अब हम थोड़ा-सा हाल कुंअर इंद्रजीतसिंह का बयान करेंगे जिन्हें इस बात का बहुत ही रंज है कि कमलिनी की शादी किसी दूसरे के साथ हो गई है और वे उम्मीद ही में बैठे रह गये।
रात पहर से कुछ ज्यादे जा चुकी है, कुंअर इंद्रजीतसिंह अपने कमरे में बैठे भैरोसिंह से धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं। इन दोनों के सिवाय कोई तीसरा आदमी इस कमरे में नहीं है और कमरे का दरवाजा भी भिड़काया हुआ है।
भैरो - तो आप साफ-साफ कहते क्यों नहीं कि आपकी उदासी का सबब क्या है आपको तो आज खुश होना चाहिए कि जिस काम के लिए बरसों परेशान रहे, जिसकी उम्मीद में तरह-तरह की तकलीफ उठाई, जिसके लिए हथेली पर जान रख के बड़े-बड़े दुश्मनों से मुकाबला करना पड़ा और जिसके होने या मिलने ही पर तमाम दुनिया की खुशी समझी जाती थी, आज वही काम आपकी इच्छानुसार हो रहा है और उसी किशोरी के साथ अपनी शादी का इंतजाम अपनी आंखों से देख रहे हैं, फिर भी ऐसी अवस्था में आपकी उदासी देखकर कौन ऐसा है जो ताज्जुब न करेगा?
इंद्र - बेशक मेरे लिए आज बड़ी खुशी का दिन है और मैं खुश हूं भी मगर कमलिनी की तरफ से जो रंज मुझे हुआ है उसे हजार कोशिश करने पर भी मेरा दिल बरदाश्त नहीं कर पाता।
भैरो - (ताज्जुब का चेहरा बनाकर) हैं, कमलिनी की तरफ से और आपको रंज! जिसके एहसानों के बोझ से आप दबे हुए हैं उसी कमलिनी से रंज। यह आप क्या कह रहे हैं?
इंद्र - इस बात को तो मैं खुद कह रहा हूं कि उसके एहसानों के बोझ से मैं जिंदगी भर हलका नही हो सकता और अब तक उसके जी में मेरी भलाई का ध्यान बंधा ही हुआ है मगर रंज इस बात का है कि अब मैं उसे उस मोहब्बत की निगाह से नहीं देख सकता जिससे कि पहले देखता था।
भैरो - सो क्यों, क्या इसलिए कि अब वह अपने ससुराल चली जायगी और फिर उसे आप पर एहसान करने का मौका न मिलेगा?
इंद्र - हां करीब-करीब यही बात है।
भैरो - मगर अब आपको उसकी मदद की जरूरत भी तो नहीं है। हां इस बात का खयाल बेशक हो सकता है कि अब आप उसके तिलिस्मी मकान पर कब्जा कर सकेंगे।
इंद्र - नहीं-नहीं, मुझे इस बात की कुछ जरूरत नहीं है और न उसका कुछ खयाल ही है!
भैरो - तो इस बात का खयाल है कि उसने अपनी शादी में आपको न्यौता नहीं दिया मगर वह एक हिंदू लड़की की हैसियत से ऐसा कर भी तो नहीं सकती थी! हां इस बात की शिकायत आप राजा गोपालसिंह से जरूर कर सकते हैं क्योंकि उस काम के कर्ता-धर्ता वे ही हैं।
इंद्र - उनसे तो मुझे बहुत ही शिकायत है मगर मैं शर्म के मारे कुछ कह नहीं सकता।
भैरो - (चौंककर) शर्म तो तब होती जब आप इस बात की शिकायत करते कि मैं खुद उससे शादी किया चाहता था।
इंद्र - हां बात तो ऐसी ही है। (मुस्कराकर) मगर तुम तो पागलों की-सी बातें करते हो।
भैरो - (हंसकर) यह कहिए न! आप दोनों हाथ लड्डू चाहते थे! तो इस चोर को आप इतने दिनों तक छिपाए क्यों रहे?
इंद्र - तो यही कब उम्मीद हो सकती थी कि इस तरह यकायक गुमसुम शादी हो जायगी।
भैरो - खैर अब तो जो कुछ होना था सो हो गया, मगर आपको इस बात का खयाल न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त क्या आप समझते हैं कि किशोरी इस बात को पसंद करती कभी नहीं, बल्कि आये दिन का झगड़ा पैदा हो जाता।
इंद्र - नहीं, किशोरी से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं हो सकती। खैर अब इस विषय पर बहस करना व्यर्थ है, मगर मुझे रंज जरूर है। अच्छा यह तो बताओ कि तुमने उन्हें देखा है जिनके साथ कमलिनी की शादी हुई?
भैरो - कई दफे, बातें भी अच्छी तरह कर चुका हूं।
इंद्र - कैसे हैं?
भैरो - बड़े लायक, पढ़े-लिखे, पंडित, बहादुर, दिलेर, हंसमुख और सुंदर। इस अवसर पर आवेंगे ही, देख लीजिएगा। आपने कमलिनी से इस बारे में बातचीत नहीं की?
इंद्र - इधर तो नहीं मगर तिलिस्म की सैर को जाने से पहले मुलाकात हुई थी, उसने खुद मुझे बुलाया था बल्कि उसी की जुबानी उसकी शादी का हाल मुझे मालूम हुआ था। मगर उसने मेरे साथ विचित्र ढंग का बर्ताव किया।
भैरो - सो क्या?
इंद्र - (जो कुछ कैफियत हो चुकी थी उसे बयान करने के बाद) तुम इस बर्ताव को कैसा समझते हो?
भैरो - बहुत अच्छा और उचित।
इसी तरह बातचीत हो रही थी कि पहले दिन की तरह बगल वाले कमरे का दरवाजा खुला ओैर एक लौंडी ने आकर सलाम करने के बाद कहा, “कमलिनीजी आपसे मिलना चाहती हैं, आज्ञा हो तो...।”
इंद्र - अच्छा मैं चलता हूं, तू दरवाजा बंद कर दे।
भैरो - अब मैं भी जाकर आराम करता हूं।
इंद्र - अच्छा जाओ फिर कल देखा जायेगा।
लौंडी - इनसे (भैरोसिंह) भी उन्हें कुछ कहना है।
यह कहती हुई लौंडी ने दरवाजा बंद कर दिया, तब तक स्वयं कमलिनी इस कमरे में आ पहुंची और भैरोसिंह की तरफ देखकर बोली, (जो उठकर बाहर जाने के लिए तैयार था) “आप कहां चले आप ही से तो मुझे बहुत-सी शिकायत करनी है।”
भैरो - सो क्या?
कमलिनी - अब उसी कमरे में चलिये, वहां बातचीत होगी।
इतना कहकर कमलिनी ने कुमार का हाथ पकड़ लिया और अपने कमरे की तरफ ले चली, पीछे-पीछे भैरोसिंह भी गये। लौंडी दरवाजा बंद करके दूसरी राह से बाहर चली गई और कमलिनी ने इन दोनों को उचित स्थान पर बैठाकर पानदान आगे रख दिया और भैरोसिंह से कहा, “आप लोग तिलिस्म की सैर कर आये और मुझे पूछा भी नहीं!”
भैरो - महाराज खुद कह चुके हैं कि शादी के बाद औरतों को भी तिलिस्म की सैर करा दी जाय और फिर तुम्हारे लिए तो कहना ही क्या है, तुम जब चाहो तिलिस्म की सैर कर सकती हो।
कम - ठीक हे, मानो यह मेरे हाथ की बात है।
भौरो - है ही।
कम - (हंसकर) टालने के लिए अच्छा ढंग है! खैर जाने दीजिए, मुझे कुछ ऐसा शौक भी नहीं है, हां यह बताइए कि वहां क्या-क्या कैफियत देखने में आई मैंने सुना कि भूतनाथ वहां बड़े चक्कर में पड़ गया था और उसकी पहली स्त्री भी वहां दिखाई पड़ गई।
भैरो - बेशक ऐसा ही हुआ।
इतना कहकर भैरोसिंह ने कुल हाल खुलासा बयान किया और इसके बाद कमलिनी ने इंद्रजीतसिंह से कहा, “खैर आप बताइए कि शादी की खुशी में मुझे क्या इनाम मिलेगा।”
इंद्र - (हंसकर) गालियों के सिवाय और किसी चीज की तुम्हें कमी ही क्या है जो मैं दूं?
कम - (भैरो से) सुन लीजिए, मेरे लिए कैसा अच्छा इनाम सोचा गया है! (कुमार से हंसकर) याद रखियेगा, इस जवाब के बदले में मैं आपको ऐसा छकाऊंगी कि खुश हो जाइयेगा!
भैरो - इन्हें तो तुम छका ही चुकी हो। अब इससे बढ़ के क्या होगा कि चुपचाप दूसरे के साथ शादी कर ली और इन्हें अंगूठा दिखा दिया! अब तुम्हें ये गालियां न दें तो क्या करें!
कम - (मुस्कराती हुई) आपकी राय भी यही है?
भैरो - बेशक!
कम - तो बेचारी किशोरी के साथ आप अच्छा सलूक करते हैं।
भैरो - इसका इल्जाम तो कुमार के ऊपर हो सकता है!
कम - हां साब, मर्दों की मुरौवत जो कुछ कर दिखाए थोड़ा है, मैं किशोरी बहिन से इसका जिक्र करूंगी।
भैरो - तब तो एहसान पर एहसान करोगी।
इंद्र - (भैरो से) तुम भी व्यर्थ की छेड़छाड़ मचा रहे हो, भला इन बातों से क्या फायदा।
भैरो - ब्याह-शादी में ऐसी बातें हुआ ही करती हैं!
इंद्र - तुम्हारा सिर हुआ करता है! (कमलिनी से) अच्छा यह बताओ कि इस समय तुमने मुझे क्यों याद किया?
कम - हरे राम! अब मैं क्या ऐसी भारी हो गई कि मुझसे मिलना भी बुरा मालूम होता है?
इंद्र - नहीं-नहीं, अगर मिलना बुरा मालूम होता तो मैं यहां आता ही क्यों पूछता हूं आखिर कोई काम भी है या - कम - हां है तो सही।
इंद्र - कहो!
कम - आपको शायद मालूम होगा कि मेरे पिता जब से यहां आये हैं उन्होंने अपने खाने-पीने का इंतजाम अलग रखा है अर्थात् आपके यहां का अन्न नहीं खाते और न कुछ अपने लिए खर्च करवाते हैं।
इंद्र - हां मुझे मालूम है।
कम - अब उन्होंने इस मकान में भी रहने से इनकार किया है, उनके एक मित्र ने खैमे वगैरह का इंतजाम कर दिया है और वे उसी में अपना डेरा उठा ले जाने वाले हैं।
इंद्र - यह भी मालूम है।
कम - मेरी इच्छा है कि यदि आप आज्ञा दें तो लाडिली को साथ लेकर मैं भी उसी डेरे में चली जाऊं।
इ्रंद - क्यों तुम्हें यहां रहने में परहेज ही क्या हो सकता है?
कम - नहीं-नहीं मुझे किस बात का परहेज होगा मगर यों ही जी चाहता है कि मैं दो-चार दिन आपने बाप के साथ ही रहकर उनकी खिदमत करूं।
इंद्र - यह दूसरी बात है, इसकी इजाजत तुम्हें अपने मालिक से लेनी चाहिए, मैं कौन हूं जो इजाजत दूं?
कम - इस समय वे तो यहां हैं नहीं अस्तु उनके बदले में मैं आप ही को अपना मालिक समझती हूं।
इंद्र - (मुस्कराकर) फिर तुमने वही रास्ता पकड़ा खैर मैं इस बात की इजाजत न दूंगा।
कम - तो मैं आज्ञा के विरुद्ध कुछ न करूंगी।
इंद्र - (भैरो से) इनकी बातचीत का ढंग देखते हो?
भैरो - (हंसकर) शादी हो जाने पर भी ये आपको नहीं छोड़ा चाहतीं तो मैं क्या करूं।
कम - अच्छा मुझे एक बात की इजाजत तो जरूर दीजिए।
इंद्र - वह क्या?
कम - आपकी शादी में मैं आपसे एक विचित्र दिल्लगी किया चाहती हूं।
इंद्र - वह कौन-सी दिल्लगी होगी?
कम - यही बता दूंगी तो उसमें मजा ही क्या रह जायगा बस आप इतना कह दीजिए कि उस दिल्लगी से रंज न होंगे चाहे वह कैसी ही गहरी क्यों न हो।
इंद्र - (कुछ सोचकर) खैर मैं रंज न होऊंगा।
इसके बाद थोड़ी देर तक हंसी की बातें होती रहीं और फिर सब कोई उठकर अपने-अपने ठिकाने चले गये।