शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशाह बद्र था। उसके पास अपार धन- दौलत और सैनिक शक्ति थी। उसके सौ पत्नियाँ और हजारों दासियाँ थीं किंतु उसे बड़ा दुख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था। दूर-दूर के व्यापारी उसके लिए सुंदर दासियाँ लाते। वह उनसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भोग करता। अपने देश के सिद्धों और तांत्रिकों से भी इस बारे में सहायता करने को कहा, हजारों कँगलों को धन का दान करता कि किसी के आशीर्वाद से पुत्र प्राप्ति हो। किंतु कोई उपाय सफल नहीं हो सका था और बादशाह की चिंता का अंत नहीं था।
एक दिन उसके एक सेवक ने आ कर बताया कि एक दूर देश का व्यापारी एक अति सुंदरी दासी ले कर बेचने के लिए आया है। बादशाह ने आज्ञा दी कि व्यापारी दासी को लाए। दूसरे दिन व्यापारी उस दासी को ले कर उपस्थित हुआ। बादशाह ने उससे पूछा कि तुम किस देश से दासी लाए हो। उसने कहा, मैं बहुत दूर देश की बाँदी लाया हूँ। आप उसकी सूरत देखेंगे तो यह पूछना भूल जाएँगे कि वह कहाँ की है। बादशाह ने कहा कि उसे दिखाते क्यों नहीं। व्यापारी ने कहा, मैं पहले आपकी अनुमति चाहता था। अभी मैंने उसे एक विश्वस्त दास को सौंप रखा है, आप कहें तो अभी ले आऊँ। बादशाह ने कहा कि फौरन लाओ।
व्यापारी ने ला कर दिखाया तो बादशाह ने देखा कि दासी वास्तव में अजीब-सी छटा बिखेर रही है। गौरवर्ण, कुंचित केशी, सुडौल शरीरवाली दासी थी जिसका चेहरा नकाब के अंदर से भी सौंदर्य की किरणें-सी बिखेर रहा था। बादशाह व्यापारी और दासी दोनों को अपने रंगमहल में ले गया। वहाँ पर दासी का नकाब उठा कर देखा तो उसके रूप की छवि से लगभग अचेत हो गया। जब थोड़ी देर में उसे पूर्ण चेत हुआ तो उसने व्यापारी से पूछा कि इस दासी का कितना मूल्य है। व्यापारी ने कहा, महाराज, इसे मैंने एक हजार अशर्फियों में मोल लिया था। इसे तीन वर्ष पहले लिया था। इस काल में इतना ही धन इसके भोजन, वस्त्र आदि पर व्यय हुआ। लेकिन मैं इसे यूँ ही आपको भेंट करने के लिए लाया हूँ अगर यह आपको पसंद हो।
बादशाह व्यापारी की विनयपूर्ण बातों से प्रसन्न हुआ। वह बोला, हम किसी से यूँ ही कोई वस्तु नहीं लेते। और जो चीज हमें पसंद आती है उसके दूने-चौगुने दाम भी दे देते हैं। यह दासी हमें बहुत पसंद है। हम इसके मूल्य के तौर पर तुम्हें दस हजार अशर्फियाँ देंगे। व्यापारी ने सिर झुका कर कई बार बादशाह को नमन किया और हजार अशर्फियों के दस तोड़े ले कर शाही महल से विदा हुआ। इधर बादशाह ने कई दासियों को बुला कर आज्ञा दी कि इसे हम्माम में ले जाओ और नहला-धुला कर अच्छे कपड़े पहनाओ।
सुघड़ परिचारिकाओं ने नई दासी को हम्माम में ले जा कर गरम पानी से भली भाँति नहलाया और जरी के काम के रत्नजटित वस्त्र पहनाए। परिचारिकाओं ने, जिन्हें बादशाह ने नई दासी के निमित्त नियुक्त किया था, उसके निखरे हुए रूप को देख कर आश्चर्य किया। उसे बादशाह के सामने ला कर उन्होंने कहा, इसे दो-चार दिन पूरा आराम दिया जाए और पौष्टिक भोजन दिया जाए तो इसका रूप और निखरेगा क्योंकि अभी इस पर लंबी यात्राओं की थकन बढ़ी होगी। तीन दिन बाद अगर आप इसे देखेंगे तो शायद पहचान भी न सकेंगे। बादशाह ने यह बात मान ली और कहा कि इसे तीन दिन के बाद ही रंगमहल में भेजा जाए।
बादशाह की राजधानी समुद्र तट पर थी और शाही महल का पिछवाड़ा बिल्कुल समुद्रतट के सामने पड़ता था। वह नई दासी अक्सर अपने कमरे के छज्जे पर बैठ जाती और एकटक समुद्र की लहरों के तट पर टकराने का तमाशा देखती थी। तीन दिन के बाद चौथे दिन भी उसी प्रकार वह समुद्र की ओर देख कर अपना मन बहला रही थी कि उसी समय परिचारिकाओं ने बादशाह से कहा कि अब नई दासी अपनी पूरी छवि में आ चुकी है। बादशाह उससे मिलने को इतना बेचैन हुआ कि उसे बुला भेजने के बजाय खुद उसके पास जा पहुँचा। पहले तो उसके आने की आहट से नई दासी ने यह समझा कि कोई परिचारिका आई होगी। किंतु जब कुछ क्षणों के बाद उसने बादशाह को देखा तो भी कुरसी से न उठी, न किसी और तरह सम्मान प्रदर्शित किया। बादशाह को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। किंतु उसे क्रोध नहीं आया, उसने यह समझा कि यह इतनी उद्दंडता इसलिए दिखा रही है कि उसकी शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई।
बादशाह के इशारे से परिचारिकाएँ हट गईं। बादशाह ने समीप जा कर उसके गले में हाथ डाला। दासी ने कोई आपत्ति नहीं की किंतु वह बोली-चाली भी नहीं। बादशाह उसे कमरे में ले गया। रतिक्रिया के बाद उसने दासी से कहा, मेरी प्राणप्यारी, तुम किस देश की निवासिनी हो और तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है। मेरे महल में सौ रानियाँ और कई हजार दासियाँ हैं किंतु उनमें से कोई एक भी सौंदर्य में तुम्हारे पास भी नहीं फटक पाती। मुझे तुमसे जितना प्रेम है उतना किसी रानी से भी नहीं है।
नई दासी इस पर भी चुप रही। बादशाह ने कहा, प्रिये, तुमने मेरी किसी बात का उत्तर नहीं दिया। कुछ तो बोलो ताकि मैं जैसे तुम्हारे सुंदर मुखमंडल से आनंदित होता हूँ वैसे ही तुम्हारे मीठे वचनों को सुन कर भी तृप्ति प्राप्त करूँ। तुमने तो मेरी ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा जिससे मेरे नयन तृप्त होते। आखिर तुम्हें कौन-सी चिंता सता रही है जिसने तुम्हारी वाणी को अवरुद्ध कर दिया है। तुम मुझे अपनी व्यथा बताओ। अगर तुम अपने माँ-बाप को याद कर रही हो तो उनका मिलना तो असंभव है, हाँ इसके अतिरिक्त तुम जो कुछ भी चाहो उसे तुम्हारी सेवा में उपस्थित कर दिया जाएगा।
बादशाह ने उससे इस प्रकार की बहुत-सी बातें कहीं किंतु दासी मुँह नीचा किए भूमि की ओर ही देखती रही। बादशाह फिर भी उससे क्रुद्ध न हुआ। उसने परिचारिकाओं को आवाज दी और उनसे भोजन मँगवाया, वह स्वयं भी खाने लगा और अपने हाथ से स्वादिष्ट व्यंजनों के ग्रास नई दासी के मुख में देने लगा। वह खाती रही किंतु चुप ही रही। फिर बादशाह ने आज्ञा दी कि गायन-वादन और नृत्य का आयोजन किया जाए। इस पर भी वह चुप रही। बादशाह ने दासी की परिचारिकाओं से पूछा कि यह कभी बोलती भी है या नहीं, उन्होंने कहा कि किसी ने इसे बोलते क्या मुस्कुराते भी नहीं देखा। खैर, बादशाह ने रात भर उससे विहार किया और तय किया कि उसके अतिरिक्त किसी से संभोग न करेगा।
इस निर्णय के बाद बादशाह ने कुछ दासियों को सेवा कार्य के लिए रख कर बाकी दासियों और सभी रानियों को बुला कर उन्हें काफी धन दे कर स्वतंत्र कर दिया कि वे जहाँ चाहें जाएँ और जिस से चाहें विवाह करें। एक वर्ष तक वह प्रतीक्षा करता रहा कि नई दासी उससे कुछ बात करेगी। किंतु जब ऐसा न हुआ तो उसने विकल हो कर कहा, मेरी प्राणप्रिया, मुझे बड़ा दुख है कि तुम्हारे बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चल सका है। मैं यह तक नहीं जान पाया कि तुम मेरे साथ रहने में प्रसन्न हो या अप्रसन्न। मैं तो तुम्हारे लिए कुछ उठा नहीं रखता हूँ। तुम्हारे पीछे मैंने अपनी सारी रानियों और दासियों को छोड़ दिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम गूँगी हो। ऐसा हुआ तो यह ईश्वर का बड़ा अन्याय होगा कि ऐसा भुवन मोहन रूप दे कर अंदर ऐसा दोष पैदा कर दिया। अगर तुम गूँगी नहीं हो तो भगवान के लिए कुछ बोलो क्योंकि तुम्हारे चुप रहने से मैं बड़े कष्ट में रहता हूँ। मैं इस सारे वर्ष में भगवान से प्रार्थना करता रहा कि तुम्हारे पेट से मेरा कोई लड़का पैदा हो जो मेरे बाद राज-काज सँभाले क्योंकि मेरा बुढ़ापा आ रहा है और शारीरिक निर्बलता मेरे अंदर घर करती जा रही है। अगर तुम गूँगी नहीं हो तो मुझसे बातें करो। मैं और अधिक तुम्हारी चुप्पी नहीं सह सकता। तुम न बोलीं तो मैं जान दे दूँगा और मेरी हत्या का पाप तुम पर पड़ेगा।
वह सुंदरी यह सुन कर मुस्कुराई और बादशाह की ओर देखने लगी। वह भी समझ गया कि यह कुछ बोलेगी और उसकी बात की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ देर बाद वह परम सुंदरी बोली, मुझे आप से बहुत-सी बातें कहनी हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि किस बात से आरंभ करूँ। आप ने इस सारे समय में मुझ पर इतनी दया की है और ऐसा मान दिया है जो वर्णन के बाहर है। मैं आपकी बड़ी आभारी हूँ और भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि वह आप को सवा सौ बरस की आयु दे और आपके शत्रु आपके प्रताप से ऐसे नष्ट हो जाएँ जैसे दीपक से पतिंगे। आप को कभी कोई कष्ट न हो। एक शुभ समाचार मैं आप को यह देती हूँ कि आप से गर्भ रह गया है। मुझे पूरी आशा है कि मेरे बेटा ही पैदा होगा। इस बीच मुझ से जो कुछ अविनय हुआ इसके लिए मैं क्षमा माँगती हूँ। अभी तक मैं इसलिए नहीं बोली थी कि जबर्दस्ती यहाँ लाए जाने से मुझे बड़ा क्रोध चढ़ा था किंतु अब मैं आपसे जान से प्यार करने लगी हूँ।
बादशाह इतनी बात सुन कर खुशी से पागल हो गया। उसने उसे खींच कर सीने से लगा लिया और कहा कि गर्भ रहने का समाचार दे कर तुमने मेरे सारे दुख दूर कर दिए। यह कह कर बाहर आया और मंत्री को यह शुभ सूचना दे कर कहा कि फौरन एक लाख अशर्फियाँ गरीबों और भिखारियों में बँटवा दो, मेरे राज्य में कोई दीन-दुखी न रहे। इसके बाद वह फिर उस सुंदरी के पास आ कर बोला, माफ करना, मैं तुम्हारे गर्भ धारण के समाचार से इतना प्रसन्न हुआ कि सार्वजनिक दान की घोषणा में विलंब न कर सका। अब तुम यह बताओ कि तुम्हें ऐसी क्या नाराजगी थी कि तुम साल भर तक मुझ से या किसी से भी नहीं बोलीं। वह बोली, कारण यह था कि भगवान ने मुझे आपके पास दासी रूप में भेजा और अपने देश से इतनी दूर कर दिया कि कभी वहाँ जा ही न सकूँ। विशेषतः अपने माँ-बाप, भाई-बंधु आदि का बिछोह मुझे सता रहा था। आप जानते हैं कि परतंत्र हो कर जीने में कोई आनंद नहीं, इससे तो मौत ही अच्छी। बादशाह ने कहा, तुम्हारी बात ठीक है लेकिन जब कोई स्त्री तुम्हारी जैसी सुंदर हो और मेरे जैसे व्यक्ति के हृदय में घर कर ले तो फिर उसे परेशान होने की क्या जरूरत है। सुंदरी ने कहा, आप ठीक कहते हैं। आपकी बड़ी कृपा है, किंतु दासी फिर भी दासी है।
बादशाह ने कहा, तुम्हारी बातों से मालूम होता है कि तुम किसी बड़े घराने की संतान हो। मुझे विस्तार से बताओ कि तुम कहाँ की हो और तुम्हारे माँ-बाप कौन हैं।
वह बोली, मेरा नाम गुल अनार आसीन है। मेरा पिता आसनी नामी समुद्र का राजा था। मरते समय उसने अपना राज्य मेरी माता और मेरे भाई सालेह को सौंप दिया। मेरी माँ भी किसी समुद्री राजा की बेटी थीं। हम तीनों आनंद से समय बिता रहे थे कि हमारे राज्य पर एक अन्य राजा ने चढ़ाई कर दी और हमारा राज्य छीन लिया। मेरा भाई उसका मुकाबला न कर सका और मुझे और माँ को ले कर चुपके से राज्य से निकल गया। सुरक्षित स्थान पर पहुँच कर वह बोला कि हम पर विपत्ति पड़ी है और हमारी दुर्दशा हो गई है, भगवान चाहेगा तो मैं दुबारा अपने राज्य पर कब्जा करूँगा किंतु मैं चाहता हूँ कि इससे पहले तुम्हारे विवाह से छुट्टी पा जाऊँ और चूँकि किसी जल राज्य का कोई शहजादा तुम्हारे लायक नहीं है इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा विवाह किसी थल के राजा से कर दूँ और अपनी हैसियत के अनुसर काफी दहेज आदि दूँ।
मैं यह सुन कर बहुत बिगड़ी। मैंने उससे कहा कि देखो हम दोनों एक ही माँ-बाप की संतान हैं। मैं तुम्हारा हमेशा साथ देना चाहती हूँ बल्कि जरूरत हो तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकती हूँ किंतु जब आज तक किसी जल देश की राजकुमारी का विवाह किसी स्थलवासी राजा के साथ नहीं हुआ तो मैं ही ऐसी कहाँ गिरी-पड़ी हूँ कि किसी थलवासी के गले मढ़ी जाऊँ। मेरे भाई ने कहा कि आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम किसी थलवासी राजा से विवाह नहीं करना चाहतीं। क्या तुम समझती हो कि सारे थलवासी कमीने और दुष्ट होते हैं। ऐसी बात बिल्कुल नहीं है, उनमें भी बहुत-से भलेमानस होते हैं। इस प्रकार उसने मुझे बहुत समझाया। मैंने उससे बहस तो नहीं की किंतु मुझे क्रोध बहुत आया। मैंने मन में कहा कि यह लोग मुझे भारस्वरूप समझ रहे हैं इसलिए मुझे हटाना चाहते हैं, मैं खुद चली जाऊँगी।
अतएव एक दिन जब सब लोग अपने काम में व्यस्त थे मैं अवसर पा कर जल से निकल आई और एक टापू पर एक सुरक्षित स्थान तलाश कर के लेट गई और लेटते ही गहरी नींद में सो गई। किंतु मेरा अनुमान गलत था। एक धनी आदमी वहाँ आया और मुझे सोते देख कर अपने नौकरों से उठवा कर अपने विशाल मकान में ले गया। मुझे शयनकक्ष में ले जा कर उसने मुझसे बड़ा प्रेम दिखाया किंतु मैंने उसकी ओर से पूरी उदासीनता बरती। फिर उसने चाहा कि बलपूर्वक मेरा कौमार्य भंग करे। इस पर मैंने उसे उठा कर फेंक दिया। उसका क्रोध और ग्लानि से बुरा हाल हो गया। दूसरे ही दिन उसने एक व्यापारी को बुला कर मुझे उसके हाथ बेच डाला। वह व्यापारी बड़ा भला आदमी था। उसने मुझसे कभी कोई ऐसी-वैसी बात नहीं की। उससे मुझे आपने खरीद लिया।
यह कह कर गुल अनार बोली, मैं सारे थलवासियों से घृणा करती थी इसलिए आप से भी नहीं बोली। किंतु आपका सौहार्द देख कर मुझे आपसे घृणा भी न हुई। अगर आप मेरे साथ किसी प्रकार की जोर-जबर्दस्ती करते तो मैं समुद्र में कूद जाती और अपने कुटुंबी जनों से जा मिलती। मुझे एक ही भय था कि अगर मेरी माता और भाई को यह मालूम होगा कि मैं थल देश के किसी बादशाह के पास दासी के तौर पर रही हूँ तो वे लज्जावश मुझे जीता न छोड़ते। अब तो मैं आप के पुत्र की माँ बननेवाली हूँ। अब अगर कभी चाहूँ भी तो आप का आश्रय छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती। मैं अपनी ओर से स्वयं को आपकी दासी समझती हूँ और आगे भी समझूँगी किंतु मेरी प्रार्थना है कि मेरे साथ जैसे अब तक रानियों जैसा व्यवहार किया गया है आयंदा भी वैसा ही किया जाता रहे।
बादशाह ने कहा, तुम्हारा सुंदर मुख देख कर ही मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था, अब तुम्हारी सुमधुर बातें सुन कर और भी हो गया हूँ। यह सुन कर मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा कि तुम भी एक शहजादी हो। इससे पहले तुम समुद्र के एक देश की राजकुमारी थी और आज से तुम ईरान की मलिका हो। मैं आज ही दरबार में इस बात की घोषणा करूँगा और सारे देश में मुनादी करवा दूँगा। मैं अभी तक तुम से जितना प्यार करता था आगे उससे भी अधिक करूँगा। तुम भी मेरे अलावा किसी और आदमी का ध्यान भी न करना। लेकिन एक बात बताओ। तुमने कहा कि तुम जल की निवासिनी हो। मेरी समझ में यह नहीं आया कि तुम लोग पानी में डूबते क्यों नहीं हो। सुना तो पहले भी था कि जल के अंदर भी मनुष्य रहते हैं किंतु इस बात पर विश्वास नहीं कर सकता था। अब तुमने खुद कहा कि मैं जल की निवासिनी हूँ तो विश्वास करना पड़ा लेकिन समझ में अब तक नहीं आया कि यह बात संभव किस तरह है। आदमी किस तरह पानी के अंदर रह सकता है और किस तरह वहाँ काम-काज कर सकता है?
गुल अनार ने कहा, 'देखिए, पानी कितना ही गहरा हो किंतु आप उसकी तह तक देख सकते हैं। जैसे निगाह पर पानी रोक नहीं लगाता उसी प्रकार कुछ लोग पानी के अंदर रहते भी हैं। वैसे तो समुद्र के नीचे जहाँ हम लोग रहते हैं रात-दिन के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता किंतु हम लोग पानी के अंदर से भी आसमान में चलनेवाले सूर्य तथा चंद्रमा और तारों को देख सकते हैं। जैसे धरती पर कई देश हैं और कई नगर बसे हुए हैं वैसे ही समुद्र की तलहटी में कई देश बसे हुए हैं जो अलग-अलग बादशाह के अंतर्गत हैं। बल्कि सच तो यह है कि पृथ्वी के ऊपर जितने देश हैं उसके तिगुने देश जल के नीचे आबाद हैं। यहाँ की तरह ही वहाँ भी मनुष्यों की कई जातियाँ हैं। हम लोगों के अच्छे-अच्छे भवन और राजमहल बड़े भव्य होते हैं। वे संगमरमर के बने होते हैं और उनकी दीवारों और छतों में सीप, मोती और मूँगे ही नहीं, तरह-तरह के बिल्लौर और रत्नादि जड़े होते हैं। पानी में पृथ्वी से अधिक रत्न पाए जाते हैं और मोती तो इतने बड़े होते हैं जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते और न मैं आप को ठीक तरह बता ही सकती हूँ।
'जल निवासियों में हर व्यक्ति अपने लिए सुंदर भव्य महल बना लेता है। वहाँ आने-जाने के लिए गाड़ियों की जरूरत नहीं पड़ती, हर आदमी जितनी दूर चाहे बगैर थके जा सकता है। आम आदमी घोड़ा भी नहीं रखते, सिर्फ बादशाह लोग शोभायात्रा के लिए अपनी घुड़सालों में दरियाई घोड़े रखते हैं। जब वे जुलूस में निकलते हैं या कहीं तमाशा देखने जाते हैं तो इन दरियाई घोड़ों को विशेष रूप से बनाई हुई गाड़ियों में जोत देते हैं। गाड़ियाँ इतनी आरामदेह होती हैं और घोड़े इतने होशियार होते हैं कि सवार का शरीर भी नहीं हिलता और घोड़े इशारे भर से चलते हैं। हमारे देश की स्त्रियाँ बड़ी सुंदर, चतुर और पतिपरायण होती है।'
यह कह कर गुल अनार बोली, स्वामी, यदि आज्ञा हो तो मैं अपने भाई और माता को यहाँ बुला लूँ ताकि वे खुद अपनी आँखों से देखें कि उनकी बेटी अब ईरान की मलिका बन गई है। बादशाह ने कहा, मुझे उनका स्वागत करने में अति प्रसन्नता होगी किंतु मेरी यह समझ में नहीं आता कि तुम उन्हें कैसे बुलाओगी। तुम्हें तो यह भी नहीं मालूम कि तुम्हारे देश को कौन सा रास्ता जाता है। गुल अनार बोली, वह सब मुझ पर छोड़िए। आप सिर्फ कुछ देर के लिए बगलवाले भवन में बैठें और तमाशा देखें।
मलिका गुल अनार ने अपनी दासी से आग मँगवाई फिर उसने कहा, तू बाहर जा और कमरे का द्वार बंद कर दे और जब तक मैं न बुलाऊँ यहाँ न आना। दासी के जाने पर उसने एक संदूकचे से एक चंदन का टुकड़ा निकाल कर आग पर डाल दिया और जब उसमें से धुआँ उठने लगा तो वह कोई मंत्र पढ़ने लगी। बादशाह उस मंत्र के शब्द बिल्कुल न समझ सका और आश्चर्यपूर्वक मलिका की ओर देखता रहा। मंत्र ज्यों ही समाप्त हुआ कि समुद्र की सतह ऊँची होने लगा और समुद्र बढ़ते-बढ़ते राजमहल से जा लगा। कुछ देर बाद समुद्र का पानी फट गया और उसमें से एक सुंदर युवक निकला। उसकी मूँछें पानी की तरह हरी थीं। फिर एक शालीन प्रौढ़ महिला निकली जिसके पीछे पाँच सुंदर युवतियाँ थीं।
गुल अनार ने पानी के किनारे खड़े हो कर उन सब का अभिवादन किया। दो-चार क्षणों में वे लोग किनारे आ गए। युवक का नाम सुल्तान सालेह था और वह मलिका गुल अनार का भाई था। प्रौढ़ स्त्री गुल अनार की माँ थी। किनारे पर आ कर सालेह तथा उसकी माँ ने गुल अनार को गले लगाया और उसके मिलने पर आनंद के आँसू बहाए। गुल अनार ने अपने भाई, माँ और उनके साथ आए लोगों का यथोचित आदर-सत्कार किया। उसकी माँ ने कहा, बेटी, तुम्हारे वियोग में हम पर जो कष्ट पड़ा उसके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। तुम्हारे भाई ने मुझे बताया था कि तुम किसी बात पर रूठ कर घर से निकल गई थीं। हम लोग तो बराबर तुम्हारे लिए रोते रहे। अब तुम बताओ कि तुम इस बीच कहाँ-कहाँ रहीं और तुम पर क्या बीती और यहाँ किस तरह पहुँचीं।
यह सुन कर गुल अनार अपनी माँ के चरणों पर गिर पड़ी। फिर कुछ देर बाद सिर उठा कर बोली, वास्तव में मुझ से बड़ा भारी अपराध हुआ जो आप लोगों को इस प्रकार छोड़ कर चली आई। मुझ पर बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ पड़ीं किंतु अंत में मैं इस सुखद स्थान पर पहुँच गई। यहाँ आ कर मुझे मालूम हुआ कि स्थल के बादशाह भी जल देशों के बादशाहों की तरह होते हैं। अब सालेह ने कहा, प्यारी बहन, जो हुआ सो हुआ। अब तुम हमारे साथ अपने देश को चलो। हम लोग तुम्हें अपने बीच पा कर आनंद से रहेंगे।
ईरान के बादशाह पास ही के एक स्थान से सब कुछ देख-सुन रहा था। वह मन में घबराने लगा कि अगर यह लोग मलिका को ले गए तो मैं तो जीते जी मर जाऊँगा क्योंकि मैं गुल अनार का बिछोह सहन नहीं कर सकता। लेकिन गुल अनार की बातों से उसे धैर्य हुआ। वह बोली, अब मैं यहाँ से कहीं नहीं जा सकती। एक तो यहाँ के बादशाह ने मुझे दस हजार अशर्फियों में खरीदा है, दूसरे उससे मुझे चार महीने का गर्भ है। उसके भाई और माँ ने फिर कुछ नहीं कहा।
गुल अनार ने दासियों को आवाज दे कर सारे मेहमानों के लिए नाना प्रकार के भोजन परसवा दिए। उसने उनसे भोजन करने के लिए कहा। किंतु इस पर उनके चेहरे लाल हो गए और मुँह और नथुनों से आग की लपटें निकलने लगीं। उन्होंने कहा, यह ठीक है कि तुम्हारा पति बादशाह हैं, किंतु क्या हम लोग इतने नीचे हैं कि वह हमारे साथ भोजन भी न करें। बादशाह कुछ दूर बैठा था। उनकी बात तो न सुन सका किंतु उनके मुँह और नथुनों से लपटें निकलते देख कर घबराया। गुल अनार ने उसके पास आ कर कहा, वे लोग चाहते हैं कि आप ही के साथ भोजन करें। अब यही उचित है कि आप उन लोगों के पास चलें और सब से यथायोग्य भेंट करें और सबके साथ भोजन करें। बादशाह ने कहा, मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है किंतु उनके मुँह और नथुनों से तो आग निकलती है। गुल अनार हँस कर बोली, आप चिंता न करें। इस समय वे सोच रहे हैं कि आपने स्वयं न आ कर उनका अपमान किया है। वे लोग क्रोध में आते हैं तो उनके मुँह और नथुनों से आग निकलने लगती हैं। आप चलेंगे तो उनका क्रोध दूर हो जाएगा। मेरे भाई और माँ का कहना है कि मैं उनके साथ देश चलूँ। किंतु मैं आपके प्रेम में इतनी फँसी हूँ कि आप को छोड़ कर नहीं जा सकती। बादशाह यह सुन कर बड़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा, मैं तुम्हारे जाने की बात से बड़ा दुखी था, अब तुम्हारी बात से मुझे ढाँढ़स मिला। मैं तुम्हारी माता और भाई से मिलने अभी चलता हूँ। उन्हें मुझ से कोई शिकायत नहीं रहेगी।
यह कह कर बादशाह गुल अनार के साथ उस मकान में गया जहाँ उसकी सास और साला मौजूद थे। उन लोगों ने बादशाह को देखा तो पृथ्वी से अपने सिरों को लगा कर नमन किया। बादशाह ने उनको एक-एक कर के उठाया और गले लगाया। फिर सब लोग बैठ कर प्रसन्नतापूर्वक बातें करने लगे। सालेह ने कहा, हम सब भगवान को बड़ा धन्यवाद देते हैं कि हमारी बहन बड़े कष्ट उठाने के बाद आप की छत्र छाया में आई और यहाँ बहुत ही प्रसन्न है। भगवान आपको चिरायु करे। बादशाह ने भी अभ्यागतों के स्वागतार्थ विनीत वचन कहे और सब लोग काफी देर तक सानंद बातचीत करते रहें।
रात पड़ने पर बादशाह ने भोजन लाने की आज्ञा दी। सब के साथ भोजन करने के बाद उसने पास के मकान में मेहमानों के लिए कोमल सुखदायी शैय्याएँ बिछवाईं और उनसे आराम करने को कहा। वह स्वयं गुल अनार को साथ ले कर अपने शयन कक्ष में चला गया। कुछ दिन बाद अतिथियों ने जाना चाहा तो बादशाह ने उन्हें आग्रहपूर्वक रोका कि गुल अनार के प्रसव तक तो रुक ही जाओ। वे लोग भी इस बात को सहर्ष मान गए और ईरान का सम्राट रोजाना उनके लिए नए-नए मनोरंजन प्रस्तुत करवाता रहा।
समय आने पर एक दिन गुल अनार प्रसव-पीड़ा से छटपटाने लगी। दूसरे दिन उसने एक पुत्र को जन्म दिया। यह पुत्र सुंदरता में चंद्रमा के तुल्य था इसलिए उसका नाम बद्र (चंद्रमा) रखा गया। गुल अनार की माँ ने अपने देश के अनुसार भी रस्में कीं और यहाँ के रिवाज के अनुसार छठी का भारी जोड़ा भी दिया। ईरान के सम्राट ने सार्वजनिक उत्सव की आज्ञा दी और देश के सभी निवासियों ने अपने-अपने घरों में राग-रंग का आयोजन किया।
शाही महल में जो उत्सव हुए उनका तो वर्णन ही असंभव है। बादशाह ने खजाने का मुँह खोल दिया और दीन-दुखियों को दान तथा सैनिकों, विद्वानों, कलाविदों आदि को भरपूर पारितोषिक दिए गए।
जब सौर गृहवास के दिन पूरे हो गए तो मलिका गुल अनार को स्नान करवाया गया और बादशाह, सुल्तान सालेह, उसकी माता तथा अन्य संबंधी नवयौवनाएँ बच्चे को देखने के लिए आए। सभी ने उसे उठा कर चूमा और तरह-तरह से प्यार-दुलार किया। सब के बाद सालेह बच्चे की दाई के पास गया और उसकी गोद से बच्चे को ले कर काफी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। जब सब लोग इधर-उधर की बातों में लगे थे तो सालेह चुपचाप कमरे के दरवाजों से बाहर निकला और तेजी से समुद्रतट की ओर चला। सब लोग तो इत्मीनान से रहे किंतु बादशाह घबराने लगा। सालेह तेजी से समुद्र तट पर पहुँचा और एक ऊँची जगह से झम से समुद्र में कूद पड़ा।
बादशाह यह देख कर हाय-हाय करने लगा और सिर पीटने लगा। मलिका गुल अनार ने हँस कर उसे धैर्य दिया, बादशाह सलामत, आप परेशान न हों। बच्चे को कुछ भी नहीं होगा। आप देखते तो जाइए। आप उसके पिता हैं तो मैं भी उसकी माँ हूँ, मैं तो कुछ भी चिंता नहीं कर रही।
बादशाह ने पूछा, लेकिन तुम्हारे भाई को यह क्या सूझी? उसने ऐसा क्यों किया? गुल अनार ने कहा, उन्होंने इसलिए यह किया कि बच्चे को हम लोगों की तरह जल और स्थल दोनों में रहने की आदत हो जाय। उसकी माँ तथा अन्य संबंधियों ने भी बादशाह को ऐसे आश्वासन दिए तो उसका चित्त स्थिर हुआ।
कुछ देर बाद समुद्र की सतह पर फिर उथल-पुथल होने लगी और सालेह बद्र को गोद में लिए हुए जल-तरंगों से बाहर आया। फिर वह हवा में उड़ता हुआ महल में आया जहाँ बादशाह और दूसरे लोग बैठे थे। बादशाह को यह देख कर ताज्जुब हुआ कि बच्चा अपने मामा की गोद में सो रहा है। सालेह ने बादशाह से कहा, सरकार, जब मैं आपके बच्चे को ले कर समुद्र में गया था तो आपको डर तो नहीं लगा था? बादशाह ने कहा, भाई, क्या पूछते हो। मेरी तो जान ही निकल गई थी। अब उसे सही-सलामत देख कर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे नए सिरे से जीवन मिला है।
सालेह ने कहा, बच्चे को कुछ हो ही नहीं सकता था। मैंने समुद्र में पैठने के पहले हजरत सुलैमान की अँगूठी पर खुदा महामंत्र इस्मे-आजम पढ़ लिया था। हमारे यहाँ की यह रीति हे कि हम लोगों की नस्ल में कोई बच्चा अगर पृथ्वी पर पैदा होता है तो हम इस्मे-आजम की शक्ति के बल पर उसे जल के अंदर ले जाते हैं। वही मैंने किया। यह कह कर उसने बच्चे को दाई की गोद में दे दिया।
फिर उसने अपने वस्त्रों से एक छोटा संदूकचा निकाला। उसमें से सौ हीरे, जो कबूतर के अंडों के बराबर थे, निकाले। इसके अलावा सौ लाल और नीलम जिनमें प्रत्येक लगभग आधी छटाँक का था निकाले और तीस हार भी नीलम के निकाले और उन्हें बादशाह को दे कर कहा, हमें मालूम न था कि मेरी बहन कितने ऐश्वर्यवान बादशाह को ब्याही है। हमारी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।
ईरान का बादशाह उन रत्नों को देख कर आश्चर्य में पड़ गया। उनमें दो इतने बड़े थे कि समस्त पृथ्वी पर कहीं न होंगे। उसने हर्षपूर्वक इस भेंट को आँखों से लगाया और सालेह से कहा, भाई, मैं तुम्हारी विनयशीलता से अति प्रभावित हूँ। तुम उन रत्नों को, जिनसे कई राज्य खरीदे जा सकते हैं, तुच्छ भेंट कहते हो। फिर उसने अपनी मलिका से कहा, सुंदरी, तुम्हारे भाई साहब मुझे यह सारे रत्न भेंट में दे रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि इनमें थोड़े-से रख कर शेष उन्हें वापस करूँ। किंतु वे उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। तुम अगर उन पर जोर दो तो वे शायद मान जाएँ। गुल अनार ने उत्तर दिया, हे स्वामी, आप निःशंक हो कर उन्हें स्वीकार करें। इस प्रकार के रत्न पृथ्वी पर कम हैं, किंतु समुद्र में उनकी कोई कमी नहीं है। मेरे भाई को यह सब देने पर भी कोई हानि नहीं होगी। बादशाह यह सुन कर चुप हो गया और उसने वह पूरी भेंट स्वीकार कर ली।
कुछ दिन बाद सालेह ने बादशाह से कहा, आपने हमारा इतना स्वागत-सत्कार किया कि हम आपको यथोचित धन्यवाद नहीं दे सकते। लेकिन हमें यहाँ आए अब बहुत दिन हो गए हैं। मुझे अब अपने राज्य को वापस जाना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि बादशाह की अनुपस्थिति में राज्य-प्रबंध में कुछ न कुछ गड़बड़ पैदा हो जाती है। अतएव हमें अनुमति दीजिए कि हम आप से और बहन से विदा लें और अपने देश को सिधारें। बादशाह ने कहा, तुम्हें जाने देने को जी तो नहीं चाहता लेकिन बात तुम्हारी ठीक है और मैं विवशतापूर्वक तुम्हें विदा दे रहा हूँ। किंतु यह जोर दे कर कहता हूँ कि बद्र को न भूलना और बद्र तथा उसकी माँ को देखने के लिए कभी-कभी यहाँ आते रहना।
अतएव सालेह उससे विदा हो कर अपनी माता और कुटुंबीजनों के साथ अपने देश में गया। इधर सब लोग यथावत रहने लगे। बद्र जैसे-जैसे बड़ा होता रूप और गुण में और भी निखरता जाता और उसके माता-पिता उसके विकास को देख कर प्रसन्न होते। कभी-कभी बद्र का मामा और नानी भी उसे देखने को आते। बद्र कुछ बड़ा हुआ तो उसे विभिन्न विद्याएँ और कलाएँ सिखाने के लिए विद्वान अध्यापक रखे गए। पंद्रह वर्ष की अवस्था में वह सारी विद्याओं और कलाओं में निपुण हो गया। अब उसके पिता ने उसे युवराज घोषित कर के उसके हाथ में राज्य का प्रबंध दे दिया। उसने कुछ ही दिनों में शासन को सुचारु रूप से सँभाल लिया। उसके शासन प्रबंध से कर्मचारी और प्रजा दोनों प्रसन्न हुए। बादशाह ने यह देखा तो एक दिन पूर्व घोषणा के उपरांत अपने हाथ से अपना राजमुकुट उसे पहनाया और उसके सम्मानार्थ उसके हाथ चूमने के बाद वह स्वयं मंत्रियों और अमीरों की पंक्ति में जा बैठा। सामंतों, मंत्रियों आदि ने नए बादशाह को भेंटें दीं और उसकी आज्ञा का पालन करने लगे। राजदरबार से उठ कर जब राजमुकुट लगाए हुए बद्र अपनी माँ के पास गया तो उसने दौड़ कर उसे सीने से लगा लिया।
उसके पिता ने दो वर्ष तक उसका राज्य प्रबंध देखा और उसे हर प्रकार से चतुर पा कर नगर के बाहर जा कर एकांत स्थान में भजन आदि में समय बिताने लगा। बद्र जी-जान से राज्य प्रबंध में लगा। वह नगर-नगर, ग्राम-ग्राम जा कर स्वयं सारी व्यवस्था देखता। अवकाश के समय में जंगल में जा कर शिकार खेलता। कुछ वर्षों के बाद पुराना सम्राट बीमार पड़ा और उसका रोग बढ़ता गया। अंततः वह मर गया। मरने के पहले उसने मंत्रियों आदि को बुला कर नए बादशाह के प्रति वफादार रहने की ताकीद की। उसके मरने पर बद्र और उसकी माता ने उसका बड़ा मातम किया और गौरवपूर्ण ढंग से उसके अंतिम संस्कार किए। इस अवसर पर सालेह और उसकी माँ भी शामिल हुए।
जब बादशाह के अंतिम संस्कार से फुरसत मिली तो सालेह ने एक दिन अपनी बहन से कहा, ताज्जुब है तुम्हें अभी तक बद्र के विवाह की चिंता नहीं हुई यद्यपि वह कई वर्षों से विवाह योग्य हो चुका है। लेकिन उसके बारे में तुम्हें उस समय बताऊँगा जब बद्र सो जाएगा क्योंकि संभव है उस पर वह बिना देखे ही मोहित हो जाए।
बद्र के कान में इस बात की भनक पड़ गई। रात को वह ऐसा बन गया कि जैसे गहरी नींद सो रहा है किंतु वास्तव में बगल के कमरे में माँ और मामा के बीच होनेवाला वार्तालाप सुनता रहा। वे दोनों भी उसे सोता जान कर अपने साधारण स्वर में बातें करने लगे थे।
सालेह ने अपनी बहन से कहा, मैं जिस शहजादी को बद्र के योग्य समझता हूँ वह समंदाल देश के बादशाह की पुत्री है। यह देखो, मैं तुम्हारे दिखाने के लिए उसकी एक नवनिर्मित मूर्ति ले आया हूँ। इससे तुम्हें उसके सौंदर्य का अंदाजा हो जाएगा। दिक्कत सिर्फ एक है। समंदाल नरेश बहुत ही घमंडी है और किसी को भी अपनी हैसियत का नहीं समझता है। इसीलिए उसने अपने पुत्री का विवाह अब तक नहीं किया। फिर भी वह इतनी सुंदर है कि अगर बद्र को उसके सौंदर्य का पता चलेगा तो उसके प्रेम में पागल हो जाएगा बल्कि जान तक दे देगा। उस शहजादी का नाम है जवाहर।
गुल अनार बोली, मैं समंदाल के सुल्तान को जानती हूँ। मुझे आश्चर्य है कि उसकी बेटी अब तक कुआँरी है। अपना देश छोड़ने के पहले मैंने उसे देखा था। उस समय वह आठ महीने की थी। वह उसी समय इतनी सुंदर थी कि उसका सौंदर्य दूर-दूर तक विख्यात था। इस समय जवानी में तो उसके रूप का कहना ही क्या होगा। फिर भी वह बद्र से बड़ी है और उसे समंदाल नरेश से माँगने में क्या कठिनाई हो सकती है? सालेह ने कहा कि मैंने बताया कि वह बादशाह बड़ा ही घमंडी है। देखो बहन, मैं पूरा प्रयत्न करूँगा कि उसके पिता को विवाह के लिए राजी करूँ। लेकिन काम मुश्किल है और इसमें देर लग सकती है। इस बीच बद्र को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए वरना इसमें संदेह नहीं कि वह जवाहर के प्रेम में पागल हो जाएगा और जान दे देगा। इसी प्रकार दोनों में बातें होती रहीं और बद्र सुनता रहा।
दूसरे दिन उसने चुपके से अपनी माँ के संदूक से निकलवा कर जवाहर की वह मूर्ति देखी जो उसके मामा ने अपनी बहन को दी थी। वह सचमुच ही मूर्ति देख कर जवाहर पर मर मिटा। अब उसका जी न खाने-पीने में लगता था न किसी से बोलने- चालने में। वह रात-दिन अपनी प्रिया के ध्यान में निमग्न रहने लगा। जब सालेह अपनी बहन से विदा लेने आया तो उसने भानजे की बदली हुई हालत देख कर पूछा कि क्या बात है, तुम्हारी तबियत तो ठीक है? बद्र ने कहा, मेरे स्वास्थ्य को कुछ नहीं हुआ है लेकिन आप अभी यहाँ से न जाएँ। मेरा जी घबराने लगा है और मुझे आप के साथ ही रह कर संतोष होता है। आप दो-चार दिन और रुकिए। हम लोग कल शिकार के लिए चलेंगे।
सालेह ने यह मंजूर कर लिया। वास्तव में बद्र चाहता था कि अपनी माँ से छुपा कर अपने मामा से अपने दिल की हालत कह दे और शिकार ही से आगे बढ़ कर वह अपनी प्रिया की खोज में निकल जाए। माँ से साफ-साफ कहना संभव ही नहीं था क्योंकि वह उसे किसी हालत में नहीं जाने देती। चुनांचे दोनों मामा-भानजा कुछ सेवकों के साथ शिकार पर निकल गए। वहाँ दोनों ने एक हिरन के पीछे अपने घोड़े डाल दिए। इसी चक्कर में पहले दोनों अपने सेवकों से अलग हो गए, फिर एक-दूसरे से भी। बद्र एक घने वृक्ष के नीचे घोड़े से उतर कर बैठा और अकेले में अपनी प्रिया का नाम ले कर रुदन करने लगा। कुछ देर बाद सालेह भी उसे ढूँढ़ता हुआ आया तो देखा कि एक पेड़ के नीचे बद्र विरह विलाप कर रहा है।
सालेह समझ गया कि मैंने अपनी बहन से जो शहजादी जवाहर के बारे में कहा था वह इसने सुन लिया है। वह घोड़े से उतर कर धीरे-धीरे आ कर एक पेड़ की आड़ में खड़ा हो कर सुनने लगा। बद्र कह रहा था, हे मेरी प्राण प्यारी समंदाल पुत्री, मैं तो तुम्हारी मूर्ति देख कर ही अपना धैर्य खो बैठा हूँ। मेरा विश्वास है कि तुम सारे संसार की राजकुमारियों ही से नहीं, चंद्रमा से भी अधिक सुंदर हो। तुमने मेरे हृदय पर अधिकार कर लिया है। लेकिन मैं कहाँ जाऊँ कि तुम मुझे मिलो। सालेह को इससे अधिक सुनने का धैर्य न रहा। वह आगे बढ़ कर बद्र के पास जा बैठा और बोला, इसका मतलब यह है कि तुमने हम-भाई बहन की बातें सुन ली हैं। हमने तो इस बात का ध्यान रखा था कि तुम्हें कुछ न मालूम हो लेकिन हम लोगों की होशियारी कुछ काम नहीं आई।
बद्र ने कहा, जो कुछ होना था वह तो हो ही गया। अब सोचिए कि आगे क्या होना है। यदि आप चाहते हैं कि मैं जीवित रहूँ तो मेरे विवाह का संदेशा ले कर जाएँ और उसके पिता को राजी करें। सालेह ने उसे दिलासा देते हुए कहा, तुम अब अपने नगर को जाओ। मैं अभी समंदाल देश जाता हूँ और तुम्हारे विवाह की बात वहाँ के बादशाह से चलाता हूँ। बद्र बोला, नहीं मामाजी, आप मुझे बहला रहे हैं। अगर आप को वास्तव में मेरे प्राणों की चिंता होती तो ऐसी दशा में मुझे अकेला नहीं छोड़ते। अगर आप को वास्तव में मुझसे प्रेम है तो मुझे भी अपने साथ ले चलें। सालेह ने कहा, भाई, कैसी बातें करते हो? तुम्हें तुम्हारी माँ की अनुमति के बगैर मैं किस तरह ले जा सकता हूँ?
बद्र ने कहा, फिर तो हो चुका। आप अच्छी तरह जानते हैं कि मेरी माँ मुझे प्राणों से भी अधिक चाहती हैं। वे मुझे कभी आपके साथ जाने नहीं देंगी।
सालेह अजीब चक्कर में पड़ा कि किस तरह वह इस स्थिति से निकले। उसने कुछ देर सोच कर कहा, मैं तुम्हें अपने साथ तो नहीं ले जा सकता किंतु यह अँगूठी देता हूँ जिस पर इस्मे-आजम (चमत्कारी महामंत्र) खुदा है। इसे पहन कर निःशंक पानी में घुस जाना, तुम्हें कुछ नहीं होगा। बद्र ने अँगूठी पहन ली। सालेह ने कहा, अब तुम्हारे हाथ में चमत्कारी अँगूठी है और जो कुछ मैं कर सकता हूँ वह सब तुम कर सकते हो। तुम मेरे पीछे-पीछे आओ। यह कह कर वह हवा में उड़ने लगा। बद्र भी उसके पीछे उड़ता हुआ समुद्र तट पर पहुँचा। फिर वह अपने मामा के पीछे समुद्र में गोता लगा गया और दोनों तेजी से चलते हुए सालेह के राज्य में पहुँच गए। बद्र को सालेह अपनी माँ के पास ले गया।
बद्र ने आदरपूर्वक नानी के हाथ चूमे और वह भी उसे देख कर बड़ी प्रसन्न हुई और आशीर्वाद देने लगी और उसे खूब प्यार करने लगी। उसने परिवार की अन्य स्त्रियों से भी मिलवाया और सब लोग बहुत देर तक बातें करते रहे।
इस बीच सालेह ने अवकाश पा कर अपनी माँ से बद्र का सारा हाल बताया कि वह किस प्रकार समंदाल देश की शहजादी के पीछे पागल हो गया है। उसने कहा कि अब तुम बद्र को रखना, मैं समंदाल के बादशाह से बद्र के लिए जवाहर को माँगने जा रहा हूँ। उसने कहा, मैंने और गुल अनार ने इस बात का बहुत ध्यान रखा कि इस बात की भनक बद्र को न लगे किंतु उसे मालूम हो ही गया और अब सिवाय इसके कुछ नहीं हो सकता कि जल्दी से जल्दी विवाह की बात की जाय।
सालेह की माँ बड़ी चिंतित हुई। उसने कहा, यह तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम यह नहीं जानते कि समंदाल का बादशाह बहुत ही घमंडी है? तुमने उसकी बेटी की बात ही अपनी बहन से क्यों की? इसी से तो बद्र पर पागलपन चढ़ा है। सालेह ने कहा, आप की बात ठीक है, मेरी भूल थी। किंतु अब और किया भी क्या जाय। अगर जवाहर न मिली तो बद्र निश्चय ही अपनी जान दे देगा। मैं इस सिलसिले में जो भी हो सकेगा करूँगा।
मैं वहाँ जा कर विवाह की प्रार्थना करने के पहले बादशाह को बहुमूल्य रत्नों की भेंट दूँगा और फिर चतुरता से बात शुरू करूँगा। आशा है कि मैं अपने कार्य में सफलता प्राप्त करूँगा।
उसकी माँ बोली, बेटा यह सब ठीक हैं फिर भी मुझे बड़ा डर लग रहा है। वह बादशाह बेहद घमंडी है और क्रोध में न जाने क्या करे। तुम मेरे सबसे कीमती जवाहरात ले जाओ और उसे भेंट दो। किंतु इस समय बद्र को अपने साथ न ले जाओ, उसे मेरे पास ही छोड़ जाओ। इसके अलावा यह ध्यान रखना कि बड़ी चतुराई से बात शुरू की जाय, किसी भी दशा में उसे क्रुद्ध नहीं होने देना है क्योंकि वह क्रुद्ध हुआ तो विवाह तो होगा ही नहीं, और भी कोई मुसीबत आ सकती है।
यह कह कर बुढ़िया ने अपना संदूकचा खोला और बहुमूल्य रत्न सालेह को दिए और ताकीद की कि कोई भी बात शुरू हो इससे पहले यह भेंट उसे देना ताकि वह प्रसन्न रहे। सालेह ने माँ के दिए हुए रत्न एक सुंदर मंजूषा में रखे और थोड़ी-सी सेना ले कर समंदाल देश की ओर चल दिया। कुछ काल में वह वहाँ पहुँच गया। समंदाल के बादशाह ने उसका यथोचित स्वागत किया। स्वयं सिंहासन से उतर कर उससे मिला और अपने बगल में उसे बिठाया। सालेह विनयपूर्वक बैठ गया। उससे समंदाल के बादशाह ने कहा, शायद आप किसी राजनीतिक कार्यवश आए हैं। मेरे लायक जो काम हो वह बताइए। सालेह ने कहा, कोई राजनीतिक कार्य नहीं था, केवल आपके दर्शन की इच्छा थी। हाँ, एक व्यक्तिगत कार्य भी था। यदि आप मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनना चाहें तो मैं निवेदन करूँ। समंदाल के बादशाह ने हँस कर कहा, जरूर कहिए। कहिए, आपकी क्या सेवा करूँ।
सालेह ने अपने सेवक के हाथ से रत्नों का संदूकचा लिया और समंदाल के बादशाह से कहा, मेरी ओर से यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें। बादशाह ने प्रसन्नतापूर्वक भेंट को स्वीकार किया। फिर सालेह ने कहा, हम दोनों के देशों में जो परंपरागत मैत्री रही है और जिस प्रकार आप जैसे प्रतापी नरेश की दया हम लोगों पर रही है उसी से प्रोत्साहित हो कर में आपसे अपने हृदय की बात कहने के लिए आया हूँ। आप का मन अति स्वच्छ है और आप किसी की प्रार्थना नहीं टालते इसीलिए मैं निवेदन कर रहा हूँ कि मेरी बहन का नाम गुल अनार है। बहुत दिन पूर्व उसका विवाह ईरान के सम्राट के साथ हुआ था। उसका एक बेटा है जो इस समय ईरान का सम्राट है। वह न केवल अतीव सुंदर है अपितु प्रत्येक प्रकार की विद्याओं और कलाओं में भी निपुण है। वह पंद्रह वर्ष की अवस्था से राज-काज देख रहा है। अब वह विवाह योग्य हो गया है। मेरी आप से सविनय प्रार्थना है कि आप उसे अपने दासत्व के लिए स्वीकार करें और अपनी अद्वितीय पुत्री जवाहर का विवाह मेरे भानजे बद्र के साथ कर दें।
समंदाल देश का राजा अभी तक तो बड़ा शालीन रहा था किंतु यह सुनते ही उसका चेहरा और आँखें लाल हो गईं। सालेह का हृदय काँपने लगा। कुछ क्षणों के उपरांत समंदाल नरेश ने कहा, सालेह, मैं समझता था कि तुम बड़े समझदार आदमी हो। लेकिन आज मालूम हुआ कि तुममें बिल्कुल बुद्धि नहीं है। मैंने सौजन्य के नाते तुम्हारी अभ्यर्थना अवश्य की किंतु इसका यह अर्थ तो नहीं है कि तुम्हें अपनी बराबरी की हैसियत दे दूँ। क्या तुम नहीं जानते कि मेरा ऐश्वर्य और वैभव कितना अधिक है? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा राज्य मेरे राज्य के सामने अति तुच्छ है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि मेरी पुत्री जवाहर का नाम अपनी जुबान से निकालो। तुम्हारी मौत तो तुम्हें यहाँ नहीं खींच लाई है?
सालेह ने घबरा कर कहा, शायद आपने मेरी बातों का अर्थ ठीक नहीं समझा। मैं बूढ़ा आदमी हूँ। मैं अपने लिए जवाहर को नहीं माँग रहा। मैं तो यह कह रहा हूँ कि आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे भानजे यानी ईरान के सम्राट बद्र के साथ कर दीजिए।
समंदाल का बादशाह यह सुन कर और क्रुद्ध हुआ और आपे से बाहर हो कर कहने लगा, तूने यह कह कर मेरा और अपमान किया है। कमबख्त, तू समझता है तेरे भानजे की कोई बराबरी मेरी बेटी से हो सकती है? तेरा भानजा क्या चीज है। यह कह कर उसने अपने सिपाहियों को आज्ञा दी कि सालेह को पकड़ कर उसका सिर काट लें। सालेह इस स्थिति को पहले ही से भाँपे हुए था। उसके कुछ सेवक बादशाह का क्रोध देख कर पहले ही भाग गए थे और अपनी सेना के बजाय भाग कर अपने देश को चले गए थे।
किंतु सालेह तड़प कर समंदाल के सैनिकों के बीच से निकल गया और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से चल कर अपनी सेना में जा पहुँचा। उसका सेनापति उसकी दशा सुन कर आगबबूला हो गया और बोला, आप अपनी सेना की कमी को न देखिए। एक बार हमें जौहर दिखाने का आदेश दीजिए, फिर देखिए क्या तमाशा होता है।
सालेह ने आक्रमण का आदेश दिया। समंदाल की सेना ने सामना किया किंतु परास्त हुई। सालेह ने उस बादशाह को कैद कर लिया और उसकी पुत्री को पकड़ लाने के लिए उसके महल पर चढ़ दौड़ा। किंतु जवाहर को पहले से इसकी भनक लग गई थी और वह कुछ दासियों के साथ भाग कर एक सुनसान द्वीप में जा छुपी। इधर सालेह के जो सेवक पहले ही भाग कर अपने देश में पहुँचे थे उन्होंने जा कर सालेह की माता से कहा कि समंदाल के बादशाह ने अब तक सालेह को मरवा डाला होगा। वह बेचारी यह सुन कर पछाड़ खा कर गिर पड़ी और बेहोश हो गई। दूसरे लोग भी रोने-पीटने लगे। बद्र भी वहाँ मौजूद था। उसे बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे कारण मेरे मामा की जान गई। उसने सोचा कि अब मैं इन लोगों को क्या मुँह दिखाऊँ। यह सोच कर वह ईरान के लिए चल पड़ा।
बद्र बड़ी हड़बड़ी में चला था इसलिए पानी में रास्ता भूल गया और कई दिन बाद भटकता हुआ उसी टापू में पहुँचा जहाँ पर जवाहर ने आश्रय लिया था। वह थक कर एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था कि उसे एक ओर से कुछ स्त्रियों की बोली सुनाई दी। वह उधर गया तो देखा कि एक शहजादी दासियों से घिरी बैठी है। वह समझ गया कि यही मेरी प्रेयसी है। उसने पास जा कर कहा, भगवान की बड़ी दया है कि आपसे भेंट करने का अवसर मिला। मैं आपका सेवक हूँ। अगर आपकी कुछ सहायता कर सकूँ तो मुझे प्रसन्नता होगी। जवाहर बोली, आपके वचनों से मुझे बड़ा धैर्य मिला। मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। मैं समंदाल नरेश की बेटी जवाहर हूँ। पड़ोस के एक राजा सालेह ने हम पर आक्रमण कर के मेरे पिता को कैद कर लिया है। मैं किसी तरह भाग कर यहाँ पर आ कर छुपी हूँ।
बद्र ने बगैर आगा-पीछा सोचे अपना सच्चा परिचय दे दिया। उसने कहा, मैं ईरान का सम्राट हूँ। मेरा नाम बद्र है। सालेह साहब मेरे मामा हैं। वे आपके साथ मेरे विवाह का संदेशा ले कर आपके पिता के पास गए थे किंतु आपके पिता ने उन्हें मार डालने का आदेश दिया। इस पर मेरे मामा की सेना ने आपके देश पर चढ़ाई कर दी और आपके पिता को कैद कर लिया। अब आप धैर्य रखिए। सालेह केवल यह चाहते हैं कि आपके पिता आपको मुझ से ब्याह दें। अब मैं इन दोनों बादशाहों से मेल करा दूँगा।
जवाहर बद्र के रूप और शील को देख कर मोहित थी किंतु जब उसे मालूम हुआ कि इसी नवयुवक के कारण मेरे राज्य पर विपत्ति आई है तो उसके हृदय में क्रोध भर गया। चूँकि उसका सीधा सामना नहीं कर सकती थी इसलिए उसने छल से काम लिया। वह जादूगरनी थी लेकिन मंत्र पढ़ने के लिए भी किसी तरह के पानी की जरूरत होती है और वह टापू निर्जल था। उसने कहा, ईरान के सम्राट, मुझे आपसे मिल कर बड़ी प्रसन्नता हुई। वास्तव में मेरे पिता ने बड़ी भूल की कि मेरा विवाह आप से नहीं किया शायद वे आपको देखते तो इनकार न करते। खैर, अब तो मेरे पास आ कर बैठिए। यह कह कर उसने हाथ बढ़ाया। बद्र ने पास आ कर उसका हाथ पकड़ना चाहा तो उसने हाथ खींच लिया और उसके मुँह पर थूक दिया और इस प्रकार जल की कमी पूरी कर के मंत्र पढ़ कर उसे लाल पीठ और पाँवों का पक्षी बना दिया और एक दासी से कहा, इसे इससे भी अधिक निर्जल द्वीप में छोड़ दे ताकि यह वहाँ भूखा-प्यासा मर जाए।
दासी पक्षी रूपी बद्र को पकड़ कर ले चली। मार्ग में उसे उस पर दया आई कि ऐसा लाड़-प्यार का पाला जवान बगैर दाना-पानी के तड़प-तड़प कर मरेगा। उसने यह भी सोचा कि यद्यपि शहजादी ने क्रोध में उसे ऐसा दंड दिया है किंतु स्वभावतः वह दयालु है और क्रोध उतरने पर इसकी मौत पर उसे पछतावा ही होगा। इसलिए उसने तय किया कि उसे निर्जन द्वीप में तो छोड़े किंतु वह हरा-भरा द्वीप हो जहाँ वह जीवित रह सके। उसने यही किया, ऐसे द्वीप में उसे ले जा कर छोड़ा जहाँ सघन वृक्ष थे और पानी के झरने थे और जगह-जगह पर तालाब भी थे।
इधर सालेह ने महल में बहुत तलाश करवाई किंतु जवाहर कहीं न मिली। उसने क्रोध में आ कर अपने सेवकों को आदेश दिया कि समंदाल नरेश को बंदीगृह में तरह-तरह के कष्ट दो क्योंकि उसे जवाहर के बारे में मालूम होगा और जब कष्ट से बेचैन हो जाएगा तो उसका पता बताएगा। फिर वह अपने देश में वापस आया और दूसरे दिन अपनी माँ से पूछा कि बद्र दिखाई नहीं देता, क्या बात है। उसकी माँ ने कहा कि जब मैंने समंदाल नरेश के तुमसे कुपित होने का समाचार सुना और वहाँ से तुम्हारी सहायता के लिए दूसरी बड़ी सेना भेजी उसी समय से बद्र कहीं दिखाई नहीं देता है, पता नहीं वह कहाँ चला गया।
सालेह यह सुन कर बड़ा दुखी हुआ और सोचने लगा कि इतना सारा झंझट बेकार ही हुआ, मैंने बद्र की प्रसन्नता के लिए ही यह सब किया था और इस समय बद्र ही गायब है। उसे बड़ी लज्जा लगी कि अब वह अपनी बहन को क्या मुँह दिखाएगा। उसने अपने सरदारों और समस्त उच्च कर्मचारियों को आदेश दिया कि सारे देश में खोज कर के बद्र का पता लगाया जाय। किंतु कई दिनों तक तलाश होने पर भी उसका पता नहीं चला। फिर सालेह ने सोचा कि संभव है कि बद्र खुद भी उसकी सहायतार्थ समंदाल देश को गया हो। इसलिए सालेह ने अपनी माँ को राज्य का प्रबंध सौंपा और स्वयं समंदाल देश को चल पड़ा।
इधर ईरान में मलिका गुल अनार ने बहुत दिनों तक प्रतीक्षा की किंतु सालेह या बद्र किसी की वापसी न हुई। फिर उसने दोनों के साथ गए शिकारियों को पुछवाया कि वे आए हैं या नहीं। उन्होंने वापस आ कर मलिका का आदेश सुना तो उसके पास आए और कहने लगे, दोनों ने एक हिरन के पीछे घोड़े डाल दिए थे और हम पीछे रह गए। बहुत दिनों तक हम उन्हें ढूँढ़ते रहे। वे तो नहीं मिले किंतु उनके घोड़े एक पेड़ से बँधे हुए मिले। हम उन्हीं घोड़ों को ले कर चले आए।
शिकारियों की बात सुन कर मलिका को इत्मीनान हुआ कि घोड़ों को छोड़ कर सालेह और बद्र दोनों समुद्र में प्रवेश कर गए होंगे और सालेह के राज्य में चले गए होंगे। प्रकट में उसने शिकारियों और सिपाहियों को आज्ञा दी कि बद्र और सालेह को उसी वन में ढूँढ़ते रहें जहाँ से वे गायब हुए थे। फिर वह अपनी दासियों की नजर बचा कर समुद्र में पैठ गई और अपने मायके पहुँची। वहाँ जा कर अपनी माँ से पूछा कि सालेह और बद्र अचानक गायब हो गए हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि वे यहाँ आए हों।
उसकी माँ ने कहा, बेटी, उन दोनों का हाल मैं क्या बताऊँ। उन दोनों के यहाँ पर आने से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई किंतु जब सालेह ने बताया कि बद्र समंदाल की शहजादी के पीछे पागल है और उससे विवाह न हुआ तो जान दे देगा तो मैं चिंतित हुई कि वह बादशाह तो बड़ा घमंडी है, इस विवाह के लिए कैसे तैयार होगा। सालेह ने कहा कि मैं विवाह का प्रस्ताव ले कर जाता हूँ। मुझे जो आशंका थी वही हुआ। समंदाल नरेश ने क्रुद्ध हो कर सालेह को पकड़ लिया और उसका वध करने का आदेश दिया। उसके साथ के कुछ लोग भाग कर यहाँ आए और हाल सुनाया। मैंने यह सुन कर एक बड़ी सेना सालेह को छुड़ाने के लिए भेजी। यह हाल सुन कर बद्र किसी ओर को चुपचाप निकल गया। उधर सालेह समंदाल नरेश के बंधन से निकल भागा और अपनी थोड़ी-सी सेना से समंदाल के बादशाह को हरा कर उसे कैद कर लिया। वापस आने पर जब उसे बद्र के गुम होने का हाल मालूम हुआ तो यहाँ ढुँढ़वाने के बाद उसकी खोज में फिर समंदाल चला गया।
गुल अनार यह सुन कर रोने लगी। वह अपने भाई को बुरा-भला भी कहने लगी कि अच्छी शहजादी का जिक्र किया कि लड़के का दिमाग ही फिर गया। उसकी माँ ने कहा, इसमें संदेह नहीं कि सालेह को चाहिए था कि जवाहर का उल्लेख तुमसे करते समय सावधानी बरतता कि बद्र को यह मालूम न हो पाता। किंतु अब तुम चिंता न करो। वह बद्र को जरूर ढूँढ़ निकालेगा। तुम्हारे लिए यही उचित है कि ईरान जा कर राज्य प्रबंध सँभालो वरना वहाँ कोई उपद्रवी व्यक्ति गड़बड़ी कर सकता है। गुल अनार ने माँ की सलाह मान ली और ईरान वापस आ गई। ईरान आ कर उसने एक और समझदारी का काम किया। उसने राजधानी में घोषणा करवा दी कि बद्र का हालचाल मालूम हो गया है, वह सकुशल है और शीघ्र ही यहाँ वापस आएगा। सभी लोग इस बात को सुन कर प्रसन्न हुए और यथानियम अपना-अपना काम मुस्तैदी से करने लगे।
अब बादशाह बद्र का हाल सुनिए। जब दासी उसे पक्षी के रूप में पृथ्वी के एक टापू पर छोड़ आई तो वह अपने को पक्षी के शरीर में देख कर बड़ा आश्चर्यान्वित हुआ। उसे मालूम भी न था कि ईरान किधर है और उसके पंखों में इतनी शक्ति भी न थी कि उड़ कर किसी दूर देश को जाता। और ईरान पहुँच भी जाता तो क्या लाभ था, उसे पक्षी के रूप में कौन पहचान पाता। मजबूरी में उस द्वीप के फल और दाने खाता रहता और रात को किसी डाल पर बैठ कर सो जाता। कुछ दिन बाद एक चिड़ीमार जाल ले कर वहाँ आया और उसे देख कर आश्चर्य करने लगा। उसने इतना सुंदर पक्षी कभी नहीं देखा था। उसने जाल बिछाया और अन्य पक्षियों के साथ बद्र को भी पकड़ लिया और नगर में आ कर बाजार में पक्षियों को बेचने के लिए बैठ गया।
कई लोगों ने उस लाल रंग के पक्षी का दाम पूछा। चिड़ीमार ने कहा, यह तुम लोगों के काम का नहीं है। तुम इस का क्या करोगो? भून कर खाने के लिए ही तो खरीद रहे हो। इसका क्या दोगे? दो-चार आने या हद से हद एक रुपया। तुम दूसरे पक्षी ले लो। इसे तो मैं यहाँ के बादशाह को भेंट दूँगा। वह इसकी कद्र करेगा और मुझे अच्छा इनाम देगा। उस बहेलिए ने ऐसा ही किया। वह पक्षी को ले कर राजमहल की ओर गया। संयोग से उस समय बादशाह महल के छज्जे पर बैठा हुआ बाजार का तमाशा देख रहा था। उसने बहेलिए के पिंजरे में वह सुंदर पक्षी देखा तो सेवकों द्वारा बहेलिए को बुलाया। बहेलिया आया तो बादशाह ने पूछा, इस पक्षी को कितने में बेचोगे? बहेलिए ने भूमि चूम कर कहा, पृथ्वीपाल, मैं इसे बेचने के लिए नहीं लाया हूँ, सरकार को भेंट देने के लिए लाया हूँ। ऐसे सुंदर पक्षी की कद्र बादशाह के अलावा और कौन कर सकता है?
बादशाह चिड़ीमार की बात सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने चिड़ीमार को दस अशर्फियाँ दिलवाईं और पिंजरा रखवा लिया। उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि इस पक्षी को सोने के पिंजरे में रखा जाए ओर इसकी दाने-पानी की प्यालियाँ नीलम की हों। एक दिन बाद उसने सेवकों से पूछा कि लाल रंग के पक्षी का क्या हाल है। उन्होंने कहा, हमने उसके लिए अच्छा से अच्छा दाना और पानी रखा किंतु वह कुछ खाता-पीता ही नहीं है। बादशाह के खाने का समय हो गया था। उसने भोजन भी मँगवाया और पक्षी को भी पिंजरे से निकाल कर अपने हाथ पर बिठाया। ज्यों ही शाही भोजन की तश्तरियाँ लगीं कि पक्षी बने हुए बद्र ने कूद-कूद कर स्वादिष्ट राजसी व्यंजन खाना शुरू कर दिया। बादशाह को यह देख कर हँसी आई कि यह पक्षी भी राजसी व्यंजनों का शौकीन हैं। उसने दासियों को आज्ञा दी कि मलिका को भी बुला लाएँ ताकि वह इस पक्षी का तमाशा देखें।
मलिका आई तो मुँह खोले हुए किंतु पक्षी को देखते ही उसने मुँह पर नकाब डाल लिया। बादशाह ने आश्चर्य से पूछा, मलिका, यहाँ तो केवल मैं हूँ और महल की दासियाँ। यहाँ कौन बेगाना मर्द बैठा है जिससे तुम परदा कर रही हो? मलिका ने कहा, आप गैर मर्द को अपने हाथ पर लिए बैठे हैं। बादशाह ने कहा, तुम पागल तो नहीं हो गई हो? आदमी किसी आदमी को हाथ पर ले कर कैसे बैठ सकता है? मलिका ने कहा, नहीं, मैं ठीक कह रही हूँ। यह पक्षी जिसे आप हाथ पर लिए बैठे हैं स्वाभाविक पक्षी नहीं है। यह आदमी है जिसे जादू के जोर से पक्षी बना दिया गया है।
बादशाह का कौतूहल बढ़ा। उसने विस्तारपूर्वक सारा हाल बताने को कहा तो मलिका ने बताया, यह ईरान का बादशाह है। इसका नाम बद्र है। इसकी माता गुल अनार है जो एक प्रख्यात जलदेश की शहजादी है। इसकी नानी का नाम रानाफर्राशी है, वह भी एक अन्य जलदेश की राजकुमारी थी। प्रख्यात जलदेश समंदाल की शहजादी जवाहर ने क्रोध में आ कर इसे जादू के जोर से पक्षी बना दिया है। बादशाह को यह सुन कर बड़ा खेद हुआ। वह बोला, देखो भाग्य भी कैसे-कैसे खेल खिलाता है। कहाँ तो यह बादशाह था, कहाँ अब पक्षी बन कर पिंजरे में बंद है। एक बात बताओ। तुम अगर इतना सब जानती हो तो यह भी जानती होगी कि यह किसी तरह अपने पूर्व रूप को प्राप्त कर सकता है या नहीं।
मलिका ने कहा, यह क्या मुश्किल है। मैं भी जादू जानती हूँ और इसलिए मैंने इसका रूप भी पहचान लिया और इसका इतिहास भी जान लिया। किंतु मैं परदेदार औरत हूँ, इसे अपने सामने इसके असली रूप में न लाऊँगी। आप इसे ले कर दूसरे कक्ष में चले जाइए, फिर मैं जो कुछ करने को आपसे कहलवाऊँ वह कीजिए। वह अपने असली रूप में आ जाएगा।
बादशाह पक्षी को ले कर दूसरे कमरे में चला गया। इधर रानी ने एक पात्र में जल मँगवाया और उस पर मंत्र पढ़ने लगी। कुछ देर में पात्र का जल खौलने लगा। मलिका ने थोड़ा अभिमंत्रित जल बादशाह के पास भिजवाया और जल ले जानेवाली दासी से कहा, बादशाह से कहना कि इस जल को उस पक्षी पर छिड़क कर कहें कि इस मंत्र की शक्ति से तथा समस्त संसार के रचयिता सर्वसमर्थ भगवान की इच्छा से तू अपने पूर्वरूप को प्राप्त हो जा और अगर तू स्वाभाविक रूप से पक्षी हो कर ही जन्मा है तो इसी शरीर में रह।
बादशाह ने मलिका की इच्छानुसार यह शब्द कहे और तुरंत ही बादशाह बद्र अपने असली रूप में आ गया। बादशाह को उसका रूप और चेहरे पर राजसी भाव देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि वह पक्षी की योनि से छूट गया। बद्र अपने पुराने शरीर को पा कर खुशी के आँसू बहाने लगा। उसने हाथ उठा कर भगवान को इस कृपा के लिए धन्यवाद दिया और फिर बादशाह के चरणों में गिर पड़ा और उसे भाँति-भाँति रूप से धन्यवाद देते हुए उसके चिरायु और सर्वाधिक वैभवशाली होने की कामनाएँ करने लगा। मलिका ने यह देखा तो संतुष्ट हो कर अपने आवास में वापस चली गई।
बादशाह ने बद्र को उठा कर गले लगाया और फिर उसे अपने साथ बिठा कर भोजन कराया। भोजन के उपरांत उसने बद्र से पूछा कि तुम से शहजादी जवाहर इतनी नाराज क्यों हो गई थी कि तुम्हें इतना बड़ा दंड दे बैठी। बद्र ने उसे आद्योपांत सारी कथा कह सुनाई। बादशाह को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, भाई, तुम्हारी कहानी तो लिख कर रखने के लायक है। अच्छा, जो हुआ सो हुआ। अब तो तुम फिर से अपने रूप में आ गए हो। अब क्या इरादा है। जो मदद मुझसे माँगो मैं देने के लिए तैयार हूँ।
बद्र ने कहा, मेरे गायब होने के बाद मेरी माता दुख से तड़प रही होगी। वैसे तो आपने मुझ पर जो अहसान किया है वही क्या कम है, किंतु यदि मेरी प्रसन्नता की बात पूछते हैं तो मेरे लिए एक जहाज का प्रबंध करा दीजिए जिससे मैं अपने देश ईरान को चला जाऊँ और अपनी माँ को धैर्य दे कर अपना राज्य प्रबंध सँभालूँ।
बादशाह ने खुशी से मंजूर कर लिया। उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि बद्र को ईरान वापस ले जाने के लिए एक बढ़िया जहाज सजाया जाए। ऐसा ही किया गया और बादशाह से धन्यवादपूर्वक विदा ले कर बद्र ने ईरान के लिए यात्रा शुरू कर दी। दस दिन तक जहाज आराम से चलता रहा लेकिन ग्यारहवें दिन मुसीबत खड़ी हो गई। समुद्र में एक प्रचंड तूफान आया। साथ ही हवा का रुख भी बदल गया। जिससे जहाज अपने रास्ते से भटक गया। कुछ ही देर में जहाज के सारे मस्तूल टूट गए और जहाज काग की तरह लहरों पर उछलने लगा। देखते ही देखते उसका तला एक जलगत चट्टान से टकराया और जहाज टुकड़े-टुकड़े हो गया। औरों का मालूम नहीं क्या हुआ किंतु बद्र एक तख्ते के सहारे तैरता हुआ कुछ घंटों में भूमि पर जा लगा। यह एक द्वीप था जिसमें समुद्रतट पर एक ओर पहाड़ था और दूसरी ओर दूर पर एक नगर दिखाई दे रहा था। बद्र जल से निकल कर भूमि पर आया और आराम करने के लिए लेट गया।
किंतु तुरंत ही घोड़े, गाएँ और बहुत-से दूसरे जानवर आ कर शोर करने लगे और उसे समुद्र की ओर ढकेलने लगे। वह किसी तरह उनसे बच कर एक पहाड़ की खोह में जा छुपा और कुछ देर आराम करने के बाद और कपड़े सुखाने के बाद नगर में जाने के लिए उद्यत हुआ किंतु वे जानवर फिर आ गए और चिल्ला-चिल्ला कर उसका रास्ता रोकने लगे। वह किसी तरह उनसे बचता-बचाता नगर में प्रविष्ट हो गया। वहाँ उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि सड़कों आदि पर सफाई आदि खूब है किंतु दुकानदार कम ही हैं। काफी देर बाद उसे एक दुकान में एक बूढ़ा दिखाई दिया जो वहाँ रखे फलों को पोंछ- पोंछ कर साफ कर रहा था। बद्र ने पास जा कर उसे सलाम किया। उसने बद्र को देखा तो उसके रूप से बहुत प्रभावित हुआ। फिर उसके सलाम का जवाब दे कर उसने पूछा, तुम कौन हो? कहाँ से आए हो? बद्र ने संक्षेप में अपना परिचय दिया। इसके बाद बूढ़े ने पूछा, मेरे अलावा तुम्हें और किसी ने तो यहाँ नहीं देखा? बद्र ने कहा, नहीं, आपके सिवा किसी मनुष्य को मैंने यहाँ पर पास से नहीं देखा। मुझे बड़ा आश्चर्य है कि ऐसा स्वच्छ और सुंदर नगर ऐसा वीरान क्यों हैं। बूढ़ा बोला, अच्छा, अच्छा, तुम बाहर खड़े न रहो, अंदर आ जाओ।
बद्र अंदर गया तो बूढ़ा बोला, यह बड़ा अच्छा हुआ कि अभी तक तुम्हें किसी ने नहीं देखा है। इस नगर की बड़ी विचित्र कथा है। किंतु तुम भूखे-प्यासे मालूम होते हो, पहले खाना खाओ फिर मैं यहाँ की बातें तुम्हें बताऊँगा। बद्र खा-पी कर तृप्त हुआ तो वृद्ध ने कहना शुरू किया, देखो बादशाह बद्र, यहाँ पर तुम्हें बहुत होशियारी से रहना है, यह जादू नगरी है। यहाँ की शासिका एक स्त्री है। वह अत्यंत रूपवती है और साथ ही मंत्र विद्या में निपुण। वह बड़ी विलासिनी भी है। तुमने देखा होगा कि नगर के बाहर समुद्र तट पर बहुत-से जानवर हैं जो हर एक को रोकने की कोशिश करते हैं कि वह इस शहर में प्रवेश न करे। वे सब पहले तुम्हारी तरह मनुष्य थे। यहाँ की मलिका ने उन्हें अपने मंत्र बल से पशु बना रखा है।
बद्र को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, मलिका आदमी को जानवर क्यों बना देती है?
बूढ़े ने कहा, मैंने तुम्हें बताया न कि मलिका बड़ी विलासप्रिय है। जब कोई तरुण सुंदर पुरुष उसे दिखाई देता है तो वह उसे पकड़वा मँगाती है। मैंने इसीलिए तुमसे पूछा था कि तुम्हें किसी ने देखा तो नहीं। वह उसका बड़ा आदर-सत्कार करती है और उसके साथ भोग-विलास करती है। कुछ दिनों में जब उसका जी उस आदमी से भर जाता है और जब उसके जाल में कोई और रूपवान पुरुष आ जाता है तो वह इस पहले आदमी को बैल, घोड़ा या कोई और जानवर बना कर छोड़ देती है। ताकि उसका भेद किसी पर प्रकट न हो। यह सब बेचारे जानवर किसी समय उसके प्रेमपात्र रह चुके हैं। जब भी कोई दुर्भाग्य का मारा सुंदर जवान आदमी इस नगर में आना चाहता है तो वे शोर मचा कर उसे रोकने की कोशिश करते हैं। वे बेचारे कोई भाषा तो बोल नहीं पाते कि अपनी दुर्दशा का पूरा हाल कहें। सिर्फ चिल्ला-चिल्ला कर यही कहना चाहते हैं कि वापस चले जाओ, इस मनहूस शहर के अंदर न आना वरना तुम्हारी हालत भी हमारे जैसी हो जाएगी। लेकिन आनेवाला उनके अभिप्राय को समझने में असमर्थ रहता है और उनके शोरगुल को अनसुना कर नगर में चला जाता है और रानी के जाल में फँस कर कुछ दिनों बाद पशु बन कर उन पशुओं में जा मिलता है।
बद्र यह सुन कर बहुत घबराया और कहने लगा, हे ईश्वर, यह कैसा अन्याय है। मैं अभी-अभी एक जादूगरनी के जादू से छूटा हूँ और दूसरी के देश में आ फँसा हूँ। बूढ़े के पूछने पर उसने विस्तार में जवाहर द्वारा अपने पक्षी बनाए जाने और अज्ञात द्वीप की रानी द्वारा फिर से मनुष्य बनाए जाने की कहानी कही। बूढ़े ने कहा, इसमें संदेह नहीं कि तुम बड़े खराब देश में आ फँसे हो लेकिन तुम्हारा भाग्य प्रबल था कि तुम सब से पहले मुझ से मिले। अब तुम इसी दुकान में रह कर काम करो। मुझे यहाँ का हर एक व्यक्ति जानता है, तुम्हें यहाँ रहने में कोई कष्ट न होगा किंतु खबरदार किसी और से मेल-जोल नहीं बढ़ाना वरना मुसीबत में फँस सकते हो।
बादशाह बद्र ने वृद्ध को बड़ा धन्यवाद दिया कि तुमने मुझे खतरे से सावधान कर दिया। वह उसकी दुकान में बैठा रहता और दुकान का काम किया करता। जो भी व्यक्ति उस बूढ़े की दुकान पर आता वह बद्र के रूप को देख कर ठगा-सा रह जाता। देखनेवालों को यह भी आश्चर्य होता कि यह अभी तक दुष्ट रानी के फंदे से किस तरह बच पाया है क्योंकि वह तो किसी रूपवान मनुष्य को अपने पाश में फँसा कर जानवर बनाए बगैर छोड़ती ही नहीं है। कई लोगों ने बुड्ढे से पूछा कि क्या यह जवान आदमी तुम्हारा दास है। बुड्ढे का हमेशा एक ही जवाब होता, भाइयो, यह मेरा दास नहीं है, मेरा भतीजा है। इसके पिता यानी मेरे भाई का हाल ही में देहांत हो गया है। वह मरते समय बिल्कुल निर्धन हो गया था और इस जवान का कोई ठिकाना नहीं था। मेरा भी कोई पुत्र नहीं है। इसलिए मैंने इसे बुला कर अपने पास रख लिया है। सुननेवाले कहते, यह सुन कर तो हमें बड़ी प्रसन्नता हुई कि तुमने इस पितृहीन को आश्रय दिया किंतु हमें इस बात का बड़ा भय और खेद है कि अगर किसी ने मलिका से इसके रूप की प्रशंसा कर दी तो इस बेचारे की छुट्टी समझो। वह इसे ले जाएगी और कुछ दिनों तक इसके साथ भोग- विलास कर के इसे भी जानवर बना कर चरने के लिए छोड़ देगी।
इस पर बूढ़ा कहता, होता तो वही है जो भगवान चाहता है किंतु मुझे आशा है कि जब मैं मलिका से निवेदन करूँगा कि यह मेरा भतीजा और दत्तक पुत्र है तो वह इस पर दया करेगी और इसे पशु न बनाएगी। बद्र को यह सुन कर ढाँढ़स होता।
किंतु बूढ़े की यह आशा व्यर्थ सिद्ध हुई। लगभग एक महीने बाद की बात है कि बद्र हमेशा की तरह बूढ़े की दुकान पर बैठा हुआ था। उसी समय मलिका की सवारी उधर से निकली। उसके आगे-पीछे बड़ी सेना चल रही थी। बद्र उठ कर दुकान के अंदर गया और उसने वृद्ध से पूछा कि यह शानदार सवारी किसकी है। वृद्ध ने बताया कि यह सवारी उसी मलिका की है जिसके बारे में मैंने तुमसे पहले कहा था। उसने बद्र से कहा कि तुम घबराओ नहीं, अपने साधारण स्थान पर जा कर बैठो।
बद्र अपनी जगह जा बैठा और तमाशा देखने लगा। फौज के जितने अफसर थे सभी उस बूढ़े को सलाम करते जाते थे। सारी फौज की वर्दी गुलाबी थी। उनके पीछे ख्वाजासराओं के दस्ते थे जो उम्दा कमख्वाब के जोड़े पहने हुए थे। दुकान के सामने से निकलने पर उनके प्रमुखों ने भी वृद्ध को सलाम किया। उनके पीछे स्त्रियों का एक दल आया। वे कीमती कपड़े और जड़ाऊ जेवर पहने हुए थीं ओर उनके हाथों में बर्छियाँ चमक रही थीं। इन सशस्त्र दासियों के बीच में एक मुश्की घोड़े पर, जिसका साज सुनहरा था जिसमें कई जगह हीरे जड़े हुए थे, अत्यंत भव्य परिधान पहने हुए रानी सवार थी। सभी दासियों ने भी झुक-झुक कर वृद्ध को प्रणाम किया। जब मलिका की सवारी दुकान के सामने आई तो उसकी नजर बद्र पर पड़ी। वह उसे देखते ही उस पर मर-मिटी और उसने दुकान के मालिक बूढ़े को आवाज दी।
बूढ़ा बाहर निकला और उसने मलिका के घोड़े की रकाब चूमी। मलिका ने पूछा, यह सुंदर युवक, जो तुम्हारी दुकान पर बैठा है, कौन है? क्या यह तुम्हारा नौकर है? वृद्ध ने सिर झुका कर कहा, सरकार, यह मेरा भतीजा है। कुछ दिन पहले इसका पिता यानी मेरा भाई मर गया। मेरे कोई औलाद नहीं थी इसलिए इस लड़के को गोद ले लिया है। ताकि मेरा बुढ़ापा भी आराम से गुजरे और मरने के बाद मेरा नामलेवा भी कोई रहे। मलिका तो बद्र के रूप को देख कर दीवानी हो रही थी। उसका पूरा इरादा हो गया कि उसको अपने शयनकक्ष में ले जा कर आनंद करे। उसने बूढ़े से कहा, बड़े मियाँ, मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि अपना भतीजा मुझे दे दो। हम लोगों के देवता अग्नि और प्रकाश हैं। मैं उनकी सौगंध खा कर कहती हँ कि मेरे यहाँ इसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। तुम मुझे हमेशा से मानते रहे हो और मुझे विश्वास है कि तुम मेरी इस प्रार्थना को न ठुकराओगे। अगर तुमने अपना भतीजा मुझे दे दिया तो मैं जन्म भर तुम्हारा अहसान मानूँगी।
अब्दुल्ला यानी उक्त वृद्ध ने उसके विनय के पीछे छुपी हुई धमकी साफ-साफ महसूस की और चाहा कि किसी बहाने से बद्र को मलिका के चंगुल से बचाए। उसने कहा, सरकार, यह तो आपकी असीम कृपा है कि मेरे भतीजे को अपने पास रख कर उसी का नहीं मेरा भी अपूर्व सम्मान किया। किंतु यह बड़ा अनाड़ी लड़का है। अभी गाँव से आया। इस राजमहल के तो क्या सभ्य नागरिकों के भी तौर-तरीके नहीं जानता। इसलिए अभी इसे कुछ दिन मेरे पास ही रहने दीजिए। महिला ने कहा, तुम इस बात की चिंता न करो। मैं इसे एक दिन ही में सारे तौर-तरीके सिखा दूँगी। अब तुम इस मामले में टालमटोल बिल्कुल न करो। मैं कहे देती हूँ कि जब तक तुम इस युवक को मेरे हाथों में न सौंप दोगे मैं यहाँ से नहीं हटूँगी। मैं इसे ले कर ही जाऊँगी। मैं फिर अपने देवताओं अग्नि और प्रकाश की सौगंध खाती हूँ कि इसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं दिया जाएगा और तुम भी इस बात पर कभी पश्चात्ताप न करोगे कि तुमने अपने भतीजे को मुझे सौंपा।
अब बूढ़े ने सोचा कि जिद करना ठीक नहीं है। अगर मलिका को क्रोध आ गया तो मालूम नहीं मेरे साथ क्या कर डाले। उसने कहा, आप का हुक्म सिर आँखों पर किंतु एक विनय है। यह भतीजा मुझे बहुत प्यारा है। कम से कम एक दिन तो इसे मेरे पास और रहने दीजिए। कल यह अवश्य आपकी सेवा में उपस्थित हो जाएगा। मलिका ने यह बात मान ली और अपने सेना के साथ वापस चली गई। उसके जाने के बाद बूढ़े ने बद्र से कहा, मैं तो नहीं चाहता था कि तुम्हें उसके हाथ में दूँ लेकिन मुझे भय था कि अगर वह क्रोध में आ गई तो इसी समय हम दोनो को मरवा देगी। शायद वह तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार न भी करे। उसने अपने आराध्य अग्निदेव की कसम खाई है। फिर मलिका के सारे दरबारी मुझे मानते हैं। वे भी तुम्हारी भरसक सहायता करेंगे। बद्र को इन बातों से कुछ ढाँढ़स हुआ और वह कहने लगा, अब तो जो कुछ मेरी किस्मत में है वह भोगना ही पड़ेगा। अब चाहे इस रानी के हाथों में मेरी मौत हो या मेरे भाग्य खुलें, मुझे तो उसके पास जाना ही है।
बूढ़े ने कहा, तुम अधिक चिंता न करो। यद्यपि रानी जादूगरनी है और उसके पास राजशक्ति भी है किंतु वह मेरी शक्ति भी जानती है। वह अचानक कोई बात मेरी मरजी के खिलाफ नहीं करेगी। फिर भी वह महादुष्ट है। तुम्हें चाहिए कि हरदम होशियार रहो और अगर कोई बात असाधारण रूप से होते देखो तो मुझे उसकी सूचना देते रहना।
दूसरे दिन वह पापिनी रानी पिछली जैसी शान-शौकत से निकली और अब्दुल्ला की दुकान पर रुक गई। वह बूढ़े अब्दुलला से कहने लगी, तुम्हारे भतीजे के ख्याल में मैं रात भर सो नहीं सकी। अब तुमने कल जो वादा किया था उसे निभाओ। बूढ़े ने मलिका के सम्मानार्थ अपना शीश भूमि से लगाया फिर मलिका के समीप जा कर ताकि उसकी बात को कोई दूसरा न सुने - बोला, कल जो कुछ मैंने अपने भतीजे के बारे में कहा था उसे कृपया न भूलें। मैं उसे आपके हाथों में सौंपता हूँ। किंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि इसे किसी प्रकार का कष्ट न हो। मैंने आप से पहले भी कहा है कि और अब फिर कहता हूँ कि यह लड़का मेरे बेटे जैसा है और इसके दुख से मुझे दुख होगा। मलिका ने कहा, तुम्हें विश्वास क्यों नहीं हुआ है? मैंने तो इस बारे में तुम्हारे सामने अग्निदेवता की सौंगंध खाई है कि मेरे पास कोई दुख नहीं पहुँच सकता।
बूढ़े ने बद्र का हाथ मलिका के हाथ में दिया और कहा, आपकी बात पर विश्वास न होने का कोई प्रश्न नहीं है किंतु जहाँ आपने इतनी कृपा की है वहाँ इतनी कृपा अवश्य कीजिए कि इसे कभी-कभी यहाँ आ कर मुझ से मिलने की अनुमति दे दें। इसीलिए मैंने दुबारा इसे दुख न पहुँचने की बात की है। यह कभी-कभी आ कर मुझसे मिलेगा तो मुझे तो संतोष होगा ही, इसे भी धैर्य बना रहेगा। मलिका ने यह स्वीकार कर लिया और हजार अशर्फियों का एक तोड़ा बूढ़े को दे दिया। फिर नौकरों को आज्ञा दी कि एक बढ़िया घोड़ा लाओ जिसका साज बहुत अच्छा हो। वे तुरंत ही ऐसा घोड़ा ले आए। मलिका के कहने पर बद्र उस पर सवार हो गया। मलिका ने बूढ़े से उस का नाम पूछा तो उसने नाम बताया बद्र। मलिका बोली, यह नाम ठीक नहीं है। इसे तो बद्र (चाँद) के बजाय शम्स (सूर्य) कहना चाहिए।
यह कह कर मलिका अपने महल की ओर चल दी। बद्र भी अपने घोड़े पर उसके पीछे बाएँ बाजू से चलने लगा। रास्ते में नागरिकों की हलके स्वर में की जानेवाली बातचीत बद्र के कानों में पड़ने लगी। लोग कह रहे थे, देखो कैसा सुंदर सजीला जवान इस रानी ने चुना है। कुछ लोग कह रहे थे, यह दुष्ट नए निरपराध व्यक्ति को फँसा कर लाई है और इसके साथ भी वही नीच व्यवहार करेगी जो कई लोगों के साथ कर चुकी है। किसी ने कहा, भगवान से प्रार्थना है कि इस पुरुष पर दया करें और इसे इस कुकर्मिणी से मुक्ति दिलाएँ। कोई बोला, इसे क्या मुक्ति मिलनी है। इसके भाग्य ने साथ दिया होता तो इस व्यभिचारिणी के फंदे ही में क्यों फँसता। इन बातों को सुन कर बद्र को विश्वास हो गया कि मलिका के बारे में बूढ़े अब्दुल्ला ने जो कुछ कहा है और जो चेतावनी मुझे इसके बारे में दी है वह अक्षरशः ठीक है और मुझे सचेत रहना चाहिए।
मलिका ने महल के बाहर घोड़े से उतरने के बाद बद्र का हाथ पकड़ा और उसे महल के अंदर ले गई। महल की शान-शौकत का क्या कहना। जो चीज भी देखिए, चाहे चौकी हो चाहे अलमारी, वह स्वर्ण से निर्मित थी और हर चीज में नाना प्रकार के रत्न जड़े थे। फिर वह उसे अपने साथ बाग की सैर के लिए ले गई। बद्र ने महल की प्रत्येक वस्तु और बाग की उचित शब्दों में प्रशंसा की। महल के सारे कर्मचारी समझ गए कि यह कोई देहाती गँवार नहीं है बल्कि किसी संभ्रांत परिवार का व्यक्ति है जो हर बहुमूल्य वस्तु का सही मूल्यांकन करता है।
बाग में घूमते-घूमते खाने का समय हो गया और दासियों ने कहा कि भोजन तैयार है। मलिका उसे ले कर भोजन कक्ष में आई और दोनों सोने-चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट राजसी व्यंजन खाने लगे। खाना खत्म करने के बाद मलिका ने एक स्फटिक पात्र में स्वच्छ सुवासित मदिरा भर कर पी और एक प्याला बद्र को दी। अब मदिरापान का सिलसिला चलने लगा ओर गाने-बजानेवाली सेविकाएँ आ कर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगीं। देर तक यह राग-रंग चलता रहा।
जब काफी रात बीत गई और दोनों को खूब नशा चढ़ गया तो मलिका ने राग-रंग की सभा को समाप्त करने का इशारा किया और अन्य दासियाँ दोनों को शयन कक्ष में ले गईं।
दोनों ने केलि क्रीड़ा की और सो गए। दूसरे दिन सुबह उठ कर स्नान करने के बाद दोनों ने नए वस्त्र पहने और दिन का भोजन किया। कुछ देर के आराम के बाद मलिका फिर उसे बाग की सैर को ले गई और घंटों तक वे लोग आपस में वार्तालाप और हँसी-मजाक करते रहे। शाम होने पर वे महल के अंदर गए और पूर्व संध्या की भाँति भोजन, मद्यपान और गायन-वादन से आनंदित होने के बाद दोनों ने शयन कक्ष में विहार तथा शयन किया।
लगभग चालीस दिन तक यही क्रम चला। मलिका ने बद्र के साथ का पूरा आनंद उठाया किंतु अब उसका रवैया बदलने लगा था। बद्र ने यह परिवर्तन लक्ष्य किया ओर सचेत हो गया कि कहीं उसके साथ कोई शरारत न की जाए। एक दिन आधी रात को वह शैय्या से उठ गई। वह समझ रही थी कि बद्र सोया हुआ है किंतु वह जाग रहा था, सिर्फ सोने का बहाना किया था। वह अधखुली आँखों से मलिका के कार्यकलाप को देखने लगा।
मलिका ने एक संदूक खोला और उसमें से एक प्याला निकाला जिसमें पीली मिट्टी भरी हुई थी। फिर वह विशाल शयनकक्ष के एक कोने में गई और वहाँ जा कर कुछ मंत्र पढ़ने लगी जिससे कुछ क्षणों में वहाँ एक जलकुंड पैदा हो गया। यह लीला देख कर बद्र भयभीत हुआ और बिस्तर पर पड़ा-पड़ा काँपने लगा लेकिन अपनी जगह से नहीं हिला।
मलिका ने उस कुंड से एक पात्र में जल भरा और दूसरे पात्र में थोड़ा मैदा ले कर उस जल से उसे सानने लगी। वह मैदा सानते-सानते कोई मंत्र भी पढ़ रही थी। फिर उसने एक आलमारी से कई डिबियाँ और खाना पकाने के बरतन निकाले। डिबियों में से कुछ खास मसाले और दवाएँ निकाल कर उसने सने हुए मैदे में मिलाया और एक कुलचा तैयार किया। फिर कोयले सुलगा कर तवे पर कुलचे को सेंका और बाद में उसे सीधे कोयलों पर सेंका। कुलचा सिंक जाने पर उसने आलमारी में सामान रखा और मंत्र पढ़ कर जलकुंड को गायब कर दिया। कुलचे को सावधानी से रखने के बाद वह बद्र के पार्श्व में लेट कर सो रही।
बद्र ने यह सब देख कर समझ लिया कि इस सारी क्रिया में कोई गहरा रहस्य है। उसने सोचा कि मुझे यहाँ रहते चालीस दिन हो गए हैं और अब मलिका कोई नया गुल खिलाना चाहती है और इस मामले को अब्दुल्ला से कहना चाहिए। सुबह नहा-धो कर जब उसने नए कपड़े पहने तो उसने मलिका से कहा, आप ने मुझ पर इन दिनों ऐसी कृपा की और ऐसे आराम से रखा कि मैं भोग-विलास में अपने बूढ़े चचा को बिल्कुल भूल गया। वे बेचारे मेरी याद कर के दुखी होते होंगे और मेरी लापरवाही पर कुढ़ते होंगे। आप दो-तीन घंटे की अनुमति दें तो मैं उन्हें देख आऊँ। मध्याह्न भोजन के समय तक वापस आ जाऊँगा। बस दोनों को एक दूसरे की कुशल-क्षेम पूछनी है।
मलिका को उसकी ओर से कोई शंका न थी। उसने अनुमति दे दी। साथ ही एक बढ़िया मुश्की घोड़ा मँगवा कर और दो-एक गुलामों को उसके साथ के लिए दे कर उसे अब्दुल्ला की दुकान की तरफ रवाना कर दिया। बद्र ने गुलामों को बाहर घोड़े के पास बिठाया और खुद दुकान के अंदर चला गया। अब्दुल्ला उसे देख कर खुश हुआ और पूछने लगा कि मलिका के साथ कैसी गुजर रही है। बद्र ने कहा कि अभी तक तो उसने मुझे बड़े आराम और अपनत्व के साथ रखा है किंतु कल रात को जो कुछ मैंने देखा उससे मेरे मन में संदेह हो रहा है। फिर उसने विस्तारपूर्वक विगत रात की घटनाओं का वर्णन किया और कहा, अभी तक तो तुम्हारी बातें मैंने सिर्फ मामूली तौर पर याद रखी थीं किंतु इस रहस्यमय व्यापार से मुझे बड़ी घबराहट हुई और मैं तुम्हारे पास आ गया। अब मुझे बताओ कि वह क्या करना चाहती है और उस की दुष्टता से मैं कैसे बच सकता हूँ क्योंकि मुझे संदेह है कि वह मुझे हानि पहुँचाना चाहती हैं।
अब्दुल्ला ने हँस कर कहा, अब वह तुम्हें भी जानवर बनाने की तैयारी कर रही है। यह तुमने बहुत अच्छा किया कि फौरन मेरे पास चले आए। अब तुम किसी प्रकार का भय न करो और जो उपाय मैं बताऊँ वह करो। फिर उसने एक संदूक से दो कुलचे मैदे के निकाले और बद्र को दे कर बोला, यह अपने पास रखो। वह अपने बनाए हुए कुलचे को खाने के लिए तुम्हें देगी। तुम शौक से उसे ले लेना किंतु उसे खाने के बजाय उसकी निगाह बचा कर उसे अपनी एक आस्तीन में रख लेना और दूसरी आस्तीन से निकाल कर मेरा दिया एक कुलचा खाने लगना। वह समझेगी कि तुम उसका दिया कुलचा खा रहे हो। फिर वह तुम्हें कहेगी कि अमुक पशु बन जाओ। तुम उसका कुलचा न खाने के कारण अपने शरीर ही में रहोगे। वह आश्चर्य करेगी किंतु तुम उसके शब्दों या कार्यों पर प्रकटतः कुछ ध्यान न देना। फिर होशियारी से उसका बनाया हुआ कुलचा उसे यह कह कर खिला देना कि यह अब्दुल्ला ने तुम्हारे लिए भेजा हैं। जब वह अपना बनाया कुलचा खा ले तो उसके मुँह पर पानी के छींटे देना और कहना, अमुक पशु बन जा। उस समय तुम जिस पशु का नाम लोगे वह वही पशु बन जाएगी। फिर तुम उसे मेरे पास ले आना और उसी समय हम लोग यह तय करेंगे कि उसका क्या किया जाए।
बद्र को अब्दुल्ला की योजना बहुत पसंद आई। वह तेज-तर्रार आदमी था और लोगों की निगाहों से बचा कर चीजों को कुशलतापूर्वक छुपा लेने में प्रवीण था। उसने कई बार बूढ़े की योजना को उसके सामने दुहरा कर हृदयंगम कर लिया और बाहर आ कर घोड़े पर सवार हो कर महल की ओर चल पड़ा। वहाँ पहुँचा तो देखा कि मलिका बाग में बैठी हुई उसकी प्रतीक्षा कर रही है। बद्र को देख कर कहने लगी, मेरे प्रियतम, तुमने इतनी देर क्यों लगाई। तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे बगैर एक क्षण भी नहीं रह सकती। बद्र ने कहा, मुझे भी तुमसे अलग हो कर अच्छा नहीं लगता लेकिन मैं क्या करता। चचा ने बहुत दिनों तक खोज-खबर न लेने पर मुझ से बहुत देर तक शिकायत का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने मेरे लिए भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थ तैयार किए। किंतु मैं यहाँ आ कर तुम्हारे साथ भोजन करने का इच्छुक था इसलिए थोड़ा-सा मुँह जूठा भर कर लिया। मेरे चचा ने तुम्हारे लिए भी एक कुलचा भेजा है और प्रार्थना की है कि इसे जरूर खाना। यह कह कर उसने अब्दुल्ला के दिए हुए कुलचों में से एक निकाला। मलिका बोली, अब्दुल्ला का मुझ पर बड़ा स्नेह है। मैं उसका दिया हुआ कुलचा जरूर खाऊँगी लेकिन इससे पहले तुम यह कुलचा खाओ जो मैंने खास तौर पर तुम्हारे लिए अपने हाथ से पकाया है। यह कह कर उसने रात को पकाया हुआ कुचला बद्र को दिया।
बद्र बड़ी देर तक उसकी प्रशंसा करता रहा कि इस कृपा को कभी भूल न सकूँगा। इसी वार्तालाप में उसने मलिका का दिया हुआ कुलचा छिपा लिया और अब्दुल्ला का दिया हुआ कुलचा खा लिया और उसके स्वाद की बड़ी प्रशंसा की। मलिका ने उसके पूरा कुलचा खा लेने पर उस पर जल छिड़का और कहा, भद्दा काना घोड़ा बन जा। किंतु बद्र ने साधारण कुचला खाया था इसलिए उस पर कुछ प्रभाव न हुआ। मलिका को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जादू ने असर क्यों नहीं किया। उसने सोचा कि कुलचा तैयार करने में कुछ भूल हो गई होगी और रात को वह फिर होशियारी से जादू का कुलचा तैयार करेगी और इस समय इसे किसी प्रकार का संदेह होना न चाहिए।
अतएव जब बद्र ने अब्दुल्ला के कुलचे के नाम पर उसी का कुलचा उसे दिया तो वह कुछ देख न सकी और उसे खा गई। बद्र ने उसे मुँह पर पानी के छींटे दे कर कहा, घोड़ी बन जा। वह तुरंत घोड़ी बन गई। अपनी यह दशा देख कर वह बड़ी दुखी हुई और बद्र के पाँवों पर अपना थूथन रगड़ कर क्षमा-प्रार्थना करने लगी। किंतु यह बेकार था। बद्र चाहने पर भी उसे स्त्री नहीं बना सकता था। बद्र ने साईस से कहा कि इस घोड़ी के मुँह में लगाम लगा दे। किंतु उसके मुँह में कोई लगाम ठीक से जमती ही नहीं थी। फिर बद्र ने दो घोड़े मँगाए। एक पर खुद सवार हुआ और दूसरे पर साईस को बिठाया और घोड़ी बनी हुई मलिका को रस्सी बाँध कर घसीटता हुआ अब्दुल्ला की दुकान पर ले गया। अब्दुल्ला ने दूर से यह दृश्य देखा तो प्रसन्न हुआ। वह समझ गया था कि बद्र अपने कार्य में सफल हुआ है और मलिका को उसकी दुष्टता का उचित दंड मिला। बद्र घोड़े से उतरा, साईस के हाथ में नई घोड़ी की रस्सी दी और दुकान में चला गया।
अब्दुल्ला ने उठ कर उसे गले लगाया और उसकी चतुरता की बड़ी प्रशंसा की। बद्र ने उसे पूरा हाल बताया और कहा कि इसके मुँह में कोई लगाम नहीं समाती। बूढ़े अब्दुल्ला ने अपने घोड़ों में से एक की लगाम लगाई तो वह घोड़ी बनी हुई मलिका के मुँह में आ गई। फिर उसने बद्र से कहा कि अब तुम इस देश में बिल्कुल न ठहरो, इसी घोड़ी पर सवार हो कर अमुक मार्ग से होते हुए अपने देश को चले जाओ लेकिन यह ध्यान रखना कि यह लगाम कभी इसके मुँह से निकलने न पाए वरना यह तुम्हारे काबू के बाहर हो जाएगी। यह कह कर और रास्ते का ब्यौरा दे कर वृद्ध ने उसे विदा किया।
बद्र उसी घोड़ी बनी हुई रानी पर बैठ कर चल दिया। कई दिनों के बाद वह एक देश में पहुँचा। वहाँ उसे एक बूढ़ा मिला। यह दूसरा बूढ़ा भी बड़ा सभ्य आदमी लगता था। उसने बद्र से उसके बारे में पूछा कि कहाँ से आते हो, कहाँ जाने का इरादा है, यात्रा ठीक से हो रही है या नहीं, आदि। बूढ़ा उसे इन्हीं बातों में लगाए था कि एक भिखारिन-सी दिखाई देनेवाली बुढ़िया आई और बोली, तुम मुझे यह घोड़ी दे दे और कोई अच्छा घोड़ा ले लो। मेरे पुत्र की घोड़ी बिल्कुल ऐसी ही थी लेकिन वह मर गई और मेरा बेटा इससे बड़ा दुखी है। तुम जो भी दाम इस घोड़ी का माँगोगे मैं दूँगी।
बद्र को तो घोड़ी बेचनी ही नहीं थी। उसने इनकार किया। बुढ़िया पीछे पड़ गई और बोली, बेटा, मुझ पर दया करो। घोड़ी न मिली तो मेरा बेटा दुख से मर जाएगा और वह मर गया तो मैं भी जीवित न रह सकूँगी। बद्र ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा कि इसका मूल्य बहुत है, तुम दे नहीं सकोगी। बुढ़िया ने कहा कि तुम दाम बताओ तो, मैं किसी भी तरह दाम दूँगी। बद्र ने सोचा, यह भिखारिन अधिक से अधिक कुछ रुपयों का प्रबंध कर सकेगी। इसलिए उसने कहा कि तुम मुझे एक हजार अशर्फी दो और यह घोड़ी ले जाओ। बुढ़िया ने यह सुनते ही अपनी कमर में बँधी हुई थैली निकाली और बद्र को दे कर कहा, यह अशर्फियाँ गिन लो, और घोड़ी मुझे दो। दो-चार अशर्फियाँ कम हों तो मेरा घर पास ही है, फौरन ला कर दे दूँगी।
अब बद्र घबराया और बोला, अम्मा, यह थैली रख ले, मैं इस घोड़ी को किसी भी मूल्य पर नहीं बेचूँगा। बूढ़ा पास ही खड़ा था और सारी बातें सुन रहा था। वह बोला, भाई, अब तो तुम्हें यह घोड़ी देनी ही पड़ेगी। तुम्हें इस देश का नियम नहीं मालूम है। यहाँ पर जो आदमी व्यापार में धोखा करता है उसे प्राणदंड मिलता है। तुमने जो मूल्य माँगा वह इस बुढ़िया ने दे दिया। अब तुम बेकार की हुज्जत न करो। घोड़ी बुढ़िया की हो गई, उसे फौरन बुढ़िया को दे डालो। सौदे का गवाह मैं हूँ। बादशाह ने अगर सुना कि तुम सौदे से फिर रहे हो तो फिर समझ लो कि भगवान ही तुम्हारी रक्षा कर सकेगा।
बद्र यह सुन कर बहुत परेशान हुआ किंतु बहुत सोचने पर भी उसे घोड़ी को बचाने का कोई उपाय न सूझा। अंततः वह घोड़ी से उतर पड़ा और उसने घोड़ी की लगाम बुढ़िया के हाथ में दे दी। बुढ़िया घोड़ी को पास ही बहनेवाली एक नहर पर ले गई और उसकी लगाम निकाल कर उसने घोड़ी के मुँह पर पानी छिड़क कर कहा, मेरी प्यारी बेटी, घोड़ी का शरीर छोड़ कर अपने पुराने शरीर में आ जाओ। यह कहते ही मलिका अपने असली रूप में आ गई। बद्र यह देख कर डर के मारे गश खा कर जमीन पर गिरने लगा। उस बूढ़े ने बद्र को थाम लिया। बुढ़िया वास्तव में मलिका की माँ थी और मलिका ने सारी जादू की विद्या उसी से सीखी थी। बेटी को असली रूप में ला कर उसने अपने गले लगाया। इसके बाद उसने एक मंत्र पढ़ा जिससे पश्चिम की ओर से एक महाभयानक और अतिविशाल दैत्य प्रकट हुआ। उसने एक हाथ से बद्र और दूसरे हाथ से मलिका और उसकी माँ को उठाया और आकाश में उड़कर उसने दो क्षण ही में सब को मलिका के महल में पहुँचा दिया।
मलिका ने वहाँ पहुँचने पर दाँत पीसते हुए बद्र से कहा, दुष्ट, मेरे अहसानों का तूने यह बदला दिया। अब देख, में तुझे कैसा दंड देती हूँ। तेरे बने हुए चचा को मैं बाद में समझूँगी। यह कह कर उसने हाथ में पानी ले कर बद्र पर छिड़का और कहा, मनहूस उल्लू बन जा। बद्र उल्लू के रूप में आ गया। फिर मलिका ने उसे एक नई दासी को दे कर कहा, इसे पिंजरे में बंद कर दे और इसे दाना-पानी कुछ न देना, अपने आप भूखा मर जाएगा। दासी दयालु थी। उसने बद्र को पिंजरे में तो बंद कर दिया किंतु मलिका से छुपा कर उसे खाना-पानी देती रही। उस दासी ने उसी दिन गुप्त रूप से अब्दुल्ला से भी कहा, मलिका ने तुम्हारे भतीजे को पकड़ लिया है। वह देर-सवेर उसे तो मार ही डालेगी, अब तुम अपनी जान बचाओ क्योंकि उसने तुम्हें मारने की भी धमकी दी है।
अब्दुल्ला ने समझ लिया कि कठिनतम समय आ ग्या है और अपनी शक्ति से पूरा काम लेना चाहिए। उसने एक विशेष ध्वनि निकाली। तुरंत ही एक जिन्न प्रकट हो गया। उसके चार हाथ थे और सबों में पंखे लगे थे। उसका नाम बर्क था। उसने आते ही कहा, स्वामी, क्या आज्ञा है? अब्दुल्ला ने कहा, तुम्हें बद्र के प्राणों की रक्षा करनी है किंतु अभी सिर्फ यह करो कि इस दासी को ईरान के शाही महल में पहुँचा दो। ताकि इसके मुँह से राजमाता गुल अनार अपने पुत्र का पूरा समाचार जान लें। जिन्न ने तुरंत ही उस दासी को ईरान के राजमहल की छत पर पहुँचा दिया।
दासी जीने से उतर कर नीचे गई तो देखा कि गुल अनार और उसकी माता चिंतित हो कर बातचीत कर रही थीं। दासी ने विनयपूर्वक दोनों को प्रणाम किया और बताया कि बद्र जादू देश की मलिका की कैद में उल्लू बन कर पड़ा हुआ है। गुल अनार ने दासी को गले लगा लिया और उसके काम की बड़ी सराहना की। फिर उसने आज्ञा दी कि यह मुनादी करवाई जाए कि बादशाह बद्र दो-एक दिन ही में देश में आनेवाले हैं। तीसरी बात उसने यह की कि आग मँगा कर उसमें सुगंधित द्रव्य डाल कर मंत्र पढ़ा और इस तरह अपने भाई सालेह को बुला लिया। सालेह के आने पर उसने बताया कि तुम्हारा भानजा बद्र जादू के देश की अग्निपूजक रानी की कैद में उल्लू बन कर पड़ा हुआ है। सालेह ने अपनी समुद्री सेना को तुरंत जादू के देश में पहुँचने का आदेश दिया और कहा कि मैं भी वहाँ शीघ्र आ रहा हूँ। फिर उसने जिन्नों की एक बड़ी फौज इकट्ठी की और उसे ले कर उक्त देश में पहुँच गया। दोनों सेनाओं के प्रचंड आक्रमण से वह देश कुछ ही घंटों में पराजित हो गया और सेना ने महल में प्रवेश कर के मलिका तथा दूसरे सभी अग्निपूजकों को मार डाला।
गुल अनार भी वहाँ पहुँच गई थी। उसने दासी से कहा कि वह पिंजरा उठा लाओ जिसमें बद्र बंद है। वह पिंजरा बाहर ले आई और उल्लू बने हुए बद्र को उसने बाहर निकाल लिया। गुल अनार ने अभिमंत्रित जल उस पर छिड़क कर कहा, अपने पुराने रूप में आ जा। वह अपने असली शरीर में आ गया और गुल अनार ने उसे गले लगाया। फिर बद्र ने अपने मामा और अन्य संबंधियों से उचित रूप से भेंट की। उसने और दासी ने बद्र पर अब्दुल्ला के अहसानों का उल्लेख किया। गुल अनार सब को ले कर अब्दुल्ला के घर गई और बोली, आप ही की कृपा से बद्र मुझसे दुबारा मिला है। आपके उपकार का बदला मैं किस प्रकार दूँ। बूढ़े ने कहा, मुझे तो भगवान ने जो कुछ दिया है वही मेरे लिए बहुत है किंतु मुझे इनाम देना ही चाहें तो यह दीजिए कि बादशाह बद्र का विवाह इस दासी से कर दें क्योंकि यह सुंदर और चतुर भी है और इस समय इसने बद्र की और मेरी अमूल्य सेवा की है। गुल अनार ने यह मान लिया और काजी को बुला कर बद्र के साथ दासी का विवाह करा दिया।
अब बद्र ने माँ से कहा, मैंने तुम्हारी और इन पितातुल्य अब्दुल्ला साहब की आज्ञा बगैर नानुकर के मान ली। लेकिन तुम जानती हो कि मेरी हार्दिक इच्दा समंदाल देश की शहजादी जवाहर से विवाह करने की है। गुल अनार ने मुस्कुरा कर कहा, अच्छा, उसका प्रयत्न भी करेंगे। यह कह कर उसने समुद्री कटक को आदेश दिया कि जल-थल में जहाँ भी बद्र के योग्य राजकुमारी देखो उसे बद्र के साथ ब्याहने को यहाँ ले आओ। बद्र ने कहा, यह सब बेकार बातें हैं। मैं तो शहजादी जवाहर ही से विवाह करूँगा, किसी और से नहीं। उसने मुझे जो कष्ट दिया वह अपने पिता के कष्ट से कुपित हो कर दिया है। अगर आप लोग समंदाल नरेश को कैद से छुड़ा कर यहाँ बुलाएँ तो वह अब जवाहर से मेरे विवाह की बात अवश्य स्वीकार कर लेगा। गुल अनार ने कहा, बेटे, अभी तो वह तुम्हारे मामा की कैद में है। उसको यहाँ आने ही पर मालूम होगा कि उसे विवाह स्वीकार है या नहीं। अब बद्र ने सालेह से प्रार्थना की कि समंदाल नरेश को कैद से छुड़ा कर यहाँ लाओ। सालेह ने आग में लोबान डाल कर मंत्र पढ़ा और तुरंत ही समंदाल नरेश को भी वहाँ पहुँचा दिया गया। बद्र उसके चरणों पर गिरा और विनयपूर्वक बोला, सालेह मामा ने मेरे लिए ही शहजादी जवाहर का हाथ माँगा था। मैं ईरान का बादशाह हूँ। आप मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे साथ अपना संबंध स्वीकार कीजिए। जो कुछ अभी तक हुआ उसे भूल जाइए।
समंदाल नरेश उसकी इस विनयशीलता से बहुत प्रभावित हुआ और उसे उठा कर गले लगाते हुए बोला, तुम्हारी बातों से लगता है कि तुम जवाहर के बगैर जीवित नहीं रहोगे। तुम्हें उससे इतना गहरा प्रेम है तो मैं इनकार कैसे करूँ। मैंने पूरे हृदय से उसे तुम्हें दिया। उसकी ओर से भी इत्मीनान रखो। उसने कभी मेरी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया है और मैं कहूँगा तो वह तुम्हारे साथ विवाह करने को खुशी से तैयार हो जाएगी।
यह कह कर उसने अपने सरदारों को आदेश दिया कि शहजादी जवाहर जहाँ भी हो वहाँ से उसे यहाँ ले आए। वे लोग उसकी खोज में निकले और अल्प समय ही में उसे ढूँढ़ कर उस स्थान पर ले आए जहाँ उसका पिता था। समंदाल नरेश ने जवाहर को गले लगा कर कहा, बेटी, मैंने बादशाह बद्र को वचन दिया है कि तुम्हारा विवाह उसके साथ कर दूँगा। आशा है तुम इस बात को मान जाओगी। जवाहर ने कहा, आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है किंतु बादशाह बद्र से बहुत लज्जित हूँ। मैंने क्रोध में आ कर उनसे बड़ा बुरा सलूक किया। मालूम नहीं कि वे इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे या नहीं। बद्र ने कहा, तुमने वास्तव में क्रोध में आ कर मुझे दुख दिया था। अब मैं उसे भूल गया और तुम भी उसे भूल जाओ। एक खुशी की बात यह भी हुई कि मलिका के मर जाते ही वे सब लोग जिन्हें मंत्रबल से जानवर बना रखा गया था, अपने मनुष्य रूप में वापस आ गए और विवाह में हँसी-खुशी शामिल हो कर वर-वधू को आशीर्वाद देते हुए अपने-अपने देशों को चले गए। फिर समंदाल नरेश अपने सरदारों के साथ अपने देश को गया, बादशाह बद्र अपनी माता और पत्नियों को ले कर ईरान को रवाना हुआ और कुछ दिन वहाँ रहने के बाद सालेह भी अपनी माता के साथ अपने देश को वापस हुआ