प्रिये ! आई शरद लो वर!

मदिर मंथर चल मलय से

अग्रशाख विकंप आकुल

प्रचुर पुष्पोद्गम मनोहर

चारुतर ले नर्म कोंपल

मत्त भ्रमरों ने पिया

मद प्रस्रवण हो विकल जिस पर

मधुर चमरिक वृक्ष चित्त

विदीर्ण किसको दें नहीं कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
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