अक्सर हम लोग हिन्दू धर्म को जाती वाद को बढ़ावा देने के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं | सच ये है की वर्ण तो सभी समाजों में शुरू से ही प्रचलित रहे हैं | लेकिन हर वर्ण को एक निर्धारित कार्य सौंपा गया था | लेकिन किसी कार्य को छोटा या बड़ा बनाना किसी भी वेद में नहीं लिखा गया है |दलित और हरिजन जैसे नाम कहीं भी भारत के प्राचीन इतिहास में नहीं लिखे गए हैं | ये सब राजनीती द्वारा खेला गया एक गन्दा खेल है जिसने सभी जातियों को एक दुसरे से नफरत करना सिखा दिया है |