसरी मरो आध्यात्मिक अनुभवको पहिलो श्रेय मेरी श्रद्धेय प्रातः स्मरणीय हजुर आमामा जान्छ। निश्चित पनि उहाँ लरतरे आइमाई भने हुनुहुन्थ्यो। यस अर्थमा कि उहाँका तीन छोरा मध्ये एकले 21/22 सालमा देहावसान प्राप्त गरेका थिए दोरीकलाल महतो। उहाँ कलिलै उमेरमा देहावसान हुन पुगेकाले हजुर आमालाई ठूलो आघात परिरहेको थियो र लामो समयसम्म रिक्ताको अनुभव बेहोर्नु परेको थियो। उहाँ मलाई भन्ने गर्नु हुन्थ्यो तिम्रो माइला बुबा श्रीप्रसादको त कुरै नगर्दा पनि हुन्छ र तिम्रो बुबा बलराम त सधै नोकरीमा बाहिर नै बस्ने गर्छ मलाई त प्रेम गर्ने एउटा तिम्रो आमा र तिमी हो बाबु। त्यसैले होला उहाँले दुवै जनालाई मात्र भए पनि बेशर्त प्रेम गर्न सकनु भएको। उमेरले निकै फरक भए पनि हामी अभिन्न मित्र जस्तै थियो। उहाँ जहाँ जादाँ पनि मलाई नै साथमा लैजाने गर्नु हुन्थ्यो। पाप र पुण्यका कुरा, प्रचलित कथा लोक कथा तथा सात सालको क्रान्ति, क्रान्तिकारीहरुको वीरगाथा आदि उहाँ कै मुखार विन्दबाट सुन्थै म। घरको आर्थिक अवस्था साह्रै खस्किएको त्यसबेला पिउने पानी बाहेक चपाउने केही पनि हुदैनथ्यो यस्तो आर्थिक संकटमा हाम्रो परिवारले कति रात त एक गलास पानीमा गुजारा गर्नु परेको थियो। तर त्यस बेला पनि मेरी हजुर आमा मलाई हरेक दिन गाँउ कै आफन्तहरुको घरबाट केही मागेर मेरो नाबालक पेट भर्नुहुन्थ्यो। म भोजपुरमा छदाँ उहाँ मृत्यु शैय्यामा अन्तिम सास फेर्नु भन्दा अगाडी मेरो आमासँग मलाई नै उहाँको आँखाले खोज्दै थियो। मेरो आमाले हजुर आमालाई आमा....आमा....आमा विष्णु आयो.....आयो भन्दा मात्र पिलिक्क आँखा खोल्नु भयो र मलाई नदेखे पछि बन्द गर्नु भयो सधैको लागि। मलाई अमर प्रेमको व्यसनी बनाई उहाँ परम धाम पुग्नु भयो। दिन बितै महिने बितै, बीत गए कई साल। आप हम से ऐसी बिछुड़ी, आती रही हरपल याद।। (समाप्त) नोटः- यसपछिका कहानीहरुको शीर्षक 1 ठूल बुबा र अन्य परिवार 2 मेरो भारत यात्रा 3 यसरी भए म शिक्षक 4 मेरो पहिलो प्रेम 5 मेरो मनको भावुक्ता र प्रेमीका मनको कठोरता 6 यस्ता थिए मेरा बाबा 7 मेरी आमा र म ! शीघ्र fb status मा पठाउदैछु। Pls wait.........

मुस्लिम धर्म

इस्लाम के पांच स्तंभ इस्लाम धर्म पांच मूलभूत सिद्धान्त होते हैं जिन्हें इस्लाम के पांच स्तंभ भी कहा जाता है। हर मुस्लिम को इन सिद्धांतों या स्तंभों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना होता है। मुस्लिम धर्म की नींव इन्हीं सिद्धान्तों पर ईमान लाकर यानि इनको मानकर ही पूरी होती है। यह पांच सिद्धांत निम्न हैं- शहादा यह इस्लाम धर्म का सबसे प्रमुख सिद्धान्त है। किसी भी मुसलमान को कलमा पढ़ना यानि शहादा देना बेहद जरूरी है। सलात सलात यानि नमाज़ मुस्लिम जीवन का बेहद अहम हिस्सा है। एक मुसलमान व्यक्ति को दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ना जरूरी माना जाता है। ज़कात ज़कात यानि दान देना। मान्यतानुसार हर मुसलमान को अपनी वार्षिक कमाई का 2.5% गरीबों और जरूरतमंदों को दान में देना जरूरी समझा गया है। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौवां महीना रमज़ान का होता है। रमज़ान के पूरे महीने में मुसलमान रोज़ा यानि व्रत रखते हैं। हज हज इस्लाम का पांचवां और आखिरी स्तंभ है। इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने में हज यात्रा शुरू होती है। मान्यतानुसार हर मुसलमान को जिंदगी में एक बार हज जरूर करना चाहिए।  इस्लाम के यह पांच सिद्धान्त हर मुसलमान का फर्ज माना जाता है। इनको पूरा ना करना एक पाप के समान माना जाता है। इस्लाम के इन पांच सिद्धान्तों को मानकर कोई भी शख्स मुस्लिम समूह में शामिल हो सकता है लेकिन इसी के साथ उसको और भी कई कर्तव्य पूरे करने होते हैं।

इस्लाम धर्म

जानिए इस्लाम धर्म को इस्लाम का उदय कब हुआ, इस पर अलग-अलग अवधारणाएं हैं। कुछ लोग इसे सातवीं सदी में आरम्भ हुआ मानते हैं तो कुछ मानते हैं कि यह आदिकाल से चल रहा है। एक पक्ष मानता है कि इस्लाम का उदय सातवीं सदी में अरब में हुआ। अंतिम नबी मुहम्मद साहब का जन्म 570 इस्वी में मक्का में हुआ। 613 इस्वी के आसपास उन्होंने लोगों को ज्ञान बांटना आरम्भ किया तो उनके बहुत से अनुयायी बनते चले गए। इसी को इस्लाम की शुरुआत कहा गया। दूसरे पक्ष के विचारक इसे सही नहीं मानते। वे इस्लाम के मूल ग्रंथ कुरआन के आधार पर इसकी शुरुआत देखते हैं। इनके अनुसार इस्लाम आदिकाल से अस्तित्व में है।  कुरआन में पहले इंसान ‘आदम’ का जिक्र है। ‘मुस्लिम’ शब्द का इस्तेमाल हज़रत इब्राहिम (अलैहि।) के लिए किया है, जो लगभग 4 हजार साल पहले एक महान पैगम्बर हुए। कहा जाता है कि हज़रत आदम (अलैहि।) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल।) तक हजारों वर्षों में कई पैगम्बर हुए। इनमें से 26 के नाम कुरआन में हैं। इनके अनुसार, हज़रत मुहम्मद (सल्ल।) इस्लाम के प्रवर्तक(फाउंडर) नहीं थे, बल्कि आह्वाहक (ईश्वर का संदेश फैलाने वाले एक पैगम्बर) थे।  इस्लाम के मुताबिक कोई इन्सान तब तक सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता जब तक कि वह पांच कर्मों को पूरा ना करे। इन पांचों में ये शामिल हैं- 1। वह इस बात को माने कि अल्लाह के अलावा कोई अन्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के संदेशवाहक हैं। 2। नमाज़ कायम करे। 3। अनिवार्य धर्म-दान (ज़कात) दे। 4। रमज़ान के महीने का रोज़ा रखे। 5। काबा का हज्ज करे, यदि वह वहां तक पहुंचने में समर्थ हो।

पृथ्वी पुत्री सीता

सीता जी सीता जी हिन्दू धर्म की देवी है। मान्यता है कि सीता जी साक्षात लक्ष्मी जी का ही अवतार हैं। हिन्दू धर्म की प्रमुख पूजनीय पतिव्रता स्त्रियों में इनका स्थान सर्वोच्च माना गया है। रामायण काल में श्री राम के साथ यह भी वनवास को गई थीं। भगवान राम की पत्नी सीता जी को एक आदर्श माता और पुत्री के रूप में भी देखा जाता है। सीता जी की जन्म कथा रामायण की कथा के अनुसार मिथिला के नरेश राजा जनक का हल खेतों में जोतते समय एक स्थान पर अटक गया। जब राजा ने वहां खुदाई की तो उन्हें एक बक्सा मिला जिसमें एक सुंदर बालिका थी। संस्कृत भाषा में हल को 'सीत' कहा जाता है इसलिए जनक जी ने इनका नाम सीता रख दिया। इसके बाद राजा जनक ने सीता जी का पालन पोषण किया। सीता जी को वैदही भी कहा जाता है। सीता जी का मंत्र सभी दुखों की समाप्ति तथा घर में सुख शांति लाने के लिए सीता जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए। जय श्री सीता राम श्री सीताय नमः ऊँ जानकी रामाभ्यां नमः सीता जी का स्वरूप सीता जी को रामचरितमानस में भक्ति स्वरूपा कहा गया है। इनके मुख पर हमेशा अद्भुत तेज, शांति और करुणा का भाव रहता है। प्रतिमा में यह राम जी के एक तरफ खड़ी दिखाई देती हैं। ममता की मूर्त माने जाने वाली सीता जी को सुहागिन स्त्रियों का सर्वोच्च आदर्श माना जाता है। सीता जी का परिवार सीता जी के पिता का नाम जनक था। सीता जी, विष्णु अवतार श्री राम की अर्धांगिनी हैं। इनके दो पुत्र हैं लव और कुश। इनकी बहन का नाम उर्मिला था। सीता जी -श्रीराम विवाह रामयाण की कथा के अनुसार सीता जी के वयस्क होने पर राजा जनक जी ने उनके विवाह के लिए एक बड़े स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें उन्होंने दूर-दूर के राजा, महारथियों को स्वयंवर में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इसमें श्रीराम और लक्ष्मण जी भी शामिल हुए थे। सीता से विवाह के लिए स्वयंवर में शिव धनुष तोड़ने की शर्त रखी गई थी। इस धनुष को श्री राम ने तोड़ा और सीता जी से विवाह किया। राम और सीता जी के विवाह का प्रसंग रामायण के कुछ प्रसिद्ध प्रंसंगों में से एक है। इस प्रसंग में मर्यादित प्रेम की व्याख्या की गई है। सीता जी से जुड़ी विशेष बातें रावण ने धोखे से सीता जी का हरण किया था। अपनी पवित्रता को साबित करने के लिए सीता जी ने श्रीराम को अग्नि परीक्षा दी थी। यह धरती से ही उत्पन्न हुई थी तथा अंत में धरती में ही समा गई। सीता जी पूर्णतः पतिव्रता स्त्री थी। सीता जी के अन्य नाम वैदेही जानकी मैथलैयी भगवती पृथ्वी पुत्री सिया सीता जी के प्रसिद्ध मंदिर सीता मंदिर, केरल सीता मैय्या मंदिर, हरियाणा मैथलैयी मंदिर, जनकपुर जानकी मंदिर, पटना सीता कुंड, बिहार

भगवान् बचाएगा

एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे| एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा- ” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!” धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी| मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |” “नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया. नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया. कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया| पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |” उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया | कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी | मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ? भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”

ईश्वर एक

ईश्वर की एकता मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वो अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में इश्वर को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। इस्लाम के पांच स्तंभों में से पहला स्तंभ है शहादत देना कि अल्लाह के सिवा और कोई माबूत नहीं और हम केवल अल्लाह ही को पूजते हैं। इस्लाम धर्म में अल्लाह को सबसे ऊपर माना जाता है। अल्लाह ही एकमात्र भगवान है कुरआन और हदीस में सख्त हिदायत दी गई है कि अल्लाह के अलावा किसी व्यक्ति, मूर्ति या तत्व की पूजा नहीं करनी है। डरना, फरियाद करना, मांगना सब अल्लाह के सामने ही करना चाहिए। वही सबसे बड़ा है। अपने गुनाहों की माफी मांगनी हो या अपने भले के लिए कुछ फरियाद हर चीज में सिर्फ अल्लाह को याद करना चाहिए।  साथ ही यह कहा गया है कि अल्लाह को यह बात कतई पसंद नहीं कि उसके बंदे उसके सिवा मज़ारों, दरगाह आदि पर जाकर किसी दूसरे के आगे हाथ फैलाए जो खुद अल्लाह के रहमों करम पर हैं।

भोगाई र जिन्दगी

जिन्दगीको मूल्य हे भगवान, मलाई किन यति दुःख दिएको? फलानोले नयाँ घर बनायो, गाडी किन्यो विहे गरेर श्रीमति पनि राम्री पायो । मलाई किन यस्तो अन्याय गरेको प्रभु? मैले छोए सुन पनि माटो हुने, तेस्ले छुँदा माटो पनि सुन हुन्छ अखिर किन ईश्वर? मन्दिर भित्रबाट चर्को स्वरमा यस्तै आवाज आईरह्यो । को रहेछ भगवानसँग गुनासो पोख्ने भन्दै पुजारी बाहिर निस्किए र चुपचाप ढोकाबाट चिहाई रहे । एक सुन्दर युवक रिसाउँदै ढाकोबाट बाहिरीएको देखेपछि के भयो वावु? पुजारीले मन्द मुस्काउँदै सोधे । तर जवाफै नफर्काई ति युवक आफ्नो बाटो लागे । मंसीरको महिना थियो, जाडो बढ्दै गएकोले पुजारी स्वेटर, कम्मल लगाएतका समाग्री खरिददारी गर्न बजार निस्किए । छिटो पुगिन्छ भनेर खोलाको किनार हुँदै हिनेका पुजारी भिर माथि उभिएर एकोहोरो तल खोला हेरीरहेको मानिस देखेपछि टक्क अडिए । साता अघि मन्दिरमा पसेर भगवानसँग गुनासो गरिरहेको युवक हर काम असफल भएपछि आत्महत्या गर्न भनेर त्यहाँ आएको रहेछ । लामो स्वास फेर्दै भने, वावु मर्छु भनेरै आएपछि मैले रोकेर त पक्कै रोकिन्नौ, मर्दामर्दै मेरो सहायता गरिदेउ । युवक छक्क परे मर्न आएको मान्छेले के सहयोग गर्ने होला ? मनमनै सोचे र भने, भन्नुस के गर्न सक्छु ? पुजारीले लोभी पाराले भने, पारी गाउँका व्यापारी मानिसको आँखा ५ लाख रुपैयाँमा किनेर बिदेशमा बिक्रि गर्छन् । मर्ने मान्छेलाई आँखाको के काम तिम्रो आँखा बेचौं मलाई बुढेस्कालमा बसी बसी खान पुग्छ । हात पनि बेच्ने हो भने २५ लाख पाईन्छ म लखपति भईहाल्छु । तिम्रो राम्रो श्राद्ध गरेर स्वर्गबासको लागि प्राथना पनि गरिदिन्छु । पुजारी अझ अरु अङ्ग प्रत्यङ्गका मूल्य सुनाउँदै थिए । युवक रिसले चुर हुँदै भने हे वावा जी, तपाई पुजारी कि व्यापारी ? म मर्न खोज्दै छु तपाईलाई व्यापार गर्नु छ? आफ्नै हात खुट्टा बेच्नुस र लखपति हुनोस् मलाई मर्न दिनोस् । पुजारी मुस्काए हेर बावु जिन्दगी अनमोल छ, हात खुट्टा, आँखा नाक तिम्रा शरिरमा हजार अङ्ग छन् सबै अङ्गका मोलमोलाई गर्ने हो भने मूल्य तोक्न सकिदैन बावु । भगवानले दिएको अनमोल जिन्दगी किन यसरी फाल्न खोज्दै छौ? सत्कर्म गर्दै जाउ अरुले के पायो भन्दा पनि आफूले गरेका कामहरु सम्झ । काम सुरु गर्नु पूर्व ईश्वरलाई स्मरण गर सफल भए धन्य प्रभु, असफल भए प्रभुको ईच्छा । कहिल्यै दुःखी हुनु पर्दैन मेरो छोरा । युवकलाई साँच्चै जिन्दगी अनमोल नै रहेछ भन्ने लाग्यो । पुजारीको पछि पछि बजार गए र उनले किनेका सबै समानको पैसा तिरिदिए अनि मुस्काउदै भने वुवा मेरो अङ्ग बेचेर लखपति हुन पाउनु भएन अनमोल जिन्दगीको तर्फबाट यति मूल्य स्वीकारीबक्सियोस् ।

सती अनुसूईया की कहानी

Gautampur on-line सती अनुसूईया महर्षि अत्री की पत्नी थी। जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुविख्यात थी। एक दिन देव ऋषि नारद जी बारी-बारी से विष्णुजी, शिव जी और ब्रह्मा जी की अनुपस्थिति में विष्णु लोक, शिवलोक तथा ब्रह्मलोक पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी के सामने अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की बढ़ चढ़ के प्रशंसा की तथा कहाँ की समस्त सृष्टि में उससे बढ़ कर कोई पतिव्रता नहीं है। नारद जी की बाते सुनकर तीनो देवियाँ सोचने लगी की आखिर अनुसुइया के पतिव्रत धर्म में ऐसी क्या बात है जो उसकी चर्चा स्वर्गलोक तक हो रही है ? तीनो देवीयों को अनुसुइया से ईर्ष्या होने लगी। नारद जी के वहां से चले जाने के बाद सावित्री , लक्ष्मी तथा पार्वती एक जगह इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खंडित कराने के बारे में सोचने लगी। उन्होंने निश्चय किया की हम अपने पतियों को वहां भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराएंगे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव जब अपने अपने स्थान पर पहुँचे तो तीनों देवियों ने उनसे अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराने की जिद्द की। तीनों देवों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवियों ने उनकी एक ना सुनी और अंत में तीनो देवो को इसके लिए राज़ी होना पड़ा। तीनों देवो ने साधु वेश धारण किया तथा अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचे। उस समय अनुसूईया जी आश्रम पर अकेली थी। साधुवेश में तीन अत्तिथियों को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया। तीनों साधुओं ने कहा कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे। परंतु एक शर्त पर कि आप हमे निवस्त्र होकर भोजन कराओगी। अनुसूईया ने साधुओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई की तीनो देवो को तो अनुसुइया ने अपने सतीत्व से बालक बना दिया है। यह सुनकर तीनों देवियां ने अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचकर माता अनुसुइया से माफ़ी मांगी और कहाँ की हमसे ईर्ष्यावश यह गलती हुई है। इनके लाख मना करने पर भी हमने इन्हे यह घृणित कार्य करने भेजा। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए। आपकी हम आभारी होंगी। इतना सुनकर अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने तीनो बालक को वापस उनके वास्तविक रूप में ला दिया। अत्री ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा। तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं। तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने-अपने लोक को प्रस्थान कर गए। कालान्तर में दतात्रोय रूप में भगवान विष्णु का , चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म अनुसूईया के गर्भ से हुआ।

जिवन एक नाट्यशाला हो

एक नाट्य gautampur@online.com म गलत हुनसक्छु, त्यो मलाई थाहा छ, तर किन बार बार साध्य सिद्द भईरहन्छ, उनीहरू प्रेम गरिरहेछन्, या नाट्य साध्य सिद्द गरिरहेछन्, त्यो जान्न मलाई रहर छ । जे देखेँ, जे भोगेँ, अरूले जे देख्छन्, जे भोग्छन, त्यहि लेखेँ, जो देखिरहेछौ, त्यो रङ्गमञ्च हो, म भूपु कलाकार हुँ, बर्षअघि त्यो रङ्गमञ्च फुस्रो र सुकेको थियो, अहिले त्यो हरियो छ, फरक यत्ति हो, पोहोर भर्खर जुँगाको रेखी बसेको कलाकार, म थिँए, आज त्यहाँ जुँगामुठ्ठे छ तर त्यहाँ रत्तिभर फरक छैन, त्यो ओठको हाँसो, अनी लाली’मा । बर्षैपिच्छे फेरीने कलाकारहरू, सदाबहार नायीकाहरू, फुस्रीदै हरियाली छर्ने रङगमञ्चहरू, म उत्सुक छु जान्न, के यो नाटक हो ? म प्रतिक्षामा छु, अर्को श्रृङ्खलाको, अर्को बसन्तको, अनी अर्को कलाकारको, जहाँ यो प्रेम नभएर, नाटक सिद्द हुन्छ, र पर्दा खस्छ ।

प्रचण्डजी आखिर के रहेछ जिन्दगी

gautampur@online.com प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! कसलाई थाहा छ, जीवनको ज्योति कतिबेला निभ्छ ! हेर्दाहेर्दै एउटा प्रकाश निभेको छ । सत्य त्यही हो, निभेको प्रकाशमा अब जीवनको उज्यालो भेटिँदैन । अस्वीकार्य छ सत्य तर स्वीकार्न बाध्य छ मानिस । प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! म प्रकाशको मृत्युलाई असामयिक भन्दिनँ किनभने मृत्यु कहिल्यै सामयिक हुँदैन । जुन असामयिक हुन्छ, त्यो भयानक हुन्छ । मृत्यु भयानक छ तर इमान्दार छ । मानिसको इमान्दार मित्र कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युले कहिल्यै धोका दिँदैन । जन्मेदेखि सँगै बस्ने र जाँदा सँगै लिएर जाने कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युको आफ्नै लय हुन्छ । जीवनको लयभन्दा फरक छ, मृत्युको लय । त्यसैले मृत्यु हाम्रा लागि सधैं अस्वीकार्य छ । जे अस्वीकार्य हुन्छ, त्यो दुःखदायी हुन्छ । मृत्यु सधैं दुःखदायी छ । तर, त्यो दुःखको कारण मृत्यु होइन, प्रेम हो, अपनत्व हो, वात्सल्य हो । छोराछोरीप्रति आमाबाबुको प्रेम । श्रीमान्प्रति श्रीमतीको प्रेम । प्रचण्डजी ! मानिसमा प्रेम नहुँदो हो त दुःख पनि नहुँदो हो । प्रेम नहुँदो हो त मृत्युले मानिसलाई छुँदा पनि नछुँदो हो । भोग्नेलाई थाहा हुन्छ– प्रेमले जन्माएको दुर्दान्त दुःख, वीभत्स पीडा र आक्रान्त आघात ! प्रचण्डजी ! टाढैबाट होस्, मैले पनि देखेँ, एउटा जवान छोरालाई दागबत्ती दिन बाध्य हुँदाको बूढो बाबु । त्यो बाबुभित्रको अथाह पीडा । त्यो पीडाले उछालेको पानी । त्यो पानीले नाघेको ती आँखाका डिल । ती डिल नाधेर बगेका प्रगाढ प्रेमका ती ढिक्का । थाम्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडा झन् उर्लेर आउँथ्यो । रोक्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडाले बाँध फुटाउँथ्यो । तर, रोक्नुभो, किन बाध्य हुन भो ? स्वच्छन्द रुन पनि पाउनुभएन, तपाईं । हिजो प्रचण्डका कारणले जो रोएका थिए, ती पनि आज रोए । प्रचण्ड दुःखमा होइन, छोराको निधनमा रोए । निभेको प्रकाश देखेर रोए । तर, प्रचण्ड स्वयं रुन सकेनन् । आफूभित्रको वात्सल्य र प्रेमलाई पीडाको डल्लो बनाएर आफैंभित्र दबाउन पनि बाध्य हुँदो रहेछ मान्छे । प्रचण्डजी ! आखिर के रहेछ र जिन्दगी– रुने स्वतन्त्रता पनि गुमाउनु पर्ने ? मान्छे रुन सक्नुपर्छ, मान्छे रुनुपर्छ र मान्छेले आँशु बगाउनुपर्छ । रुनु दुःखको भाषा हो । आँशु पीडाको लिपि हो । दुःखको त्यो भाषा मान्छेले नै बोल्नुपर्छ । पीडाको त्यो लिपि मान्छेले नै लेख्नुपर्छ । बोल्न र लेख्न नसक्नुको पीडा मान्छेलाई झन् खपिनसक्नु हुन्छ । कसरी खप्नुभएको होला प्रचण्डजी ? कसरी खपे होलान् ती आमाबाबु, जसले जनयुद्धमा हजारौं जवान प्रकाशहरू गुमाए ! प्रचण्डजी ! रुने अवस्था आउनु राम्रो होइन तर रुनु राम्रो हो । पीडाले रुवाउँछ । त्यही रोदनको आँशुले पीडा पखाल्छ । रुनुको विडम्बना, तपाईं रुन पनि पाउनुभएन । आखिर दुःखमा रुन नपाउने जिन्दगी पनि के जिन्दगी, प्रचण्डजी ? प्रिय प्रचण्डजी ! मेरो अनुरोध, जवान छोरा प्रकाशलाई हेर्ने आँखाले अब देशका त्यस्तै तमाम जवान छोराछोरीहरुलाई हेर्नुहोला, जसले देशको राजनीतिक दाउपेचमा निश्चिततालाई गुमाइसकेका छन् । अनिश्चितता त सधैं अनिश्चित नै छ । देशका कतिधेरै जवान प्रकाशहरु आज अनिश्चितताको शिकार भएका छन् । कारण के हो ? एकपटक खोज्नुहोला । अनुहारमा गाडिएका आँखा होइन, मनका आँखा खोलेर हेर्नुभयो भने पक्कै देख्नुहुन्छ, त्यो अनिश्चितता । र, त्यो अनिश्चिततामा हराएका लाखौं जवान प्रकाशका अँध्यारा अनुहारहरू । हामीभन्दा तपाईंलाई थाहा छ अहिले राजनीतिभित्र राजनीतिबाहेक सबथोक छ । सबैभन्दा बढी कपट छ । जाल छ । झेल छ । बेइमानी छ । दुराचार छ । भ्रष्टाचार छ । व्यभिचार छ । आखिर मान्छेभित्र भएको प्रेम, वात्सल्य, पीडा र दुःखले पनि त्यही कपटी राजनीतिको नियति भोग्नुपर्छ भने किन नत्याग्ने त्यो दुषित राजनीति ? जहाँ न खुसीमा हाँस्न सकिन्छ, न दुःखमा रुन पाइन्छ । हो, प्रचण्डजी किन नत्याग्ने त्यो राजनीति ? त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी अब त्यो गन्धे राजनीति, त्यो भ्रष्ट र कपटी राजनीति । जुन राजनीति जनताका लागि होइन– गुन्डा, माफिया, दलाल, विलौचिया र विदेशी एजेन्टहरूका लागि भएको छ । आजै त्यागिदिनुस् त्यो फोहोर राजनीति, जो तिनै माफिया र भ्रष्टको कुलदेउता बन्छ, उही देशको सबैभन्दा ठूलो नेता कहलिन्छ । प्रचण्डजी ! यहाँ केपी ओलीजीलाई जोड्न चाहन्छु र एउटा प्रश्न सोध्न चाहन्छु– लज्जा के हो, ओलीजी ? कसले बनायो यो स्थिति ? ओलीजी, घोटेर पियाउने दबाई होइन, आफैंले बोध गर्ने ज्ञान हो, लज्जा । चौरस्तामा उभिएर ‘खुजुलीका दबा’ बेच्ने विदूषकपात्र जस्तो नेता देख्दा म आफैंलाई लज्जाबोध हुन्छ । हो, ओलीजी साह्रै लज्जाबोध हुन्छ । प्रचण्डजी ! आजै त्यागिदिनुस् माफियावादी दुष्ट राजनीति र आजै सुरु गर्नुस् एउटा निर्मल र पवित्र मनले गर्ने स्वच्छ राजनीति । देश र जनताका लागि गरिने राजनीति । शेरबहादुरजीको ‘निरीह’ राजनीतिभन्दा माथिको राजनीति । केपी ओलीजीको घटिया ‘गाईजात्रे’ राजनीतिभन्दा धेरै माथिको राजनीति । एउटा राजनेताले गर्ने राजनीति । अब राजनीति आफ्ना र आफन्तका लागि होइन, देश र जनताका लागि गर्नुस् । देशलाई मानिस बसेको देश बनाऊँ । देशलाई मानिसले शासन गरेको देश बनाऊँ । प्रचण्डजी ! अब कसैको पुच्छर होइन, टाउको पनि नबन्नुस् । आफ्नै टाउको, आफ्नै शरीर र आफ्नै पुच्छर लिएर हिँड्नुस् । आफैं हल्लाउनुस् आफ्नो टाउको, आफ्नो शरीर र आफ्नो पुच्छर । अब कसैको नेता होइन, सबैको नेता बन्नुस्, जसलाई राजनेता भनिन्छ । जसले आत्मनिर्णयको राजनीति गर्छ, उही राजनेता कहलिन्छ । राजनेता बन्न कुनै जोगी र ज्योतिषीसामु निधार जोत्नु पर्दैन । ती भविष्यद्रष्टा हुन्थे त दोबाटोमा बसेर ग्राहक किन खोज्थे ? प्रचण्डजी ! कर्मले हो मानिसलाई बनाउने । गुणले मानिसलाई बचाउने । माक्र्स र लेनिनका फोटा मिल्काएर माक्र्सवादी–लेनिनवादी बन्ने देशमा हुनुहुन्छ तपाईं । कर्म र गुणले आफूलाई बनाउन र बचाउन सकिएन भने त्योभन्दा निर्मम तरिकाले भोलि प्रचण्डहरु फ्याँकिन्छ । शासनको गद्दीमा होइन, जनताको मनको गद्दीमा शासन गर्न सक्ने शासकमात्र सधैं बाँच्छ । जिम्बाब्बेका रोबर्ट मुगावे ९३ वर्षको उमेरमा बन्दी भएका छन् । ४० वर्ष शासनको गद्दीमा बसे तर जनताको मनको गद्दीमा बस्न सकेनन् । आखिरी जिन्दगी के नै रहेछ र ? अब जनताको राजनीति गरौं । उठ्नुस् । माथि उठ्नुस् । सोचेभन्दा धेरै माथि उठ्नुस्, प्रचण्डजी । हिजो बाँडेका सपनाहरू खोज्नुस् । तपाईंका बोलीलाई मातापिता सम्झेर होमिने ती जवान प्रकाशहरूका आँखामा अझै नाचिरहेका छन् ती सपना । सँगाल्नुस् ती सपना । सुरु गर्नुस् निष्ठा, इमान र धर्मको राजनीति । एउटा तुच्छ मान्छेले होइन, राजनेताले गर्ने राजनीति । देशको अभिभावक बन्ने राजनीति । प्रचण्डजी ! जनयुद्धको लेखाजोखा धेरै भइसकेको छ । पछि पनि होला । भनिन्छ, तपाईं युद्धनायक हुनुभो, अब बुद्धनायक हुनुहोस् । देशलाई बुद्ध चाहिएको छ । बुद्ध भनेको वन प्रस्थान होइन । सन्यास र गेरुधारण पनि होइन । बुद्ध भनेको शान्ति र अहिंसा हो । बुद्ध भनेको सत्य र निष्ठा हो । बुद्ध भनेको चेतना र जागरण हो । अब मारिदिनुस् आफूभित्रको प्रचण्ड । जन्माउनुस् बुद्धरूपी पुष्पकमल । हुर्काउनुस्, बढाउनुस् त्यो पुष्पकमललाई । समयले अहिले तपाईंलाई समय दिएको छ । कुनैबेला समयले तपाईंलाई पछाडि लगायो होला तर अहिले त्यही समय तपाईंको पछाडि लाग्दैछ । अब कसैको नेता बन्नु हुँदैन त्यो पुष्पकमल । सबैको नेता बन्नुपर्छ, त्यही पुष्पकमल । हो प्रचण्डजी ! नेता धेरै छन् तर देश नेतृत्वविहीन भएको छ । आखिर असम्भव नै के छ र ! पूर्वीय मिथकको प्रेरकपात्र छ– डाँकु रत्नाकर, जसले रत्नाकरलाई मारेर आफैंभित्रबाट वाल्मिकी जन्माउँछ । इतिहास साक्षी छ, सिद्धार्थले बुद्ध जन्माउँछ । बुद्ध र वाल्मिकी जुगजुग बाँच्छन् । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डलाई कैवल्यप्राप्तिको मार्ग देखाउन सक्छ । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डभित्रबाट पुष्पकमल जन्माउन सक्छ । बुद्ध र वाल्मिकीजस्तै एक अद्वेत पुष्पकमल, जसले भोलि एउटा युग जन्माउन सक्छ । त्यो युग, जुन युगमा फुलेको फूलको बासना बोकेर उड्न हावा पनि सधैं बाध्य हुन्छ । प्रचण्डजी, एउटा कुरा जोडौं है । आखिर डा. गोविन्द केसी कसका लागि निराहार लडिरहनुभएको छ ? कि प्रचण्डले भन्न सक्नुपर्छ, उनको अभिषेक आन्दोलन देश र जनताको हितविपरीत छ । कि पुष्पकमलले त्यो आन्दोलनलाई आत्मसात गरेर तीन करोड नेपालीको भविष्य रक्षा गर्नुपर्छ । तपाईंसामु दुबै छन्, प्रचण्ड र पुष्पकमल । डा. केसीजस्ता जिउँदा देवताको आन्दोलनलाई सार्थक बनाउने एक महारथी बन्नुस्, प्रचण्डजी । जो बन्छ, त्यो मत्युपर्यन्त जनताको आशीर्वाद लिएर बाँच्छ । जनजनमा बाँच्छ, जुगजुग बाँच्छ । एक जुगमा एक डा. केसी जन्मिन्छन् । हामी जनता मनमनै सधैं एउटा कामना गरिरहन्छौं, डा. केसीहरू जन्मिरहून् । हामी त्यही मनले अर्को कामना पनि गरिरहेका छौं, यस्ता अहिलेका जस्ता दुष्ट नेता कहिल्यै नजन्मिऊन् । समयले हामीलाई कठोर मोडमा उभ्याएको छ । त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी, मेडिकल कलेज नाउँका ती जनतामारा कसाइखाना । त्यागिदिनुस् ती दुष्ट, जो डा. केसीजस्ता देउतालाई मार्न चाहन्छन् । छोडिदिनुस् तिनलाई, जो कम्युनिस्टको खोलमा माफियातन्त्र चलाउन चाहन्छन् । प्रचण्डजी ! ती परमपरोपकारी डा. केसीमाथि खनिने केपी ओलीजीमा मैले राक्षसको प्रतिरूप देख्न थालेको छु । तपाईं अझै मान्छको रूपमा देख्दै हुनुहुन्छ ? तोडिदिनुस्, छुचुन्द्रो र बिरालोको जस्तो त्यो असंगत जोडी । मान्छे होइन, बाँच्ने कर्म हो । गुण हो, गुणवत्ता हो । तपाईंको भित्री मनले पनि भन्छ– डा.केसीको आन्दोलनले सार्थकता पायो भने देशमा निष्ठा, विधि–विधान र थिति–नीतिको नयाँ युगको प्रारम्भ हुन्छ । त्यो युगले स्व. प्रकाश दाहालजस्ता धेरै जिउँदा जवान प्रकाशहरूको जीवनमा पक्कै निश्चितता ल्याउँछ । प्रचण्डजी ! वेदमा एक महावाक्य छ रे, नेति नेति । यो पनि होइन, त्यो पनि होइन । आखिर जीवन त्यही हो, अन्तमा जो केही होइन । पत्रैपत्रले बाँधिएको बन्दाकोबी जस्तो गडड्याम लाइफ ! वेदमै अर्को महावाक्य छ रे, तत्वमसि ! ओशो भन्छन्– अस्तित्व, परमात्मा र तिमी मिलेर बनेको छ, तत्वमसि । अर्थात, त्यो तिमी हौ । प्रचण्डीजी ! यी सबैकुरा नजिकभन्दा पनि नजिक छन्, जुन तपाईंभित्रै छन् । जन्माउनुस् बुद्धरूपी तत्वमसि । त्यो तपाईं हो । अन्त्यमा, सादर समवेदना प्रचण्डजी, तपाईं र परिपारप्रति !

प्रचण्डजी आखिर के रहेछ जिन्दगी

gautampur@online.com प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! कसलाई थाहा छ, जीवनको ज्योति कतिबेला निभ्छ ! हेर्दाहेर्दै एउटा प्रकाश निभेको छ । सत्य त्यही हो, निभेको प्रकाशमा अब जीवनको उज्यालो भेटिँदैन । अस्वीकार्य छ सत्य तर स्वीकार्न बाध्य छ मानिस । प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! म प्रकाशको मृत्युलाई असामयिक भन्दिनँ किनभने मृत्यु कहिल्यै सामयिक हुँदैन । जुन असामयिक हुन्छ, त्यो भयानक हुन्छ । मृत्यु भयानक छ तर इमान्दार छ । मानिसको इमान्दार मित्र कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युले कहिल्यै धोका दिँदैन । जन्मेदेखि सँगै बस्ने र जाँदा सँगै लिएर जाने कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युको आफ्नै लय हुन्छ । जीवनको लयभन्दा फरक छ, मृत्युको लय । त्यसैले मृत्यु हाम्रा लागि सधैं अस्वीकार्य छ । जे अस्वीकार्य हुन्छ, त्यो दुःखदायी हुन्छ । मृत्यु सधैं दुःखदायी छ । तर, त्यो दुःखको कारण मृत्यु होइन, प्रेम हो, अपनत्व हो, वात्सल्य हो । छोराछोरीप्रति आमाबाबुको प्रेम । श्रीमान्प्रति श्रीमतीको प्रेम । प्रचण्डजी ! मानिसमा प्रेम नहुँदो हो त दुःख पनि नहुँदो हो । प्रेम नहुँदो हो त मृत्युले मानिसलाई छुँदा पनि नछुँदो हो । भोग्नेलाई थाहा हुन्छ– प्रेमले जन्माएको दुर्दान्त दुःख, वीभत्स पीडा र आक्रान्त आघात ! प्रचण्डजी ! टाढैबाट होस्, मैले पनि देखेँ, एउटा जवान छोरालाई दागबत्ती दिन बाध्य हुँदाको बूढो बाबु । त्यो बाबुभित्रको अथाह पीडा । त्यो पीडाले उछालेको पानी । त्यो पानीले नाघेको ती आँखाका डिल । ती डिल नाधेर बगेका प्रगाढ प्रेमका ती ढिक्का । थाम्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडा झन् उर्लेर आउँथ्यो । रोक्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडाले बाँध फुटाउँथ्यो । तर, रोक्नुभो, किन बाध्य हुन भो ? स्वच्छन्द रुन पनि पाउनुभएन, तपाईं । हिजो प्रचण्डका कारणले जो रोएका थिए, ती पनि आज रोए । प्रचण्ड दुःखमा होइन, छोराको निधनमा रोए । निभेको प्रकाश देखेर रोए । तर, प्रचण्ड स्वयं रुन सकेनन् । आफूभित्रको वात्सल्य र प्रेमलाई पीडाको डल्लो बनाएर आफैंभित्र दबाउन पनि बाध्य हुँदो रहेछ मान्छे । प्रचण्डजी ! आखिर के रहेछ र जिन्दगी– रुने स्वतन्त्रता पनि गुमाउनु पर्ने ? मान्छे रुन सक्नुपर्छ, मान्छे रुनुपर्छ र मान्छेले आँशु बगाउनुपर्छ । रुनु दुःखको भाषा हो । आँशु पीडाको लिपि हो । दुःखको त्यो भाषा मान्छेले नै बोल्नुपर्छ । पीडाको त्यो लिपि मान्छेले नै लेख्नुपर्छ । बोल्न र लेख्न नसक्नुको पीडा मान्छेलाई झन् खपिनसक्नु हुन्छ । कसरी खप्नुभएको होला प्रचण्डजी ? कसरी खपे होलान् ती आमाबाबु, जसले जनयुद्धमा हजारौं जवान प्रकाशहरू गुमाए ! प्रचण्डजी ! रुने अवस्था आउनु राम्रो होइन तर रुनु राम्रो हो । पीडाले रुवाउँछ । त्यही रोदनको आँशुले पीडा पखाल्छ । रुनुको विडम्बना, तपाईं रुन पनि पाउनुभएन । आखिर दुःखमा रुन नपाउने जिन्दगी पनि के जिन्दगी, प्रचण्डजी ? प्रिय प्रचण्डजी ! मेरो अनुरोध, जवान छोरा प्रकाशलाई हेर्ने आँखाले अब देशका त्यस्तै तमाम जवान छोराछोरीहरुलाई हेर्नुहोला, जसले देशको राजनीतिक दाउपेचमा निश्चिततालाई गुमाइसकेका छन् । अनिश्चितता त सधैं अनिश्चित नै छ । देशका कतिधेरै जवान प्रकाशहरु आज अनिश्चितताको शिकार भएका छन् । कारण के हो ? एकपटक खोज्नुहोला । अनुहारमा गाडिएका आँखा होइन, मनका आँखा खोलेर हेर्नुभयो भने पक्कै देख्नुहुन्छ, त्यो अनिश्चितता । र, त्यो अनिश्चिततामा हराएका लाखौं जवान प्रकाशका अँध्यारा अनुहारहरू । हामीभन्दा तपाईंलाई थाहा छ अहिले राजनीतिभित्र राजनीतिबाहेक सबथोक छ । सबैभन्दा बढी कपट छ । जाल छ । झेल छ । बेइमानी छ । दुराचार छ । भ्रष्टाचार छ । व्यभिचार छ । आखिर मान्छेभित्र भएको प्रेम, वात्सल्य, पीडा र दुःखले पनि त्यही कपटी राजनीतिको नियति भोग्नुपर्छ भने किन नत्याग्ने त्यो दुषित राजनीति ? जहाँ न खुसीमा हाँस्न सकिन्छ, न दुःखमा रुन पाइन्छ । हो, प्रचण्डजी किन नत्याग्ने त्यो राजनीति ? त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी अब त्यो गन्धे राजनीति, त्यो भ्रष्ट र कपटी राजनीति । जुन राजनीति जनताका लागि होइन– गुन्डा, माफिया, दलाल, विलौचिया र विदेशी एजेन्टहरूका लागि भएको छ । आजै त्यागिदिनुस् त्यो फोहोर राजनीति, जो तिनै माफिया र भ्रष्टको कुलदेउता बन्छ, उही देशको सबैभन्दा ठूलो नेता कहलिन्छ । प्रचण्डजी ! यहाँ केपी ओलीजीलाई जोड्न चाहन्छु र एउटा प्रश्न सोध्न चाहन्छु– लज्जा के हो, ओलीजी ? कसले बनायो यो स्थिति ? ओलीजी, घोटेर पियाउने दबाई होइन, आफैंले बोध गर्ने ज्ञान हो, लज्जा । चौरस्तामा उभिएर ‘खुजुलीका दबा’ बेच्ने विदूषकपात्र जस्तो नेता देख्दा म आफैंलाई लज्जाबोध हुन्छ । हो, ओलीजी साह्रै लज्जाबोध हुन्छ । प्रचण्डजी ! आजै त्यागिदिनुस् माफियावादी दुष्ट राजनीति र आजै सुरु गर्नुस् एउटा निर्मल र पवित्र मनले गर्ने स्वच्छ राजनीति । देश र जनताका लागि गरिने राजनीति । शेरबहादुरजीको ‘निरीह’ राजनीतिभन्दा माथिको राजनीति । केपी ओलीजीको घटिया ‘गाईजात्रे’ राजनीतिभन्दा धेरै माथिको राजनीति । एउटा राजनेताले गर्ने राजनीति । अब राजनीति आफ्ना र आफन्तका लागि होइन, देश र जनताका लागि गर्नुस् । देशलाई मानिस बसेको देश बनाऊँ । देशलाई मानिसले शासन गरेको देश बनाऊँ । प्रचण्डजी ! अब कसैको पुच्छर होइन, टाउको पनि नबन्नुस् । आफ्नै टाउको, आफ्नै शरीर र आफ्नै पुच्छर लिएर हिँड्नुस् । आफैं हल्लाउनुस् आफ्नो टाउको, आफ्नो शरीर र आफ्नो पुच्छर । अब कसैको नेता होइन, सबैको नेता बन्नुस्, जसलाई राजनेता भनिन्छ । जसले आत्मनिर्णयको राजनीति गर्छ, उही राजनेता कहलिन्छ । राजनेता बन्न कुनै जोगी र ज्योतिषीसामु निधार जोत्नु पर्दैन । ती भविष्यद्रष्टा हुन्थे त दोबाटोमा बसेर ग्राहक किन खोज्थे ? प्रचण्डजी ! कर्मले हो मानिसलाई बनाउने । गुणले मानिसलाई बचाउने । माक्र्स र लेनिनका फोटा मिल्काएर माक्र्सवादी–लेनिनवादी बन्ने देशमा हुनुहुन्छ तपाईं । कर्म र गुणले आफूलाई बनाउन र बचाउन सकिएन भने त्योभन्दा निर्मम तरिकाले भोलि प्रचण्डहरु फ्याँकिन्छ । शासनको गद्दीमा होइन, जनताको मनको गद्दीमा शासन गर्न सक्ने शासकमात्र सधैं बाँच्छ । जिम्बाब्बेका रोबर्ट मुगावे ९३ वर्षको उमेरमा बन्दी भएका छन् । ४० वर्ष शासनको गद्दीमा बसे तर जनताको मनको गद्दीमा बस्न सकेनन् । आखिरी जिन्दगी के नै रहेछ र ? अब जनताको राजनीति गरौं । उठ्नुस् । माथि उठ्नुस् । सोचेभन्दा धेरै माथि उठ्नुस्, प्रचण्डजी । हिजो बाँडेका सपनाहरू खोज्नुस् । तपाईंका बोलीलाई मातापिता सम्झेर होमिने ती जवान प्रकाशहरूका आँखामा अझै नाचिरहेका छन् ती सपना । सँगाल्नुस् ती सपना । सुरु गर्नुस् निष्ठा, इमान र धर्मको राजनीति । एउटा तुच्छ मान्छेले होइन, राजनेताले गर्ने राजनीति । देशको अभिभावक बन्ने राजनीति । प्रचण्डजी ! जनयुद्धको लेखाजोखा धेरै भइसकेको छ । पछि पनि होला । भनिन्छ, तपाईं युद्धनायक हुनुभो, अब बुद्धनायक हुनुहोस् । देशलाई बुद्ध चाहिएको छ । बुद्ध भनेको वन प्रस्थान होइन । सन्यास र गेरुधारण पनि होइन । बुद्ध भनेको शान्ति र अहिंसा हो । बुद्ध भनेको सत्य र निष्ठा हो । बुद्ध भनेको चेतना र जागरण हो । अब मारिदिनुस् आफूभित्रको प्रचण्ड । जन्माउनुस् बुद्धरूपी पुष्पकमल । हुर्काउनुस्, बढाउनुस् त्यो पुष्पकमललाई । समयले अहिले तपाईंलाई समय दिएको छ । कुनैबेला समयले तपाईंलाई पछाडि लगायो होला तर अहिले त्यही समय तपाईंको पछाडि लाग्दैछ । अब कसैको नेता बन्नु हुँदैन त्यो पुष्पकमल । सबैको नेता बन्नुपर्छ, त्यही पुष्पकमल । हो प्रचण्डजी ! नेता धेरै छन् तर देश नेतृत्वविहीन भएको छ । आखिर असम्भव नै के छ र ! पूर्वीय मिथकको प्रेरकपात्र छ– डाँकु रत्नाकर, जसले रत्नाकरलाई मारेर आफैंभित्रबाट वाल्मिकी जन्माउँछ । इतिहास साक्षी छ, सिद्धार्थले बुद्ध जन्माउँछ । बुद्ध र वाल्मिकी जुगजुग बाँच्छन् । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डलाई कैवल्यप्राप्तिको मार्ग देखाउन सक्छ । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डभित्रबाट पुष्पकमल जन्माउन सक्छ । बुद्ध र वाल्मिकीजस्तै एक अद्वेत पुष्पकमल, जसले भोलि एउटा युग जन्माउन सक्छ । त्यो युग, जुन युगमा फुलेको फूलको बासना बोकेर उड्न हावा पनि सधैं बाध्य हुन्छ । प्रचण्डजी, एउटा कुरा जोडौं है । आखिर डा. गोविन्द केसी कसका लागि निराहार लडिरहनुभएको छ ? कि प्रचण्डले भन्न सक्नुपर्छ, उनको अभिषेक आन्दोलन देश र जनताको हितविपरीत छ । कि पुष्पकमलले त्यो आन्दोलनलाई आत्मसात गरेर तीन करोड नेपालीको भविष्य रक्षा गर्नुपर्छ । तपाईंसामु दुबै छन्, प्रचण्ड र पुष्पकमल । डा. केसीजस्ता जिउँदा देवताको आन्दोलनलाई सार्थक बनाउने एक महारथी बन्नुस्, प्रचण्डजी । जो बन्छ, त्यो मत्युपर्यन्त जनताको आशीर्वाद लिएर बाँच्छ । जनजनमा बाँच्छ, जुगजुग बाँच्छ । एक जुगमा एक डा. केसी जन्मिन्छन् । हामी जनता मनमनै सधैं एउटा कामना गरिरहन्छौं, डा. केसीहरू जन्मिरहून् । हामी त्यही मनले अर्को कामना पनि गरिरहेका छौं, यस्ता अहिलेका जस्ता दुष्ट नेता कहिल्यै नजन्मिऊन् । समयले हामीलाई कठोर मोडमा उभ्याएको छ । त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी, मेडिकल कलेज नाउँका ती जनतामारा कसाइखाना । त्यागिदिनुस् ती दुष्ट, जो डा. केसीजस्ता देउतालाई मार्न चाहन्छन् । छोडिदिनुस् तिनलाई, जो कम्युनिस्टको खोलमा माफियातन्त्र चलाउन चाहन्छन् । प्रचण्डजी ! ती परमपरोपकारी डा. केसीमाथि खनिने केपी ओलीजीमा मैले राक्षसको प्रतिरूप देख्न थालेको छु । तपाईं अझै मान्छको रूपमा देख्दै हुनुहुन्छ ? तोडिदिनुस्, छुचुन्द्रो र बिरालोको जस्तो त्यो असंगत जोडी । मान्छे होइन, बाँच्ने कर्म हो । गुण हो, गुणवत्ता हो । तपाईंको भित्री मनले पनि भन्छ– डा.केसीको आन्दोलनले सार्थकता पायो भने देशमा निष्ठा, विधि–विधान र थिति–नीतिको नयाँ युगको प्रारम्भ हुन्छ । त्यो युगले स्व. प्रकाश दाहालजस्ता धेरै जिउँदा जवान प्रकाशहरूको जीवनमा पक्कै निश्चितता ल्याउँछ । प्रचण्डजी ! वेदमा एक महावाक्य छ रे, नेति नेति । यो पनि होइन, त्यो पनि होइन । आखिर जीवन त्यही हो, अन्तमा जो केही होइन । पत्रैपत्रले बाँधिएको बन्दाकोबी जस्तो गडड्याम लाइफ ! वेदमै अर्को महावाक्य छ रे, तत्वमसि ! ओशो भन्छन्– अस्तित्व, परमात्मा र तिमी मिलेर बनेको छ, तत्वमसि । अर्थात, त्यो तिमी हौ । प्रचण्डीजी ! यी सबैकुरा नजिकभन्दा पनि नजिक छन्, जुन तपाईंभित्रै छन् । जन्माउनुस् बुद्धरूपी तत्वमसि । त्यो तपाईं हो । अन्त्यमा, सादर समवेदना प्रचण्डजी, तपाईं र परिपारप्रति !

प्रचण्डजी आखिर के रहेछ जिन्दगी

gautampur@online.com प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! कसलाई थाहा छ, जीवनको ज्योति कतिबेला निभ्छ ! हेर्दाहेर्दै एउटा प्रकाश निभेको छ । सत्य त्यही हो, निभेको प्रकाशमा अब जीवनको उज्यालो भेटिँदैन । अस्वीकार्य छ सत्य तर स्वीकार्न बाध्य छ मानिस । प्रचण्डजी, आखिर के रहेछ र जिन्दगी ! म प्रकाशको मृत्युलाई असामयिक भन्दिनँ किनभने मृत्यु कहिल्यै सामयिक हुँदैन । जुन असामयिक हुन्छ, त्यो भयानक हुन्छ । मृत्यु भयानक छ तर इमान्दार छ । मानिसको इमान्दार मित्र कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युले कहिल्यै धोका दिँदैन । जन्मेदेखि सँगै बस्ने र जाँदा सँगै लिएर जाने कोही छ भने त्यो मृत्यु हो । मृत्युको आफ्नै लय हुन्छ । जीवनको लयभन्दा फरक छ, मृत्युको लय । त्यसैले मृत्यु हाम्रा लागि सधैं अस्वीकार्य छ । जे अस्वीकार्य हुन्छ, त्यो दुःखदायी हुन्छ । मृत्यु सधैं दुःखदायी छ । तर, त्यो दुःखको कारण मृत्यु होइन, प्रेम हो, अपनत्व हो, वात्सल्य हो । छोराछोरीप्रति आमाबाबुको प्रेम । श्रीमान्प्रति श्रीमतीको प्रेम । प्रचण्डजी ! मानिसमा प्रेम नहुँदो हो त दुःख पनि नहुँदो हो । प्रेम नहुँदो हो त मृत्युले मानिसलाई छुँदा पनि नछुँदो हो । भोग्नेलाई थाहा हुन्छ– प्रेमले जन्माएको दुर्दान्त दुःख, वीभत्स पीडा र आक्रान्त आघात ! प्रचण्डजी ! टाढैबाट होस्, मैले पनि देखेँ, एउटा जवान छोरालाई दागबत्ती दिन बाध्य हुँदाको बूढो बाबु । त्यो बाबुभित्रको अथाह पीडा । त्यो पीडाले उछालेको पानी । त्यो पानीले नाघेको ती आँखाका डिल । ती डिल नाधेर बगेका प्रगाढ प्रेमका ती ढिक्का । थाम्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडा झन् उर्लेर आउँथ्यो । रोक्न खोज्नुहुन्थ्यो तपाईं, पीडाले बाँध फुटाउँथ्यो । तर, रोक्नुभो, किन बाध्य हुन भो ? स्वच्छन्द रुन पनि पाउनुभएन, तपाईं । हिजो प्रचण्डका कारणले जो रोएका थिए, ती पनि आज रोए । प्रचण्ड दुःखमा होइन, छोराको निधनमा रोए । निभेको प्रकाश देखेर रोए । तर, प्रचण्ड स्वयं रुन सकेनन् । आफूभित्रको वात्सल्य र प्रेमलाई पीडाको डल्लो बनाएर आफैंभित्र दबाउन पनि बाध्य हुँदो रहेछ मान्छे । प्रचण्डजी ! आखिर के रहेछ र जिन्दगी– रुने स्वतन्त्रता पनि गुमाउनु पर्ने ? मान्छे रुन सक्नुपर्छ, मान्छे रुनुपर्छ र मान्छेले आँशु बगाउनुपर्छ । रुनु दुःखको भाषा हो । आँशु पीडाको लिपि हो । दुःखको त्यो भाषा मान्छेले नै बोल्नुपर्छ । पीडाको त्यो लिपि मान्छेले नै लेख्नुपर्छ । बोल्न र लेख्न नसक्नुको पीडा मान्छेलाई झन् खपिनसक्नु हुन्छ । कसरी खप्नुभएको होला प्रचण्डजी ? कसरी खपे होलान् ती आमाबाबु, जसले जनयुद्धमा हजारौं जवान प्रकाशहरू गुमाए ! प्रचण्डजी ! रुने अवस्था आउनु राम्रो होइन तर रुनु राम्रो हो । पीडाले रुवाउँछ । त्यही रोदनको आँशुले पीडा पखाल्छ । रुनुको विडम्बना, तपाईं रुन पनि पाउनुभएन । आखिर दुःखमा रुन नपाउने जिन्दगी पनि के जिन्दगी, प्रचण्डजी ? प्रिय प्रचण्डजी ! मेरो अनुरोध, जवान छोरा प्रकाशलाई हेर्ने आँखाले अब देशका त्यस्तै तमाम जवान छोराछोरीहरुलाई हेर्नुहोला, जसले देशको राजनीतिक दाउपेचमा निश्चिततालाई गुमाइसकेका छन् । अनिश्चितता त सधैं अनिश्चित नै छ । देशका कतिधेरै जवान प्रकाशहरु आज अनिश्चितताको शिकार भएका छन् । कारण के हो ? एकपटक खोज्नुहोला । अनुहारमा गाडिएका आँखा होइन, मनका आँखा खोलेर हेर्नुभयो भने पक्कै देख्नुहुन्छ, त्यो अनिश्चितता । र, त्यो अनिश्चिततामा हराएका लाखौं जवान प्रकाशका अँध्यारा अनुहारहरू । हामीभन्दा तपाईंलाई थाहा छ अहिले राजनीतिभित्र राजनीतिबाहेक सबथोक छ । सबैभन्दा बढी कपट छ । जाल छ । झेल छ । बेइमानी छ । दुराचार छ । भ्रष्टाचार छ । व्यभिचार छ । आखिर मान्छेभित्र भएको प्रेम, वात्सल्य, पीडा र दुःखले पनि त्यही कपटी राजनीतिको नियति भोग्नुपर्छ भने किन नत्याग्ने त्यो दुषित राजनीति ? जहाँ न खुसीमा हाँस्न सकिन्छ, न दुःखमा रुन पाइन्छ । हो, प्रचण्डजी किन नत्याग्ने त्यो राजनीति ? त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी अब त्यो गन्धे राजनीति, त्यो भ्रष्ट र कपटी राजनीति । जुन राजनीति जनताका लागि होइन– गुन्डा, माफिया, दलाल, विलौचिया र विदेशी एजेन्टहरूका लागि भएको छ । आजै त्यागिदिनुस् त्यो फोहोर राजनीति, जो तिनै माफिया र भ्रष्टको कुलदेउता बन्छ, उही देशको सबैभन्दा ठूलो नेता कहलिन्छ । प्रचण्डजी ! यहाँ केपी ओलीजीलाई जोड्न चाहन्छु र एउटा प्रश्न सोध्न चाहन्छु– लज्जा के हो, ओलीजी ? कसले बनायो यो स्थिति ? ओलीजी, घोटेर पियाउने दबाई होइन, आफैंले बोध गर्ने ज्ञान हो, लज्जा । चौरस्तामा उभिएर ‘खुजुलीका दबा’ बेच्ने विदूषकपात्र जस्तो नेता देख्दा म आफैंलाई लज्जाबोध हुन्छ । हो, ओलीजी साह्रै लज्जाबोध हुन्छ । प्रचण्डजी ! आजै त्यागिदिनुस् माफियावादी दुष्ट राजनीति र आजै सुरु गर्नुस् एउटा निर्मल र पवित्र मनले गर्ने स्वच्छ राजनीति । देश र जनताका लागि गरिने राजनीति । शेरबहादुरजीको ‘निरीह’ राजनीतिभन्दा माथिको राजनीति । केपी ओलीजीको घटिया ‘गाईजात्रे’ राजनीतिभन्दा धेरै माथिको राजनीति । एउटा राजनेताले गर्ने राजनीति । अब राजनीति आफ्ना र आफन्तका लागि होइन, देश र जनताका लागि गर्नुस् । देशलाई मानिस बसेको देश बनाऊँ । देशलाई मानिसले शासन गरेको देश बनाऊँ । प्रचण्डजी ! अब कसैको पुच्छर होइन, टाउको पनि नबन्नुस् । आफ्नै टाउको, आफ्नै शरीर र आफ्नै पुच्छर लिएर हिँड्नुस् । आफैं हल्लाउनुस् आफ्नो टाउको, आफ्नो शरीर र आफ्नो पुच्छर । अब कसैको नेता होइन, सबैको नेता बन्नुस्, जसलाई राजनेता भनिन्छ । जसले आत्मनिर्णयको राजनीति गर्छ, उही राजनेता कहलिन्छ । राजनेता बन्न कुनै जोगी र ज्योतिषीसामु निधार जोत्नु पर्दैन । ती भविष्यद्रष्टा हुन्थे त दोबाटोमा बसेर ग्राहक किन खोज्थे ? प्रचण्डजी ! कर्मले हो मानिसलाई बनाउने । गुणले मानिसलाई बचाउने । माक्र्स र लेनिनका फोटा मिल्काएर माक्र्सवादी–लेनिनवादी बन्ने देशमा हुनुहुन्छ तपाईं । कर्म र गुणले आफूलाई बनाउन र बचाउन सकिएन भने त्योभन्दा निर्मम तरिकाले भोलि प्रचण्डहरु फ्याँकिन्छ । शासनको गद्दीमा होइन, जनताको मनको गद्दीमा शासन गर्न सक्ने शासकमात्र सधैं बाँच्छ । जिम्बाब्बेका रोबर्ट मुगावे ९३ वर्षको उमेरमा बन्दी भएका छन् । ४० वर्ष शासनको गद्दीमा बसे तर जनताको मनको गद्दीमा बस्न सकेनन् । आखिरी जिन्दगी के नै रहेछ र ? अब जनताको राजनीति गरौं । उठ्नुस् । माथि उठ्नुस् । सोचेभन्दा धेरै माथि उठ्नुस्, प्रचण्डजी । हिजो बाँडेका सपनाहरू खोज्नुस् । तपाईंका बोलीलाई मातापिता सम्झेर होमिने ती जवान प्रकाशहरूका आँखामा अझै नाचिरहेका छन् ती सपना । सँगाल्नुस् ती सपना । सुरु गर्नुस् निष्ठा, इमान र धर्मको राजनीति । एउटा तुच्छ मान्छेले होइन, राजनेताले गर्ने राजनीति । देशको अभिभावक बन्ने राजनीति । प्रचण्डजी ! जनयुद्धको लेखाजोखा धेरै भइसकेको छ । पछि पनि होला । भनिन्छ, तपाईं युद्धनायक हुनुभो, अब बुद्धनायक हुनुहोस् । देशलाई बुद्ध चाहिएको छ । बुद्ध भनेको वन प्रस्थान होइन । सन्यास र गेरुधारण पनि होइन । बुद्ध भनेको शान्ति र अहिंसा हो । बुद्ध भनेको सत्य र निष्ठा हो । बुद्ध भनेको चेतना र जागरण हो । अब मारिदिनुस् आफूभित्रको प्रचण्ड । जन्माउनुस् बुद्धरूपी पुष्पकमल । हुर्काउनुस्, बढाउनुस् त्यो पुष्पकमललाई । समयले अहिले तपाईंलाई समय दिएको छ । कुनैबेला समयले तपाईंलाई पछाडि लगायो होला तर अहिले त्यही समय तपाईंको पछाडि लाग्दैछ । अब कसैको नेता बन्नु हुँदैन त्यो पुष्पकमल । सबैको नेता बन्नुपर्छ, त्यही पुष्पकमल । हो प्रचण्डजी ! नेता धेरै छन् तर देश नेतृत्वविहीन भएको छ । आखिर असम्भव नै के छ र ! पूर्वीय मिथकको प्रेरकपात्र छ– डाँकु रत्नाकर, जसले रत्नाकरलाई मारेर आफैंभित्रबाट वाल्मिकी जन्माउँछ । इतिहास साक्षी छ, सिद्धार्थले बुद्ध जन्माउँछ । बुद्ध र वाल्मिकी जुगजुग बाँच्छन् । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डलाई कैवल्यप्राप्तिको मार्ग देखाउन सक्छ । रत्नाकरले जस्तै प्रचण्डले प्रचण्डभित्रबाट पुष्पकमल जन्माउन सक्छ । बुद्ध र वाल्मिकीजस्तै एक अद्वेत पुष्पकमल, जसले भोलि एउटा युग जन्माउन सक्छ । त्यो युग, जुन युगमा फुलेको फूलको बासना बोकेर उड्न हावा पनि सधैं बाध्य हुन्छ । प्रचण्डजी, एउटा कुरा जोडौं है । आखिर डा. गोविन्द केसी कसका लागि निराहार लडिरहनुभएको छ ? कि प्रचण्डले भन्न सक्नुपर्छ, उनको अभिषेक आन्दोलन देश र जनताको हितविपरीत छ । कि पुष्पकमलले त्यो आन्दोलनलाई आत्मसात गरेर तीन करोड नेपालीको भविष्य रक्षा गर्नुपर्छ । तपाईंसामु दुबै छन्, प्रचण्ड र पुष्पकमल । डा. केसीजस्ता जिउँदा देवताको आन्दोलनलाई सार्थक बनाउने एक महारथी बन्नुस्, प्रचण्डजी । जो बन्छ, त्यो मत्युपर्यन्त जनताको आशीर्वाद लिएर बाँच्छ । जनजनमा बाँच्छ, जुगजुग बाँच्छ । एक जुगमा एक डा. केसी जन्मिन्छन् । हामी जनता मनमनै सधैं एउटा कामना गरिरहन्छौं, डा. केसीहरू जन्मिरहून् । हामी त्यही मनले अर्को कामना पनि गरिरहेका छौं, यस्ता अहिलेका जस्ता दुष्ट नेता कहिल्यै नजन्मिऊन् । समयले हामीलाई कठोर मोडमा उभ्याएको छ । त्यागिदिनुस् प्रचण्डजी, मेडिकल कलेज नाउँका ती जनतामारा कसाइखाना । त्यागिदिनुस् ती दुष्ट, जो डा. केसीजस्ता देउतालाई मार्न चाहन्छन् । छोडिदिनुस् तिनलाई, जो कम्युनिस्टको खोलमा माफियातन्त्र चलाउन चाहन्छन् । प्रचण्डजी ! ती परमपरोपकारी डा. केसीमाथि खनिने केपी ओलीजीमा मैले राक्षसको प्रतिरूप देख्न थालेको छु । तपाईं अझै मान्छको रूपमा देख्दै हुनुहुन्छ ? तोडिदिनुस्, छुचुन्द्रो र बिरालोको जस्तो त्यो असंगत जोडी । मान्छे होइन, बाँच्ने कर्म हो । गुण हो, गुणवत्ता हो । तपाईंको भित्री मनले पनि भन्छ– डा.केसीको आन्दोलनले सार्थकता पायो भने देशमा निष्ठा, विधि–विधान र थिति–नीतिको नयाँ युगको प्रारम्भ हुन्छ । त्यो युगले स्व. प्रकाश दाहालजस्ता धेरै जिउँदा जवान प्रकाशहरूको जीवनमा पक्कै निश्चितता ल्याउँछ । प्रचण्डजी ! वेदमा एक महावाक्य छ रे, नेति नेति । यो पनि होइन, त्यो पनि होइन । आखिर जीवन त्यही हो, अन्तमा जो केही होइन । पत्रैपत्रले बाँधिएको बन्दाकोबी जस्तो गडड्याम लाइफ ! वेदमै अर्को महावाक्य छ रे, तत्वमसि ! ओशो भन्छन्– अस्तित्व, परमात्मा र तिमी मिलेर बनेको छ, तत्वमसि । अर्थात, त्यो तिमी हौ । प्रचण्डीजी ! यी सबैकुरा नजिकभन्दा पनि नजिक छन्, जुन तपाईंभित्रै छन् । जन्माउनुस् बुद्धरूपी तत्वमसि । त्यो तपाईं हो । अन्त्यमा, सादर समवेदना प्रचण्डजी, तपाईं र परिपारप्रति !

जनता मा.वि.तिमी

समितिमा रहयो पुराना पुस्ताहरू,तिमीलाई पुरानै बनाएर राख्यो । समय सँगै परिवर्तन भयो,युवाहरू समितिमा रहयो । तिम्रो अनुहार चम्किएको छ । तिमी मुस्कुराई मुस्कुराई लम्किएको छ । सम्पूर्ण बिद्यार्थीलाई पढाउने तिमी विद्यालय हो तिमी गौतमपुर बीच,मुटुभित्र खेल्दैछ हिजो अस्ति आजसम्म तिमीले धेरै विद्यार्थी पढायौ गौतमपुरमा शिक्षित विद्यार्थी तिमीले बढायौ जनता मा.वि.तिमी सधै चम्किरहनु प्रगति र उन्नतिको बाटोमा सधै लम्किरहनु अन्धकार कु-संस्कार तिमीले सधै हटाउदै आयौ विद्यार्थी तिमी पनि असल बन्नलाई जनता मावि धायौ विकासका पूर्वाधार तिमी पनि एक हौ रे गौतमपुर बासीको तिमी मुटुभित्र छौ अरे उन्नति प्रगतिको बाटो रोज्नु सधै तिमीले तिमीलाई फल्न र फुलाउनलाई सहयोग गर्दै छौ हामीले कर्तव्य हो तिम्रो यहाँ विद्यार्थी पढाउने असल र अनुशासित विद्यार्थीलाई बढाउने जनता मावि तिम्रो नाम धेरै ज्ञान दिने ठाउँ समय सँगै परिवर्तन भयो युवाहरू समितिमा रहयो जनता मावि स्कुलको प्रगति र उन्नतिको शुभकामना व्यक्त गर्न चाहन्छु by Bijay kumar Mehta

जनता मा.वि.तिमी

समितिमा रहयो पुराना पुस्ताहरू, तिमीलाई पुरानै बनाएर राख्यो समय सँगै परिवर्तन भयो, युवाहरू समितिमा रहयो तिम्रो अनुहार चम्किएको छ तिमी मुस्कुराई मुस्कुराई लम्किएको छ सम्पूर्ण बिद्यार्थीलाई पढाउने तिमी विद्यालय हौ तिमी गौतमपुरको बीच, मुटुभित्र खेल्दै छौ हिजो अस्ति आजसम्म तिमीले धेरै विद्यार्थी पढायौ गौतमपुरमा शिक्षित विद्यार्थी तिमीले बढायौ जनता मा.वि.तिमी सधै चम्किरहनु प्रगति र उन्नतिको बाटोमा सधै लम्किरहनु अन्धकार कु-संस्कार तिमीले सधै हटाउदै आयौ विद्यार्थी तिमी पनि असल बन्नलाई जनता मावि धायौ विकासका पूर्वाधार तिमी पनि एक हौ रे गौतमपुर बासीको तिमी मुटुभित्र छौ अरे उन्नति प्रगतिको बाटो रोज्नु सधै तिमीले तिमीलाई फल्न र फुलाउनलाई सहयोग गर्दै छौ हामीले कर्तव्य हो तिम्रो यहाँ विद्यार्थी पढाउने असल र अनुशासित विद्यार्थीलाई बढाउने जनता मावि तिम्रो नाम धेरै ज्ञान दिने काम समय सँगै परिवर्तन भयो युवाहरू समितिमा रहयो जनता मावि स्कुलको प्रगति र उन्नतिको शुभकामना व्यक्त गर्न चाहन्छु  by Bijay kumar Mehta 

जनता मा.वि.तिमी

समितिमा रहयो पुराना पुस्ताहरू, तिमीलाई पुरानै बनाएर राख्यो समय सँगै परिवर्तन भयो, युवाहरू समितिमा रहयो तिम्रो अनुहार चम्किएको छ तिमी मुस्कुराई मुस्कुराई लम्किएको छ सम्पूर्ण बिद्यार्थीलाई पढाउने तिमी विद्यालय हौ तिमी गौतमपुरको बीच, मुटुभित्र खेल्दै छौ हिजो अस्ति आजसम्म तिमीले धेरै विद्यार्थी पढायौ गौतमपुरमा शिक्षित विद्यार्थी तिमीले बढायौ जनता मा.वि.तिमी सधै चम्किरहनु प्रगति र उन्नतिको बाटोमा सधै लम्किरहनु अन्धकार कु-संस्कार तिमीले सधै हटाउदै आयौ विद्यार्थी तिमी पनि असल बन्नलाई जनता मावि धायौ विकासका पूर्वाधार तिमी पनि एक हौ रे गौतमपुर बासीको तिमी मुटुभित्र छौ अरे उन्नति प्रगतिको बाटो रोज्नु सधै तिमीले तिमीलाई फल्न र फुलाउनलाई सहयोग गर्दै छौ हामीले कर्तव्य हो तिम्रो यहाँ विद्यार्थी पढाउने असल र अनुशासित विद्यार्थीलाई बढाउने जनता मावि तिम्रो नाम धेरै ज्ञान दिने काम समय सँगै परिवर्तन भयो युवाहरू समितिमा रहयो जनता मावि स्कुलको प्रगति र उन्नतिको शुभकामना व्यक्त गर्न चाहन्छु by Bijay kumar Mehta

करवा चौथ व्रत

gautampur@online.com करवा चौथ व्रत विधि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विर्ण वामन पुराण में किया गया है। करवा चौथ पूजा विधि नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा (Karwa Chauth Puja Vidhi) करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।  पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए। पूजा की कुछ अन्य रस्मों में सास को बायना देना, मां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना आदि शामिल है। चन्द्रोदय समय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। करवा चौथ व्रत कथा महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।  साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।  साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।  साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।  इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।  कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ व्रत विधि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विर्ण वामन पुराण में किया गया है। करवा चौथ पूजा विधि नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा (Karwa Chauth Puja Vidhi) करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।  पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए। पूजा की कुछ अन्य रस्मों में सास को बायना देना, मां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना आदि शामिल है। चन्द्रोदय समय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। करवा चौथ व्रत कथा महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।  साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।  साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।  साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।  इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।  कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

जिम्मेदारी

ईश्वर काबिल लोगो को ही जिम्मेदारी सोपता है और उन लोगो की मद्दत भी करता है जो जिम्मेदारी को निभाते है ।