धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द[1] था
इश्क़े-नबर्द-पेशा[2] तलबगारे-मर्द[3] था
था ज़िन्दगी में मर्ग[4] का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेशतर[5] भी मेरा रंग ज़र्द था
तालीफ़[6]-ए-नुस्ख़ा-हाए-वफ़ा[7] कर रहा था मैं
मजमूअ़-ए-ख़याल[8] अभी फ़र्द-फ़र्द[9] था
दिल ता ज़िग़र[10], कि साहिल[11]-ए-दरिया-ए-खूं है अब
उस रहगुज़र में जलवा-ए-गुल आगे गर्द था
जाती है कोई कश्मकश अन्दोहे-इश्क़[12] की
दिल भी अगर गया, तो वही दिल का दर्द था
अहबाब[13] चारा-साज़ी-ए-वहशत[14] न कर सके
ज़िन्दां[15] में भी ख़याल बयाबां-नवर्द[16] था
यह लाश बेकफ़न 'असदे-ख़स्ता-जां'[17] की है
हक़ मग़फ़रत करे[18] अ़जब आज़ाद मर्द था
शब्दार्थ: