आरती गौरिनंदनाची। गणाधिष विघ्ननाशनाची॥धृ॥

कमलसम अमरद्विरदवक्त्रां। एकरद मोदकर चरिंत्रा।
तुंदउदरांक लघुविचित्रा। दिव्य क्रमनीय पूतगात्रा॥चाल॥
पूर्ण राकेशतिलकभाला। शिरसिधृतगरप, मथितविधिवरप चकिरहरसुरप, अमिंतकृतवृद्धि मंगलाची॥
श्रीवृद्धि सत्सुमंगलाची॥ आरती॥१॥

तडित्सम हाटकपीत पट तें। सुवेष्ठित मेखलादिकटितें॥
मूषकारुढ सदृढघटितें। भयद तनु धरुनी अर्धत्रुटितें॥चाल॥
अटनि अरिभृंग पणिकमळी। कमलामरदंग, पिटिति करिभृदगसमरातिसुरंग भंगुनि सिंदुराची॥
सुरंग भंगुनि सिंदुराची॥ आरती॥२॥

हिमालयतन्वि  ह्रदयतोषा। सुखालय सदय सुजनपोषा॥
दॆन्य विपुदुपाद पूर्णशोषा। सदाशिवपद दुरितमीषा॥ चाल॥
समर सुरसाह्यकरण मान्या। अमितखल कंदन, करित यमसदन भरितनिजपदन, तोद्धवरवदन जयरवाची॥
करुनि ध्वनि गाति कीर्ती ज्याची॥ आरती॥३॥

मदन सौंदर्य चरणापाणी। ब्रह्मविद्यार्थ सिद्धखाणी॥
शिवप्रिय स्तविती विबुधश्रेणी। करित रविदास ललित वाणी॥ चाल॥
वरदमतिमधुरबाह्य थाया। कीर्ति गुणि अगुण, वर्ति परि सगुण, मूर्ति जन चरण वर्ति भवअर्तितमहाराची॥
जगदगुरु जननि हरिहरांची ॥ आरती ॥४॥

आपण साहित्यिक आहात ? कृपया आपले साहित्य authors@bookstruckapp ह्या पत्त्यावर पाठवा किंवा इथे signup करून स्वतः प्रकाशित करा. अतिशय सोपे आहे.
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel