आधा चाँद
आधा चाँद देखा
मैने आसमा में ।
सोचा बाकी आधा है
किस जहाँ में ।
मै बेचेन फिरता
इधर उधर
आखिर बाकी आधा
चाँद गया  किधर ।
क्या दुनिया को नसीब है
आधा चाँद ही ?
क्या मै लिखुंगा कविता
आधे चाँद पर ही ?
सोचा ये राज
मै पुछू किससे ?
आधा  चाँद कहा है
चल के पुछू उनसे ।
शर्म से सिमटी थी
वो दुल्हन सी ।
क्यों कि पहली रातथी
यह मिलन की ।
देखा मैंने घुंघट
उठा कर ।
अरे ! बाकी आधा चाँद
तो है मेरी सेज पर ।।।
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