किरण दग्ध, विशुष्क अपने कण्ठ से अब शीत सीकर

ग्रहण करने, तीव्र वर्धित तृषा पीड़ित आर्त्त कातर

वे जलार्थी दीर्घगज भी केसरी का त्याग कर डर

घूमते हैं पास उसके, अग्नि सी बरसी हहर कर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

Comments
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel