प्राचीन भारत में नागार्जुन नाम के महान रसायन शास्त्री हुए हैं। इनकी जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। रसायन शास्त्र में उनकी दो पुस्तकें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' हैं।
रसरत्नाकर में इन्होंने रसायन के बारे में बहुत ही गुड़ रहस्यों को उजागर किया है। इसमें उन्होंने अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन विधि, रजत के धातुकर्म का वर्णन तथा वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी विधियां वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त रसरत्नाकर में रस (पारे के योगिक) बनाने के प्रयोग दिए गए हैं। इसमें देश में धातुकर्म और कीमियागरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया था। इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताए गए हैं। सबसे रहस्यमयी बात यह कि इसमें सोना बनाने की विधि का भी वर्णन है।
पुस्तक में विस्तारपूर्ण दिया गया है कि अन्य धातुएं सोने में कैसे बदल सकती हैं। यदि सोना न भी बने रसागम विशमन द्वारा ऐसी धातुएं बनाई जा सकती हैं जिनकी पीली चमक सोने जैसी ही होती थी। इसमें हिंगुल और टिन जैसे केलमाइन से पारे जैसी वस्तु बनाने का तरीका दिया गया है। आज भी भारत के सुदूर प्रान्तों में कुछ ज्ञानी जानकार, योगी साधक हो सकते हैं जो नागार्जुन द्वारा बताई गई विधि से सोने का निर्माण करने में सक्षम है।
इस किताब में एक जगह शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच रोचक संवाद है। शालिवाहन यक्षिणी से कहता है- 'हे देवी, मैंने ये स्वर्ण और रत्न तुझ पर निछावर किए, अब मुझे आदेश दो।' शालिवाहन की बात सुनकर यक्षिणी कहती है- 'मैं तुझसे प्रसन्न हूं। मैं तुझे वे विधियां बताऊंगी, जिनको मांडव्य ने सिद्ध किया है। मैं तुम्हें ऐसे-ऐसे योग बताऊंगी, जिनसे सिद्ध किए हुए पारे से तांबा और सीसा जैसी धातुएं सोने में बदल जाती हैं।'