धवल चंदन लेप पर

सित हार उर पर डोल सुन्दर

भुजाओं पर वलय अंगद

जघन पर रसना क्वणन कर

नितंबिनि उर अनगातुर

में नवल-श्री भर रहे हैं

हेम कमलों से मुखों पर

पत्र लेखन खिल रहे हैं,

स्वेद कन मुक्ता सदृश

उस पत्र रचना में झलक चल

फेल जाते हैं, नया

उन्माद नयनों में समाकुल

प्रिये मधु आया सुकोमल!

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