मुल्ला नसीरुद्दीन की बुद्धि और प्रतिभा की लोग बहुत तारीफ़ करते थे | कुछ लोग उनको मुर्ख गधा भी कहते थे | उनके बुद्धिचातुर्य के बारे में एक एक कथा बहुत प्रचलित है जो दोस्तों हम आपको आज सुनाते है |
एक समय में मुल्ला नसीरुद्दीन इतने गरीब हो गये कि उनको घर घर भटक के भीख माँगना पड़ता था | मुल्ला का बड़ी मुश्किल से पेट भरता था | मुल्ला हमेशा अपने नगर के बाजार में भीख मांगने जाते थे | इस बात से उनके विरोधियो के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान आ गयी थी | वो लोग बहुत खुश थे और मुल्ला को जलाने के लिए वो हर दिन कोई ना कोई षडयंत्र रचते रहते थे |
वो मुल्ला के सामने खड़े होकर अपने दोनों हाथो में सिक्का रखते थे जिसमे एक सोने का और दूसरा चांदी का सिक्का रहता था | वो मुल्ला को दोनों में से कोई एक सिक्का लेने के लिए कहते थे | मुल्ला जी हमेशा चांदी का सिक्का पसंद करते थे | उनकी इस मुर्खता से उनके विरोधी इतने खुश हो जाते थे कि वो मुल्ला के सामने ही नाचने लगते थे लेकिन कभी मुल्ला इस बात का बुरा नही मानते थे |
एक दिन उस नगर में एक सज्जन भ्रमण के लिए आये | उन्होंने यह नजारा अपनी आँखों से देखा तो उनको मुल्ला पर बड़ा तरस आया | वह उनके पास गये और कोने में ले जाकर उनसे कहा "मुल्लाजी आप जानते है कि चाँदी के सिक्के की तुलना में सोने के सिक्के की कीमत ज्यादा है फिर भी आप हमेशा चाँदी का सिक्का ही क्यों पसंद करते है ? आप शायद जानते नही लेकिन इस बहाने लोग आपकी खिल्ली उड़ाते है | आपको तो सोने का सिक्का पसंद करना चाहिए "
सज्जन की बात सुनकर मुल्ला थोड़े देर तक खामोश रहे | उन्होंने सज्जन के प्रति अपना आभार व्यक्त किया और साथ ही कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर सज्जन मान गये कि सच में मुल्ला दुनिया के बुध्दिशाली व्यक्तियों में से एक है "
मुल्ला ने कहा था "सज्जन आपकी बात मै भी जानता कि चांदी के सिक्के की तुलना में सोने का मूल्य ज्यादा है लेकिन आप समझ नही रहे है | मैंने जिस दिन से सोने का सिक्का ले लिया , उस दिन ये लोग समझ जायेंगे कि मै उनको मुर्ख समझता हु और बाद में वह कभी मेरे सामने दोनों सिक्के नही रखेंगे | आप को बताना चाहूँगा कि आज मैंने स्वयं मुर्ख बनकर कई सारे चांदी के सिक्के इकट्ठे कर लिए है और भी मुझे इसी प्रकार चांदी के सिक्के मिलते रहेंगे जिससे मेरी दरिद्रता दूर हो जायेगी | कभी कभी मुर्ख बनना भी फायदेमंद रहता है "