शरीर के छलनी होने के बावजूद भीष्म अपने प्राण नहीं त्यागते हैं | वह जानते थे की उन्हें मुक्ति सूर्य के उत्तरायण करने पर ही मिलेगी | इसलिए वह सूरज के उगने का इंतज़ार करने लगते हैं | इतनी पीड़ा में भी वह अपनी मृत्यु को स्थगित कर देते हैं क्यूंकि उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था |