रावण के पिता विश्वेश्रवा महान ज्ञानी ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे| ये तब की बात है जब विष्णु के डर से सुमाली और माल्यवान जैसे दैत्य सब रसातल में छुप कर बैठ गए थे |एक दिन सोमाली अपनी पुत्री केकसी को लेकर रसातल से बाहर आया तो उसका सामना विश्वेश्रवा के पुत्र कुबेर से हुआ | ये देख सोमाली को एक युक्ति सूझी और उसने अपनी पुत्री से कहा की वह विश्वेश्रवा के सामने स्वयं से विवाह का प्रस्ताव रखे | जब ऋषि ने केकसी को देखा तो उन्होनें कहा की में जानता हूँ की तुम यहाँ किस प्रयोजन से आई हो | लेकिन ये समय उपयुक्त नहीं है और अब तुम्हारी जो भी संतानें होंगी वह राक्षीय प्रवृत्ति की होंगी |

ऐसे में केकसी ऋषि के चरणों में गिर उनसे कहने लगी की आपका पुत्र ऐसा कैसे हो सकता है | उसे कुछ तो आशीर्वाद दीजिये | तो ऋषि ने कहा की आखिरी पुत्र धर्मात्मा पैदा होगा | कुछ समय बाद केकसी की कोख से रावण का जन्म हुआ |उसके १० सर थे जिस कारण उसे दस्ग्रीव कहा जाने लगा |उसके बाद पैदा हुआ कुम्भकरण जो इतना विशाल था की वैसा आजतक कोई नहीं हुआ | कुंभकर्ण के बाद पुत्री सूर्पणखा और फिर विभीषण का जन्म हुआ। 

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