कामशास्त्र और काम सूत्र दोनों ही ग्रंथ रहस्य और विवादों से भरे हैं। हिन्दू धर्म के चार सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से काम के कई अर्थ है। काम का अर्थ कार्य, इच्छा और आनंद से है। प्रत्येक हिन्दू को सर्वप्रथम धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ब्रह्मचर्य आश्रम इसी से संबंधित है। धर्म और संसार का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही व्यक्ति को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर अर्थ का चिंतन करना चाहिए। सभी तरह के सांसारिक सुख प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति होना चाहिए।

  

प्राचीन काल में चार वेदों के साथ ही चार अन्य शास्त्र लिखे गए थे- धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र। चारों शास्त्र ही मनुष्य जीवन का आधार है। चारों से अलग मनुष्य जीवन की कल्पना नहीं कही जा सकती। कामशास्त्र पर आधारित ही बहुत बाद में वात्स्यायन ने कामसूत्र लिखा।

 

कहते हैं कि नंदी ने भगवान शंकर और पार्वती के पवित्र प्रेम के संवादों को सुनकर कामशास्त्र लिखा। नंदी नाम का बैल भगवान शंकर का वाहन माना जाता है। क्या कोई बैल एक हजार अध्यायों का शास्त्र लिख सकता है? हमारे जो तंत्र के जानकार हैं उनका मानना है कि सिद्ध आत्मा के लिए शरीर के आकार का महत्व नहीं रह जाता।

  

कामशास्त्र तो प्रारंभ में अर्थशास्त्र और आचार शास्त्र का हिस्सा था। पुराण, स्मृतियों अनुसार प्रारंभ में ब्रह्मा ने एक लाख अध्यायों का एक विशालकाय ग्रंथ बनाया। उस ग्रंथ का मंथन कर मनु ने एक पृथक आचार शास्त्र बनाया, जो मनुसंहिता या धर्मशास्त्र के नाम से विख्यात हुआ।

 

ब्रह्मा के ग्रंथ के आधार पर बृहस्पति ने ब्रार्हस्पत्यम् अर्थशास्त्र की रचना की। ब्रह्मा के ग्रंथ के आधार पर ही भगवान शंकर के अनुचर नंदी ने एक हजार अध्यायों के कामशास्त्र की रचना की।

 

कामशास्त्र के अधिक विस्तृत होने के कारण आचार्य श्वेतकेतु ने इसको संक्षिप्त रूप में लिखा। माना जाता है कि कामशास्त्र के आधार पर श्वेतकेतु ने पांच सौ अध्यायों का संक्षिप्त संस्करण तैयार किया। लेकिन पांच सौ अध्यायों वाला यह ग्रंथ भी काफी बड़ा था अतः महर्षि ब्राभव्य ने ग्रन्थ का पुनः संक्षिप्तिकरण कर उसे एक सौ पचास अध्यायों में सीमित एवं व्यवस्थित कर दिया। ब्राभव्य के पहले कामशास्त्र वाचिक परंपरा का अंग था। ब्राभव्य  ने ही उसे शास्त्र का रूप दिया। कालान्तर में ब्राभव्य के कामशास्त्र में अनेक चीजें जोड़ी गईं और अनेक अध्यायों को स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया। यही वजह है कामसूत्र ग्रंथ न होकर संग्रह है।

 

इसके अलावा कामशास्त्र पर संस्कृत में अनंगरंग, कंदर्प चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्व, पंचसायक, रतिकेलि कुतूहल, रति मंजरी, रति रहस्य, रतिरत्न प्रदीपिका, स्मरदीपिका, श्रंगारमंजरी, आदि कई ग्रंथ हैं। इसके अतिरिक्ति कुचिमार मं‍त्र, कामकलावाद तंत्र, काम प्रकाश, काम प्रदीप, काम कला विधि, काम प्रबोध, कामरत्न, कामसार, काम कौतुक, काम मंजरी, मदन संजीवनी, मदनार्णव, मनोदय, रति सर्वस्व, रतिसार, वाजीकरण तंत्र आदि संबंधित ग्रंथ हैं।

 

कामसूत्र : महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना की। इसे विश्व का प्रथम यौन शिक्षा ग्रंथ माना जाता है। कामसूत्र के रचनाकार का मानना है कि दाम्पत्य उल्लास एवं संतृप्ति के लिए यौन-क्रीड़ा आवश्यक है। वास्तव में सेक्स ही दाम्पत्य सुख-शांति की आधारशिला है। काम के सम्मोहन के कारण ही स्त्री-पुरुष विवाह सूत्र में बंधने का तय करते हैं। अतः विवाहित जीवन में काम के आनन्द की निरन्तर अनुभूति होते रहना ही कामसूत्र का उद्देश्य है। जानकार लोग यह सलाह देते हैं कि विवाह पूर्व कामशास्त्र और कामसूत्र को नि:संकोच पढ़ना चाहिए।

 

संदर्भ ग्रंथ : संस्कृताचार्य कोक्कोकृत 'रतिरहस्यम्'। प्रकाशन चौखम्बा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी।, हिन्दी व्याख्याकार डॉ. श्रीरामानन्द शर्मा।

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