हांलाकि गरुड़ का जन्म सतयुग में हुआ था उनका ज़िक्र त्रेता और द्वापर युग में भी देखा गया है |दक्ष प्रजापति ने अपनी विनीता नाम की कन्या का विवाह कश्यप ऋषि के साथ किया था | प्रसव के दौरान विनीता ने दो अण्डों को जन्म दिया | एक से अरुण और दुसरे से गरुड़ का जन्म हुआ |जहाँ अरुण सूर्य देव के रथ के सारथि बन गए गरुड़ ने विष्णुजी का वाहन बनना पसंद किया |जटायु और सम्पाती अरुण के पुत्र थे |बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य को छूने की इच्छा से उनकी तरफ उड़ान भरी | ऐसे में जटायु तो बीच में थम गए लेकिन सम्पाती आगे उड़ते ही रही | अंततः औरी के तेज़ से उनके पंख जल गए | बेहोश हो वो चंद्रमा के तट पर गिर गए | चन्द्रमा नाम के एक मुनि ने उन पर दया कर उनका उपचार किया | साथ ही उन्हें आशीर्वाद दिया की त्रेता युग में सीता की खोज में निकले वानरों के दर्शन से पंख दुबारा जम जायेंगे |