राज नारायण (जो बार बार रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लड़ते और हारते रहे थे) द्वारा दायर एक चुनाव याचिका में कथित तौर पर भ्रष्टाचार आरोपों के आधार पर12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया। इस प्रकार अदालत ने उनके विरुद्ध संसद का आसन छोड़ने तथा छह वर्षों के लिए चुनाव में भाग लेने पर प्रतिबन्ध का आदेश दिया। प्रधानमन्त्रीत्व के लिए लोक सभा (भारतीय संसद के निम्न सदन) या राज्य सभा (संसद के उच्च सदन) का सदस्य होना अनिवार्य है। इस प्रकार, यह निर्णय उन्हें प्रभावी रूप से कार्यालय से पदमुक्त कर दिया।
जब गांधी ने फैसले पर अपील की, राजनैतिक पूंजी हासिल करने को उत्सुक विपक्षी दलों और उनके समर्थक, उनके इस्तीफे के लिए, सामूहिक रूप से चक्कर काटने लगे। ढेरों संख्या में यूनियनों और विरोधकारियों द्वारा किये गये हरताल से कई राज्यों में जनजीवन ठप्प पड़ गया। इस आन्दोलन को मजबूत करने के लिए, जयप्रकाश नारायण ने पुलिस को निहत्थे भीड़ पर सम्भब्य गोली चलाने के आदेश का उलंघन करने के लिये आह्वान किया। कठिन आर्थिक दौर के साथ साथ जनता की उनके सरकार से मोहभंग होने से विरोधकारिओं के विशाल भीड़ ने संसद भवन तथा दिल्ली में उनके निवास को घेर लिया और उनके इस्तीफे की मांग करने लगे।