बहुत प्राचीन समय की बात है कि एक बार नैमिषारण्य में कथाकार सूतजी पधारे। उन्हें आया देखकर वहां रहने वाले ऋषि मुनियों ने उनका अभिवादन किया। अभिवादन के बाद सभी ऋषि- मुनि अपने-अपने आसन पर बैठ गए तब उन्हीं में से किसी एक ने सूतजी से कहा-''हे सूत जी ! आप लोक और लोकोत्तर के ज्ञान-ध्यान से परिपूर्ण कथा वाचन में सिद्धहस्त हैं। हमारा आप से निवेदन है कि आप हमें हमारा मंगल करने वाली कथाएँ सुनायें।'' ऋषि-मुनियों से आदर पाकर सूतजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा-''आपने जो मुझे आदर दिया है वह सराहनीय है। मैं यहां आप लोगों को परम कल्याणकारी कथा सुनाऊंगा।'' सूतजी ने कहा-''बह्मा, विष्णु, महेश, ब्रह्म के तीन रूप हैं। मैं स्वयं उनकी शरण में रहता हूं। यद्यपि विष्णु संसार पालक हैं और वह ब्रह्मा की उत्पन्न की गयी सृष्टि का पालन करते हैं। ब्रह्मा ने ही सुर-असुर, प्रजापति तथा अन्य यौनिज और अयौनिज सृष्टि की रचना की है। रुद्र अपने सम्पूर्ण कल्याणकारी कृत्य से सृष्टि के परिवर्तन का आधार प्रस्तुत करते हैं। पहले तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि किस प्रकार प्रजाओं की सृष्टि हुई और फिर उनमें सर्वश्रेष्ठ देव भगवान गणेश का आविर्भाव कैसे हुआ। भगवान ब्रह्मा ने जब सबसे पहले सृष्टि की रचना की तो उनकी प्रजा नियमानुसार पथ में प्रवृत्ति नहीं हुई। वह सब अलिप्त रह गए। इस कारण ब्रह्मा ने सबसे पहले तामसी सृष्टि की, फिर राजसी। फिर भी इच्छित फल प्राप्त नहीं हुआ। जब रजोगुण ने तमोगुण को ढक लिया तो उससे एक मिथुन की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा के चरण से अधर्म और शोक से इन्सान ने जन्म लिया। ब्रह्मा ने उस मलिन देह को दो भागों में विभक्त कर दिया। एक पुरुष और एक स्त्री। स्त्री का नाम शतरूपा हुआ। उसने स्वयंभू मनु का पति के रूप में वरण किया और उसके साथ रमण करने लगी। रमण करने के कारण ही उसका नाम रति हुआ। फिर ब्रह्मा ने विराट का सृजन किया। तब विराट से वैराज मनु की उत्पत्ति हुई। फिर वैराज मनु और सतरूपा से प्रियव्रत और उत्तानुपात दो पुत्र उत्पन्न हुए और आपूति तथा प्रसूति नाम की दो पुत्रियां हुईं। इन्हीं दो पुत्रियों से सारी प्रजा उत्पन्न हुई। मनु ने प्रसूति को दक्ष के हाथ में सौंप दिया। जो प्राण है, वह दक्ष है और जो संकल्प है, वह मनु है। मनु ने रुचि प्रजापति को आपूति नाम की कन्या भेंट की। फिर इनसे यज्ञ और दक्षिणा नाम की सन्तान हुई। दक्षिणा से बारह पुत्र हुए, जिन्हें याम कहा गया। इनमें श्रद्धा, लक्ष्मी आदि मुख्य हैं। इनसे फिर यह विश्व आगे विकास को प्राप्त हुआ। अधर्म को हिंसा के गर्भ से निर्कति उत्पन्न हुई और अन्निद्ध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। फिर इसके बाद यह वंश क्रम बढ़ता गया। कुछ समय बाद नीलरोहित, निरुप, प्रजाओं की उत्पत्ति हुई और उन्हें रुद्र नाम से प्रतिष्ठित किया गया। रुद्र ने पहले ही बता दिया था कि यह सब शतरुद्र नाम से विख्यात होंगे। यह सुनकर ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और फिर इसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर मैथुनी सृष्टि का प्रारम्भ करके शेष प्रजा की सृष्टि बन्द कर दी। सूतजी की बातें सुनकर ऋषि-मुनियों ने कहा, ''आपने हमें जो बताया है उससे हमें बड़ी प्रसन्नता हुई है। आप कृपा करके हमें हमारे पूजनीय देव के विषय में बताइये। जो देवता हमें पूज्य हो और उसकी कृपा से हमारे और आगे आने वाली प्रजाओं के कल्याणकारी कार्य सम्पन्न हों।'' ऋषियों की बात सुनकर सूतजी ने कहा कि ऐसा देव तो केवल एक ही है और वह है महादेव और पार्वती के पुत्र श्री गणेश।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel