एक दिन शांतनु नदी के तट पर घूम रहे थे जब उनकी नज़र वहां नाव चलाती एक कन्या पर पड़ी | वह कन्या बहुत सुन्दर थी और शांतनु उसके रूप पर मुग्ध हो गए | उन्होनें उस कन्या के पिता के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा | निषाद राज ने कहा की उन्हें विवाह से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन शांतनु को उनकी कन्या सत्यवती के पुत्र को राज्य सौंपना होगा | ये सुन शांतनु मन मार वहां से चले गए | वह बेहद दुखी रहने लगे जिस कारण भीष्म ने उनके मंत्रियों से दुःख का कारण पुछा | वह स्वयं निषाद राज के घर गए और उन्हें ये वादा किया की वह जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा | यही नहीं उन्होनें आजीवन कुंवारे रहने की कसम भी खा ली | जिसे देख निषाद राज प्रसन्न हो गए और अपनी पुत्री को देवव्रत के साथ जाने दिया |