ये तब की बात है जब पांडव वनवास काट रहे थे | दुर्योधन अपने पांडव भाइयों को कष्ट देने की सोचता था |ऐसे में वह एक दिन दुर्वाषा ऋषि से अनुरोध करता है की वह उनके भाइयों के यहाँ दोपहर के समय खाना खाने जायें | दुर्वासा उनकी बात मान जाते हैं | द्रौपदी के पास एक अक्षय पात्र था जिससे वह कई लोगों को एक साथ भोजन करा सकती थीं | लेकिन एक बार वह स्वयं खाना खा लेती थीं तो वह पात्र खाना नहीं दे सकता था |ऐसे में जब दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ वहां पहुँचते हैं तो द्रौपदी परेशानी में पड़ जाती हैं | वह ऋषि को स्नान के लिए जाने को कह कृष्ण को मदद की गुहार लगाती हैं | कृष्ण वहां प्रकट होते हैं और अक्षय पात्र को देखने की कहते हैं |उसमें थोड़े से चावल के दाने देख वह उन्हें खा लेते हैं | कृषि दुर्वासा को स्नान करते हुए पेट भर जाने जैसे अनुभव होता है और वह वहीँ से अपने आश्रम चले जाते हैं |