शुक्रवार के दिन सुबह स्नान करके पवित्र हो जायें और सारे दिन माँ के
स्वरूप का स्मरण करें ।दिये गये सारी सामग्री एकत्रित कर लें।शाम को स्वच्छ
वस्त्र पहन कर, पूजन करने वाले स्त्री या पुरुष ,पूर्व दिशा की ओर मुख
करके आसन पर बैठ जाएँ। अब चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएँ । उस पर वैभव लक्ष्मी
जी के सभी आठ चित्र तथा बीच में श्री यंत्र रखें ।चौकी पर चावल का ढ़ेर
रखें, उसपर जल से भरा हुआ ताम्बे का कलश रखें। कलश के उपर कटोरी में सोने
या चाँदी का गहना अथवा सिक्का या रूपया रखकर कलश को ढ़क दें।
अब सर्वप्रथम “श्री यंत्र” का ध्यान करें उसके बाद “ माँ वैभव लक्ष्मी” जी
के सभी आठ स्वरूपों का ध्यान कर दोनों हाथ जोड़कर दिये हुए प्रार्थना को
उच्चारित करते हुए नमस्कार करें। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह
व्रत करने का दृढ संकल्प माँ के सामने करें और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी
करने को माँ लक्ष्मीजी से विनती करें।
धान्य लक्ष्मी हे धान्य लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
गज लक्ष्मी
हे गज लक्ष्मी ! मां जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
अधि लक्ष्मी
हे अधि लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
विजय लक्ष्मी
हे विजय लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
संतान लक्ष्मी
हे संतान लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
ऐश्वर्य लक्ष्मी
हे ऐश्वर्य लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
वीर लक्ष्मी
हे वीर लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
धन लक्ष्मी
हे धन लक्ष्मी मां! जगत का कल्याण करने वाली,
सबकी झोलियां भरने वाली,मेरा भी कलयाण करना।
लक्ष्मी स्तवन
उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करें ।