जब कोई राजा चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता था तब वह इस यज्ञ का आयोजन करता था | इस यज्ञ में राजा अपने एक अश्व को सभी आसपास के राज्यों में भेजता था | जो राज्य उसके घोड़े को नहीं पकड़ते थे इसका मतलब था वह अपनी हार स्वीकार कर आत्मसम्पर्पण कर रहे हैं | लेकिन अगर कोई राज्य उस घोड़े को पकड़ लेता था तो उसको राजा से युद्ध करना पड़ता था | ऐसा पुराणों में लिखा है की जो व्यक्ति 100 बार अश्वमेध यज्ञ को संपन्न कर लेता था उसे इंद्र की पदवी प्राप्त होती थी |