यक्षिणी साधना भी देव साधना के समान ही सकारात्मक शक्ति प्रदान करने वाली है | आज के समय में बहुत ले लोग यक्षिणी साधना को किसी चुड़ैल साधना या दैत्य प्रकर्ति की साधना के रूप में देखते है | किन्तु यह पूर्णरूप रूप से असत्य है | जिस प्रकार हमारे शास्त्रों में 33 देवता होते है उसी प्रकार 8 यक्ष और यक्षिणीयाँ भी होते है | गन्धर्व और यक्ष जाति को देवताओं के समान ही माना गया है जबकि राक्षस और दानव को दैत्य कहा गया है | इसलिए जब कभी भी आप किसी यक्ष या यक्षिणी की साधना/(Yakshini Sadhana) करते है तो ये देवताओं की तरह ही प्रसन्न होकर आपको फल प्रदान करती है |

हमारे पुराणों में बार बार ये उल्लेख मिलता है की यक्षों की साधना से इंसानो को काफी जल्दी सिद्धियाँ हासिल होती है।  

'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा’, यह मनोहारिणी यक्षिणी मंत्र है, जिसकी साधना रात के अंधेरे में करीब एक माह तक होती है। अगर-तगर की धूप में इस यक्षिणी की साधना होती है। ऐसा माना जाता है कि यह सोने की मुद्राएं प्रदान करती है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा’, यह साधना अपने शयन कक्ष में ही होती है। इसके लिए आपको एकांत की जरूर है और एक बात ध्यान रहे कि मंत्र जाप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर ही हो। यह यक्षिणी आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।

नटी यक्षिणी की साधना अशोक के पेड़ के नीचे बैठकर की जाती है ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ नटि स्वाहा’, मछली, मदिरा और अन्य मांस की बली के बिना यह साधना अधूरी है। एक महीने के पश्चात आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

'ॐ ह्रीं कनकावती मैथुन प्रिये आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।' एकांत में वटवृक्ष के समीप मद्य-मांस का प्रयोग नेवैद्य के लिए नित्य करते हुए साधना की जाती है।

घर के एकांत स्थान पर बैठकर पूरे एक महीने तक ‘ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ-आगच्छ स्वाहा’ मंत्र के साथ यह साधना की जाती है। महीने के अंत में आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

वटवृक्ष के नीचे बैठकर चंपा के फूलों के प्रयोग से विचित्रा यक्षिणी की साधना ‘ॐ ह्रीं विचित्रे चित्र रूपिणि मे सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा’ मंत्र के सहारे की जाती है। एक महीने के पूजन के बाद आपकी इच्छा पूर्ण होती है और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।

‘ॐ ह्रीं विभ्रमे विभ्रमांग रूपे विभ्रमं कुरु रहिं रहिं भगवति स्वाहा’ मंत्र के साथ विभ्रमा यक्षिणी साधना संपन्न करें। यह साधना श्मशान भूमि पर ही की जाती ह, अगर यह यक्षिणी प्रसन्न हो जाएं तो यह ताउम्र आपका भरण-पोषण करेंगी।

यक्षिणी साधना करते समय ध्यान देने योग्य : –
यक्षिणी साधना अन्य सभी तंत्र साधनाओं की अपेक्षा थोड़ी कठिन है | इसमें साधक को शारीरिक व मानसिक रूप से क्षति पहुँच सकती है | साधना के दौरान साधक को भोग और वासना के माध्यम से भटकाने के प्रयास किये जा सकते है | कुछ डरावनी अनुभूति भी हो सकती है | इसलिए यक्षिणी साधना/(Yakshini Sadhana) के लिए सबसे जरुरी नियम है कि इसे किसी योग्य गुरु की देख-रेख में संपन्न किया जाये | बिना गुरु के सिर्फ किताबों के सहारे इस साधना को करना, आपको किसी बड़ी मुशीबत में डाल सकता है |

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