आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गये साहिब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था क़ासिद[1] को अपने हाथ से गरदन न मारिये उस की ख़ता नहीं है यह मेरा क़सूर थाशब्दार्थ: ↑ संदेशवाहक