दरबार बर्खास्त होने के बाद जब महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, गोपालसिंह और देवीसिंह एकान्त में बैठे तो यों बातचीत होने लगी -
सुरेन्द्र - ये दोनों नकाबपोश तो विचित्र तमाशा कर रहे हैं। मालूम होता है कि इन सब मामलों की सबसे ज्यादे खबर इन्हीं लोगों को है। जीत - बेशक ऐसा ही है।
वीरेन्द्र - जिस तरह इन दोनों ने तीन दफे तीन तरह की सूरतें दिखाईं इसी तरह मालूम होता है और भी कई दफे कई तरह की सूरतें दिखायेंगे।
गोपाल - निःसन्देह ऐसा ही होगा। मैं समझता हूं कि या तो ये लोग अपनी सूरत बदलकर आया करते हैं या दोनों केवल दो ही नहीं हैं और भी कई आदमी हैं जो पारी-पारी से आकर लोगों को ताज्जुब में डालते हैं और डालेंगे।
तेज - मेरा भी यही खयाल है, भूतनाथ के दिल में भी खलबली पैदा हो रही है। उसके चेहरे से मालूम होता था कि वह इन लोगों का पता लगाने के लिए परेशान हो रहा है।
देवी - भूतनाथ का ऐसा विचार कोई ताज्जुब की बात नहीं। जब हम लोग उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो रहे हैं तब भूतनाथ का क्या कहना है।
सुरेन्द्र - इन लोगों ने मुकद्दमे की उलझन खोलने का ढंग तो अच्छा निकाला है मगर यह मालूम करना चाहिए कि इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है
देवी - अगर आज्ञा हो तो मैं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूं?
वीरेन्द्र - कहीं ऐसा न हो कि पीछा करने से ये लोग बिगड़ जायं और फिर यहां आने का इरादा न करें।
गोपाल - मेरे खयाल से तो उन लोगों को इस बात का रंज न होगा कि लोग उनका हाल जानने के लिए पीछा कर रहे हैं, क्योंकि उन लोगों ने काम ही ऐसा उठाया है कि सैकड़ों आदमियों को ताज्जुब हो, सैकड़ों ही उनका पीछा भी करें। इस बात को वे लोग खूब ही समझते होंगे और इस बात का भी उन्हें विश्वास होगा कि भूतनाथ उनका हाल जानने के लिए सबसे ज्यादे कोशिश करेगा।
वीरेन्द्र - ठीक है और इसी खयाल से वे लोग हर वक्त चौकन्ने भी रहते हों तो कोई ताज्जुब नहीं।
जीत - जरूर चौकन्ने रहते होंगे और ऐसी अवस्था में पता लगाना भी कठिन होगा।
गोपाल - जो हो मगर मेरी इच्छा तो यही है कि स्वयं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूं।
सुरेन्द्र - अगर उनके मामले में पता लगाने की इच्छा ही है तो क्या तुम्हारे यहां ऐयारों की कमी है जो तुम स्वयं कष्ट करोगे तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ या और जिसे चाहो इस काम पर मुकर्रर करो।
गोपाल - जो आज्ञा, देवीसिंह कहते ही हैं तो इन्हीं को यह काम सुपुर्द किया जाय।
सुरेन्द्र - (देवीसिंह से) अच्छा जाओ तुम ही इस काम में उद्योग करो देखें क्या खबर लाते हो।
देवी - (सलाम करके) जो आज्ञा।
गोपाल - और इस बात का भी पता लगाना कि भूतनाथ उनका पीछा करता है या नहीं।
देवी - जरूर पता लगाऊंगा।
इस बात से छुट्टी पाने के बाद थोड़ी देर तक और बातें हुई, इसके बाद महाराज आराम करने चले गये तथा और लोग भी अपने ठिकाने पधारे।