दोनों कुमार यद्यपि सर्यू को पहिचानते न थे मगर इन्दिरा की जुबानी उसका हाल सुन चुके थे इसलिए उन्हें शक हो गया कि यह सर्यू है। दूसरे राजा गोपालसिंह ने भी पुकारकर दोनों कुमारों से कहा कि इन्दिरा की मां सर्यू यही हैं और इन्द्रदेव ने कुमारों की तरफ बताकर सर्यू से कहा कि, “राजा वीरेन्द्रसिंह के दोनों लड़के यही कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह हैं जो तिलिस्म तोड़ने के लिए यहां आए हैं, इन्हीं की बदौलत तुम आफत से छूटोगी।”

दोनों कुमारों को देखते ही सर्यू दौड़कर पास चली आई और कुंअर इन्द्रजीतसिंह के पैरों पर गिर पड़ी। सर्यू उम्र में कुंअर इन्द्रजीतसिंह से बहुत बड़ी थी मगर इज्जत और मर्तबे के खयाल से दोनों को अपना-अपना हक अदा करना पड़ा, कुमार ने उसे पैर पर से उठाया और दिलासा देकर कहा, “सर्यू, इन्दिरा की जुबानी मैं तुम्हारा हाल पूरा-पूरा तो नहीं मगर बहुत कुछ सुन चुका हूं और हम लोगों को तुम्हारी अवस्था पर बहुत ही रंज है। परन्तु अब तुम्हें चाहिए कि अपने दिल से दुःख को दूर करके ईश्वर को धन्यवाद दो, क्योंकि तुम्हारी मुसीबत का जमाना अब बीत गया और ईश्वर तुम्हें इस कैद से बहुत जल्द छुड़ाने वाला है। जब तक हम इस तिलिस्म में हैं तुम्हें बराबर अपने साथ रक्खेंगे और जिस दिन हम दोनों भाई तिलिस्म के बाहर निकलेंगे उस दिन तुम भी दुनिया की हवा खाती हुई मालूम करोगी कि तुम्हें सताने वालों में से अब कोई भी स्वतन्त्र नहीं रह गया और न अब तुम्हें किसी तरह का दुःख भोगगा पड़ेगा। तुम्हें ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहिए कि दुष्टों के इतना ऊधम मचाने पर भी तुम अपने पति और प्यारी लड़की को सिवाय अपनी जुदाई के और किसी तरह के रंज और दुःख से खाली पाती हो। ईश्वर तुम लोगों का कल्याण करें।”

इसके बाद कुमार ने कमरे की तरफ सिर उठाकर देखा। राजा गोपालसिंह ने इन्द्रदेव की तरफ इशारा करके कहा, “इन्दिरा के पिता इन्द्रदेव को हमने बुलवा भेजा है। शायद आज के पहिले आपने इन्हें न देखा होगा।”

उस समय पुनः इन्द्रदेव ने झुककर कुमार को सलाम किया और कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने सलाम का जवाब देकर कहा, “आपका आना बहुत अच्छा हुआ। आप इन दोनों को अपनी आंखों से देखकर प्रसन्न हुए होंगे। कहिए रोहतासगढ़ का क्या हाल है'

इन्द्रदेव - सब कुशल है। मायारानी और दारोगा तथा और कैदियों को साथ लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह चुनारगढ़ की तरफ रवाना हो गये, किशोरी, कामिनी और कमला को अपने साथ लेते गए। लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली तथा नकली बलभद्रसिंह को उनसे मांगकर मैं अपने घर ले गया और उन्हें उसी जगह छोड़कर राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार यहां चला आया हूं। यह हाल संक्षेप में मैंने इसलिए बयान किया कि राजा गोपालसिंह की जुबानी वहां का कुछ हाल आपको मालूम हो गया है, यह मैं सुन चुका हूं।

इन्द्रजीत - लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को आप यहां क्यों न ले आए?

इसका जवाब इन्द्रदेव ने तो कुछ भी न दिया मगर राजा गोपालसिंह ने कहा, “ये असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए अपने मकान से रवाना हो चुके थे जब रास्ते में मेरा पत्र इन्हें मिला। परसों एक पत्र मुझे कृष्णा जिन्न का भेजा हुआ मिला था। उसके पढ़ने से मालूम हुआ कि मनोरमा भेष बदलकर राजा साहब के लश्कर में जा मिली थी जिसका पता लगाना बहुत ही कठिन था और वह किशोरी, कामिनी को मार डलने की सामर्थ्य रखती थी क्योंकि उसके पास तिलिस्मी खंजर भी था, इसलिए कृष्णा जिन्न ने राजा साहब को लिख भेजा था कि बहाना करके गुप्त रीति से किशोरी, कामिनी और कमला को हमारे फलाने तिलिस्मी मकान में (जिसका पता-ठिकाना और हाल भी लिख भेजा था) शीघ्र भेज दीजिए, मैं वहां मोजूद रहूंगा और उनके बदले में अपनी लौंडियों को किशोरी, कामिनी और कमला बनाकर भेज दूंगा जो आपके लश्कर में रहेंगी! ऐसा करने से यदि मनोरमा का वार चल भी गया तो हमारा बहुत नुकसान न होगा। राजा साहब ने भी यह बात पसन्द कर ली और कृष्णा जिन्न के कहे मुताबिक कामिनी और कमला को खुद तेजसिंह रथ पर सवार कराके कृष्णा जिन्न के तिलिस्मी मकान में छोड़ आए तथा उनकी जगह भेष बदली हुई लौंडियों को अपने लश्कर में ले गये। आज रात को कृष्णा जिन्न का दूसरा पत्र मुझे मिला जिससे मालूम हुआ कि राजा साहब के लश्कर में नकली किशोरी, कामिनी और कमला मनोरमा के हाथ से मारी गईं और मनोरमा गिरफ्तार हो गई। आज के पत्र में कृष्णा जिन्न ने यह भी लिखा है कि तुम इन्द्रदेव को एक पत्र लिख दो कि वह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को भी बहुत जल्द उसी तिलिस्मी मकान में पहुंचा दें जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं, मैं (कृष्णा जिन्न) स्वयं यहां मौजूद रहूंगा और दो-तीन दिन के बाद दुश्मनों का रंग-ढंग देखकर किशोरी, कामिनी, कमला, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को जमानिया पहुंचा दूंगा। इसके बाद राजा वीरेन्द्रसिंह की आज्ञा होगी या जब उचित होगा तो सभों को चुनार पहुंचाया जायगा और उन लोगों के सामने वहां भूतनाथ का मुकद्दमा होगा। कृष्णा जिन्न का यह लिखना मुझे बहुत पसन्द आया, वह बड़ा ही बुद्धिमान और नेक आदमी है। जो काम करता है उसमें कुछ-न-कुछ फायदा समझ लेता है, अस्तु मैं चाहता हूं कि (इन्द्रदेव की तरफ इशारा करके) इन्हें आज ही यहां ये बिदा कर दूं जिससे ये उन तीनों औरतों को ले जाकर कृष्णा जिन्न के तिलिस्मी मकान में पहुंचा दें। वहां दुश्मनों का डर कुछ भी नहीं है और किशोरी तथा कामिनी को भी इन लोगों से मिलने की बड़ी चाह है जैसा कि कृष्णा जिन्न के पत्र से मालूम होता है।”

ये बातें जो राजा गोपालसिंह ने कहीं दोनों कुमारों को खुश करने के लिए वैसी ही थीं जैसे चातक के लिए स्वाती की बूंद। दोनों कुमारों को किशोरी और कामिनी के मिलने की आशा ने हद से ज्यादा प्रसन्न कर दिया। इन्द्रजीतसिंह ने मुस्कुराकर गोपालसिंह से कहा, “कृष्णा जिन्न की बात मानना आपके लिए उतना ही आवश्यक है जितना हम दोनों भाइयों के लिए तिलिस्म तोड़कर चुनारगढ़ पहुंचना। आप बहुत जल्द इन्द्रदेव को यहां से रवाना कीजिए।”

गोपाल - ऐसा ही होगा।

आनन्द - कृष्णा जिन्न का वह तिलिस्मी मकान कहां पर है और यहां से कै दिन की राह...।

गोपाल - यहां से कुल पन्द्रह कोस पर है।

इन्द्र - वाह-वाह, तब तो बहुत नजदीक है, (इन्द्रदेव से) मेरी तरफ से कृष्णा जिन्न को प्रणाम करके बहुत धन्यवाद दीजियेगा क्योंकि उन्होंने बड़ी चालाकी से किशोरी, कामिनी और कमला को बचा लिया।

इन्द्रदेव - बहुत अच्छा।

इन्द्र - आप तो असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए घर से निकले थे, उनका...।

इन्द्रदेव - (राजा गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) आप कहते हैं कि नकली बलभद्रसिंह ने तुम्हें धोखा दिया, तुम अब उनकी खोज मत करो क्योंकि भूतनाथ ने असली बलभद्रसिंह का पता लगा लिया और उन्हें छुड़ा चुनारगढ़ ले गया।

गोपाल - हां कृष्णा जिन्न ने मुझे यह भी लिखा था।

इन्द्र - (मुस्कुराकर) तब तो इस खबर में किसी तरह का शक नहीं हो सकता।

इसके बाद दुनिया के पुराने नियमानुसार और बहुत दिनों से बिछुड़े हुए प्रेमियों के मिलने पर जैसा हुआ करता है उसी के मुताबिक इन्द्रदेव और सर्यू में कुछ बातें हुईं, इन्दिरा ने भी मां से कुछ बातें कीं और तब इन्दिरा और इन्द्रदेव को साथ लेकर राजा गोपालसिंह कमरे के बाहर हो गए।

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