प्राचीन काल में प्रार्थना के स्थल के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाता था |अगर आप उस काल में बने मंदिरों की वास्तुकला पर ध्यान देंगे तो आपको एहसास होगा की उनमें से सभी अक्सर पिरामिड के आकार में होते थे |इसके इलावा कृषि मुनियों की कुटिया और कुछ घरों का निर्माण भी इसी शैली में होता था |इसके बाद रोमन,चीन और अरब वास्तुकला का प्रभाव भारतीय निर्माण कला में होने लगा और मंदिरों के निर्माण की शैली में परिवर्तन आने लगा |प्राचीन काल में मंदिर के स्तंभों इत्यादि पर ही मूर्ति प्रतिष्ठित की जाती थी | उस मंदिर में पूजा नहीं होती थी |वह सिर्फ ध्यान या मनन के स्थान हुआ करते थे |मध्यकालीन युग में पूजा में मनमानी करने का चलन शुरू हुआ जब लोगों ने आरती और पूजा के नए तरीके शुरू कर दिए |