आरती कुंजबिहारीकी । गिरिधर कृष्ण मुरारीकी ॥ धृ. ॥

गलेंमें वैजयंतीमाला । बाजवे मुरली मुरलिवाला ॥

श्रवणमें कुण्डल जगपाला । नंदेके नंदही नंदलाल ॥

घनसम अंगकांति काली । राधिका चमक रही बिजली ॥

भ्रमरसम अलक । कस्तुरीतिलक चंदसि झलक ललित सब राधें प्यारीकी ॥ गिरी. ॥ १ ॥

कनकमय मोरमुगुठ बिलसे । देवतादर्शनको तरसे ॥

गगनसे सुमन बहुत बरसे । चंद्रिका शरदृष्टी हरसे ॥

चंहु फेर ख्याल गोपधेनु । ब्रज हरि जमुनातटरेणु ॥

हंसत मुखमंद । वरद सुखकंद छुटे बहु बंद ।

प्रीत है गोपकुमारीकी ॥ गिरी ॥ २ ॥

पीतधृतवसन चरणरागा । लाग रहि गोपी अनुरागा जहांसे निकली भवगंगा ॥

त्रिजगमलहरणीं हरगंगा । रंगसे दंग हुआ मै दास ॥

श्रीधर सदाचरण पास । बचनमो चंग ॥ और मृदंग ।

गवलिनीसंग ॥ लाज रह सब वज्रनारीकी ॥ गिरी ॥ ३ ॥

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