इसा पूर्व 1200 में गणित ज्ञान को वेदों में काफी विस्तार से बताया गया था |इन किताबों में अंकों को सामान्यतः दस की शक्तियों के संयोजन के माध्यम से ज़ाहिर किया गया | मसलन 365 को तीन सौ (3x10²) 6 दस (6x10¹)और 5 (5x10⁰) लिखा जा सकता था |हांलाकि यहाँ आप देखेंगे की दस की शक्ति को प्रतीकों का सेट के बजाय एक नाम से पेश किया जाता था | ये कहना जायज़ होगा की 10 की शक्तियों के इस अभिव्यक्ति ने दशमलव-स्थान मूल्य प्रणाली के विकास में बहुत बड़ा योगदान किया है |
इसा पूर्व 3 सदी से हमें ब्राह्मी संख्या के विकास की भी लिखित सबूत मिलते हैं |एक बार शून्य की खोज हो गयी तो आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए गणित की नींव रखने में वह काफी कारगर साबित हुआ |