संध्या होने में अभी दो घंटे से ज्यादे देर है मगर सूर्य भगवान पहाड़ की आड़ में हो गये इसलिए उस स्थान में जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं पूरब की तरफ वाली पहाड़ी के ऊपरी हिस्से के सिवाय और कहीं धूप नहीं है। समय अच्छा और स्थान बहुत ही रमणीक मालूम पड़ता है। भैरोसिंह एक पेड़ के नीचे बैठे हुए कुछ बना रहे हैं और किशोरी, कामिनी और कमला बंगले से कुछ दूर पर एक पत्थर की चट्टान पर बैठी बातें कर रही हैं।
कमला ने कहा, “बैठे-बैठे मेरा जी घबड़ा गया।”
कामिनी - तो तुम भी भैरोसिंह के पास जा बैठो और पेड़ की छाल छील-छीलकर रस्सी बटो।
कमला - जी मैं ऐसे गन्दे काम नहीं करती। मेरा मतलब यह था कि अगर हुक्म हो तो मैं पहाड़ी के बाहर जाकर इधर-उधर की कुछ खबर ले आऊं या जमानिया में जाकर इसी बात का पता लगाऊं कि राजा गोपालसिंह के दिल से लक्ष्मीदेवी की मुहब्बत एकदम क्यों जाती रही जो आज तक उस बेचारी को पूछने के लिए एक चिड़िया का बच्चा भी नहीं भेजा।
किशोरी - बहिन, इस बात का तो मुझे भी बड़ा रंज है। मैं सच कहती हूं कि हम लोगों में से कोई भी ऐसा नहीं है जो उसके दुःख की बराबरी करे। राजा गोपालसिंह ही की बदौलत उसने जो-जो तकलीफ उठाई उसे सुनने और याद करने से कलेजा कांप जाता है। अफसोस, राजा गोपालसिंह ने उसकी कुछ भी कदर न की।
कामिनी - मुझे सबसे ज्यादे केवल इस बात का ध्यान रहता है कि बेचारी लक्ष्मीदेवी ने जो-जो कष्ट सहे हैं उन सभों से बढ़कर उसके लिए यह दुःख है कि राजा गोपालसिंह ने पता लग जाने पर भी उसकी कुछ सुध न ली। सब दुःखों को तो वह सह गई मगर यह दुःख उससे सहे न सहा जायगा। हाय-हाय, गोपालसिंह का भी कैसा पत्थर का कलेजा है!
किशोरी - ऐसी मुसीबत कहीं मुझे सहनी पड़ती तो मैं पल-भर भी इस दुनिया में न रहती। क्या जमाने से मुहब्बत एकदम जाती रही या राजा गोपालसिंह ने लक्ष्मीदेवी में कोई ऐब देख लिया है?
कमला - राम-राम, वह बेचारी ऐसी नहीं है कि किसी ऐब को अपने पास आने दे। देखो अपनी छोटी बहिन की लौंडी बनकर मुसीबत के दिन किस ढंग से बिताए, मगर उसके पतिव्रत धर्म का नतीजा कुछ न निकला।
किशोरी - इस दुःख से बढ़कर दुनिया में कोई भी दुःख नहीं है। (पेड़ पर बैठे हुए एक काले कौवे की तरफ इशारा करके) देखो बहिन, यह काग हमीं लोगों की तरफ मुंह करके बार-बार बोल रहा है। (जमीन पर से एक तिनका उठाकर) यह कहता है कि तुम्हारा कोई प्रेमी यहां चला आ रहा है।
कामिनी - (ताज्जुब से) तुम्हें कैसे मालूम क्या कौवे की बोली तुम पहिचानती हो, या इस तिनके में कुछ लिखा है, या यों ही दिल्लगी करती हो?
किशोरी - मैं दिल्लगी नहीं करती सच कहती हूं, इसका पहिचानना कोई मुश्किल बात नहीं है।
कामिनी - बहिन, मुझे भी बताओ। तुम्हें इसकी तर्कीब किसने सिखाई थी?
किशोरी - मेरी मां ने मुझे एक श्लोक याद करा दिया था। उसका मतलब यह है कि जब काले कौवे (काग) की बोली सुनें तो एक बड़ा-सा साफ तिनका जमीन पर से उठा लें और अपनी उंगलियों से नाप के देखें कि कै अंगुल का है, जै अंगुल हो उसमें तेरह और मिलाकर सात-सात करके जहां तक उसमें से निकल सकें और जो कुछ बचें उनका हिसाब लगायें। एक बचे तो लाभ होगा, दो बचें तो कुछ नुकसान होगा, तीन बचें तो सुख मिलेगा, चार बचे तो भोजन की कोई चीज मिलेगी, पांच बचें तो किसी मित्र का दर्शन होगा, छः बचें तो कलह होगी, सात बचें या यों कहो कि कुछ भी न बचे तो समझो कि अपना या किसी प्रेमी का मरना होगा, बस इतना ही तो हिसाब है।
कामिनी - तुम तो इतना कह गई लेकिन मेरी समझ में कुछ भी न आया। यह तिनका जो तुमने उंगली से नापा है इसका हिसाब करके समझा दो तो समझ जाऊंगी।
किशोरी - अच्छा देखो, यह तिनका जो मैंने नापा था छः अंगुल का है, इसमें तेरह मिला दिया तो कितना हुआ।
कामिनी - उन्नीस हुआ।
किशोरी - अच्छा इसमें से कै सात निकल सकते हैं?
कामिनी - (सोचकर) सात और सात चौदह, दो सात निकल गए और पांच बचे, अच्छा अब मैं समझ गई, तुम अभी कह चुकी हो कि अगर पांच बचें तो किसी मित्र का दर्शन हो। अच्छा अब वह श्लोक सुना दो क्योंकि श्लोक बड़ी जल्दी याद हो जाया करता है।
किशोरी - सुनो –
काकस्य वचनं श्रुत्वा ग्रहीत्वा तृणामुत्तमम्,
त्रयोदश समायुक्ता मुनिभिः भागमाचरेत्।
1 2 3 4 5
लाभं कष्टं महा सौख्यं भोजनं प्रियदर्शनम्
6 7
कलहो मरणं चैव काकौ वदति नान्यथा!!
कमला - (हंसकर) श्लोक तो अशुद्ध है!
किशोरी - अच्छा-अच्छा रहने दीजिये, अशुद्ध है तो तुम्हारी बला से, तुम बड़ी पंडित बनकर आई हो तो अपना शुद्ध करा लेना!
कामिनी - (कमला से) खैर तुम्हारे कहने से मान लिया जाय कि श्लोक अशुद्ध है मगर उसका मतलब तो अशुद्ध नहीं है।
कमला - नहीं-नहीं, मतलब को कौन अशुद्ध कहता है, मतलब तो ठीक और सच है।
कामिनी - तो बस फिर हो चुका। बीबी, दुनिया में श्लोक की बड़ी कदर होती है, पण्डित लोग अगर कोई झूठी बात भी समझाना चाहते हैं तो झट श्लोक बनाकर पढ़ देते हैं, सुनने वाले को विश्वास हो जाता है, और यह तो वास्तव में सच्चा श्लोक है।
कामिनी ने इतना कहा ही था कि सामने से किसी को आते देख चौंक पड़ी और बोली, “आहा हा! देखो किशोरी बहिन की बात कैसी सच निकली! लो कमला रानी देख लो और अपना कान पकड़ो!”
जिस जगह किशोरी, कामिनी और कमला बैठी बातें कर रही थीं उसके सामने ही की तरफ इस स्थान में आने का रास्ता था। यकायक जिस पर निगाह पड़ने से कामिनी चौंकी, वह लक्ष्मीदेवी थी, उसके बाद कमलिनी और लाडिली दिखाई पड़ीं और सबके बाद इन्द्रदेव पर नजर पड़ी।
किशोरी - देखो बहिन, हमारी बात कैसी सच निकली।
कामिनी - बेशक, बेशक।
कमला - कृष्णा जिन्न सच ही कह गये थे कि उन तीनों को भी यहीं भेजवा दूंगा।
किशोरी - (खड़ी होकर) चलो हम लोग आगे चलकर उन्हें ले आवें।
ये तीनों लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को देखकर बहुत ही खुश हुईं और वहां से उठकर कदम बढ़ाती हुई उनकी तरफ चलीं। वे तीनों बीच वाले मकान के पास पहुंचने न पाई थीं कि ये सब उनके पास जा पहुंचीं और इन्द्रदेव को प्रणाम करने के बाद आपस में बारी-बारी से एक-दूसरे के गले मिलीं। भैरोसिंह भी उसी जगह आ पहुंचे और कुशलक्षेम पूछकर बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद सब कोई मिलकर उसी बंगले में आए जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला रहती थीं और इन्द्रदेव बीच वाले दो मंजिले मकान में चले गये जिसमें भैरोसिंह का डेरा था।
यद्यपि वहां खिदमत करने के लिए लौंडियों की कमी न थी तथापि कमला ने अपने हाथ से तरह-तरह की खाने की चीजें तैयार करके सभों को लिखाया-पिलाया और मोहब्बत भरी हंसी-दिल्लगी की बातों से सभों का दिल बहलाया। रात के समय जब हर एक काम से निश्चिन्त होकर एक कमरे में सब बैठीं तो बात-चीत होने लगी।
किशोरी - (लक्ष्मीदेवी से) जमाने ने हम लोगों को जुदा कर दिया था मगर ईश्वर ने कृपा करके बहुत जल्द मिला दिया।
लक्ष्मीदेवी - हां बहिन, इसके लिए मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं। मगर मेरी समझ में अभी तक नहीं आता कि कृष्णा जिन्न कौन है जिसके हुक्म से कोई भी मुंह नहीं मोड़ता। देखो तुम भी उसी की आज्ञानुसार यहां पहुंचाई गईं और हम लोग भी उसी की आज्ञा से यहां लाये गए। जो हो मगर समें कोई शक नहीं कि कृष्णा जिन्न बहुत ही बुद्धिमान और दूरदर्शी है। यह सुनकर हम लोगों को बड़ी खुशी हुई कि कृष्णा जिन्न की चालाकियों ने तुम लोगों की जान बचा ली।
कामिनी - यह खबर तुम्हें कब मिली?
लक्ष्मीदेवी - इन्द्रदेवजी जमानिया गये थे। उस जगह कृष्णा जिन्न की चिट्ठी पहुंची जिससे सब हाल मालूम हुआ और उस चिट्ठी के मुताबिक हम लोग यहां पहुंचाये गए।
किशोरी - जमानिया गए थे! राजा गोपालसिंह ने बुलाया होगा?
लक्ष्मीदेवी - (ऊंची सांस लेकर) वे क्यों बुलाने लगे थे, उन्हें क्या गर्ज पड़ी थी हां हमारे पिता का पता लगाने गए थे, सो वहां जाने पर कृष्णा जिन्न की चिट्ठी ही से यह भी मालूम हुआ कि भूतनाथ उन्हें छुड़ाकर चुनारगढ़ ले गया। ईश्वर इसका भला करे, भूतनाथ बात का धनी निकला।
किशोरी - (खुश होकर) भूतनाथ ने यह बहुत बड़ा काम किया। फिर भी उसके मुकद्दमे में बड़ी उलझन निकलेगी।
कामिनी - इसमें क्या शक है?
किशोरी - अच्छा तो जमानिया में जाने से और भी किसी का हाल मालूम हुआ?
कमलिनी - हां दोनों कुमारों से दूर की मुलाकात और बातचीत हुई क्योंकि वे तिलिस्म तोड़ने की कार्रवाई कर रहे थे, और वहीं इन्द्रदेव ने अपनी लड़की इन्दिरा को पाया और अपनी स्त्री सर्यू को भी देखा।
किशोरी - (चौंककर और खुश होकर) यह बड़ा काम हुआ! वे दोनों इतने दिनों तक कहां थीं और कैसे मिलीं?
लक्ष्मी - वे दोनों तिलिस्म में फंसी हुई थीं, दोनों कुमारों की बदौलत उनकी जान बची।
इस जगह लक्ष्मीदेवी ने सर्यू और इन्दिरा का किस्सा पूरा-पूरा बयान किया जिसे सुनकर वे तीनों बहुत प्रसन्न हुईं और कमला ने कहा, “विश्वासघातियों और दुष्टों के लिए उस समय जमानिया बैकुण्ठ हो रहा था!”
लक्ष्मी - तभी तो मुझे ऐसे-ऐसे दुःख भोगने पड़े जिनसे अभी तक छुटकारा नहीं मिला, मगर मैं नहीं कह सकती कि अब मेरी क्या गति होगी और मुझे क्या करना होगा।
किशोरी - क्या जमानिया में इन्द्रदेव से राजा गोपालसिंह ने तुम्हारे विषय में कोई बातचीत नहीं की?
लक्ष्मी - कुछ भी नहीं, सिर्फ इतना कहा कि तुम इन तीनों बहिनों को कृष्णा जिन्न की आज्ञानुसार वहां पहुंचा दो जहां किशोरी, कामिनी और कमला हैं। वहां स्वयं कृष्णा जिन्न जाएंगे, उसी समय जो कुछ वे कहें सो करना, शायद कृष्णा जिन्न उन सभों को यहां ले आवें।
कामिनी - (हाथ मलकर) बस!
लक्ष्मी - बस, और कुछ भी नहीं पूछा और न इन्द्रदेवजी ही ने कुछ कहा, क्योंकि उन्हें भी इस बात का रंज है।
किशोरी - रंज हुआ ही चाहिए, जो कोई सुनेगा उसी को इस बात का रंज होगा। वे तो बेचारे पिता ही के बराबर ठहरे, क्यों न रंज करेंगे! (कमलिनी से) तुम तो अपने जीजाजी के मिजाज की बड़ी तारीफ करती थीं!
कम - बेशक वे तारीफ के लायक हैं, मगर इस मामले में तो मैं आप हैरान हो रही हूं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया! उनके सामने ही दोनों कुमारों ने बड़े शौक से तुम लोगों का हाल इन्द्रदेव से पूछा और सभों को जमानिया में बुला लेने के लिए कहा मगर उस पर भी राजा साहब ने हमारी दुखिया बहिन को याद न किया, आशा है कि कल तक कृष्णा जिन्न भी यहां आ जायंगे, देखें वह क्या करते हैं।
लक्ष्मी - करेंगे क्या अगर वह मुझे जमानिया चलने के लिए कहेंगे भी तो मैं बेइज्जती के साथ जाने वाली नहीं हूं। जब मेरा मालिक मुझे पूछता ही नहीं तो मैं कौन-सा मुंह लेकर उसके पास जाऊं और किस सुख के लिए या किस आशा पर इस शरीर को रक्खूं।
कमला - नहीं-नहीं, तुम्हें इतना रंज न करना चाहिए...।
कामिनी - (बात काटकर) रंज क्यों न करना चाहिए! भला इससे बढ़कर भी कोई रंज दुनिया में है! जिसके सबब से और जिसके खयाल से इस बेचारी ने इतने दुःख भोगे और ऐसी अवस्था में रही वही जब एक बात न पूछे तो कहो रंज हो कि न हो और नहीं तो इस बात का खयाल करते कि इसी की बहिन या उनकी साली की बदौलत उनकी जान बची, नहीं तो दुनिया से उनका नाम-निशान ही उठ गया था!
लाडिली - बहिन, ताज्जुब तो यह है कि इनकी खबर न ली तो न सही अपनी उस अनोखी मायारानी की सूरत तो आकर देख जाते जिसने उनके साथ...।
कामिनी - (जल्दी से) हां और क्या उसे भी देखने न आए! उन्हें तो चाहिए था कि रोहतासगढ़ पहुंचकर उसकी बोटी-बोटी अलग कर देते!
इस तरह से ये सब बड़ी देर तक आपस में बातें करती रहीं। लक्ष्मीदेवी की अवस्था पर सभों को रंज, अफसोस और ताज्जुब था। जब रात ज्यादे बीत गई तो सभों ने चारपाई की शरण ली। दूसरे दिन उन्हें कृष्णा जिन्न के आने की खबर मिली।