अनाज का व्यापारी बोला कि कल मैं एक धनी व्यक्ति की पुत्री के विवाह में गया था। नगर के बहुत-से प्रतिष्ठित व्यक्ति उसमें शामिल थे। शादी की रस्में पूरी होने पर दावत हुई और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए। एक थाल में एक मसालेदार स्वादिष्ट लहसुन का व्यंजन रखा था जिन्हें उठा-उठा कर हर आदमी रुचिपूर्वक खा रहा था। किंतु एक आदमी उसे नहीं खाता था। पूछने पर उस ने बताया कि मैं ने एक बार लहसुन के कारण ऐसा घोर कष्ट उठाया कि अभी तक नहीं भूला। सब लोगों की उत्कंठा और बढ़ी और सब उस व्यंजन को खाने के लिए उस पर जोर डालने लगे। गृहस्वामी ने कहा कि यदि आप इसे नहीं खाएँगे तो मैं समझूँगा कि मेरे अन्न का आप ने निरादर किया है। उस पर बहुत जोर डाला गया तो उस ने कहा, 'मैं इसे चख तो लेता हूँ किंतु इस के बाद मैं चालीस बार फलाँ घास की राख से और सौ बार साबुन से हाथ धोऊँगा। मैं ने यह सौगंध खाई है कि इसी प्रकार से लहसुन खा सकता हूँ। मैं अपनी प्रतिज्ञा को भंग नहीं कर सकता।'

गृहस्वामी ने ढेर सारी विशेष राख, साबुन और गर्म पानी का प्रबंध कर दिया। उस आदमी ने एक बार फिर इनकार किया किंतु सबके जोर देने पर एक बार डरते-डरते एक दाना मुँह में रख लिया। हम लोगों को उस की हिचक से भी आश्चर्य हुआ और इस बात से भी कि उस ने केवल चार उँगलियों से खाया, अँगूठे का प्रयोग नहीं किया। अब हम लोगों को याद आया कि वह पहले भी जब भोजन कर रहा था तो अँगूठे का प्रयोग नहीं कर रहा था। गृहस्वामी ने कहा, 'आप अजीब तरह से खा रहे हैं, खाने में अँगूठे का प्रयोग क्यों नहीं करते, इस से आप को आसानी होगी।'

उस आदमी ने हाथ फैला कर दिखाया तो उसमें अँगूठा था ही नहीं। गृहस्वामी तथा अन्य अतिथियों ने पूछा कि आपके अँगूठे का क्या हुआ तो वह बोला कि मुझ पर एक बार ऐसी मुसीबत पड़ी जिसे कहना मुश्किल है, उसी विपत्ति के कारण मेरे दोनों हाथों और दोनों पैरों के अँगूठे काट लिए गए। लोगों ने उस से वह वृत्तांत सुनाने को कहा। उस ने एक सौ चालीस बार हाथ धोए और फिर अपनी कहानी शुरू की।

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