ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़लान-ए-बेपरवा नमक
क्या मज़ा होता अगर पत्थर में भी होता नमक
गर्द-ए-राह-ए-यार है सामान-ए-नाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल
वर्ना होता है जहाँ में किस क़दर पैदा नमक
मुझ को अरज़ानी रहे तुझ को मुबारक हो जियो
नाला-ए-बुलबुल का दर्द और ख़न्द-ए-गुल का नमक
शोर-ए-जौलाँ था किनार-ए-बहर पर किस का कि आज
गर्द-ए-साहिल है ब-ज़ख़्म-ए-मौज-ए-दरया नमक
दाद देता है मेरे ज़ख्म-ए-जिगर की वाह वाह
याद करता है मुझे देखे है वो जिस जा नमक
छोड़ कर जाना तन-ए-मजरूह-ए-आशिक़ हैफ़ है
दिल तलब करता है ज़ख़्म और माँगे हैं आज़ा नमक
ग़ैर की मिन्नत न खींचुँगा पय-ए-तौक़ीर-ए-दर्द
ज़ख़्म मिसल-ए-ख़न्द-ए-क़ातिल है सर-ता-पा नमक
याद है ‘ग़ालिब’ तुझे वो दिन कि वज्द-ए-ज़ौक़ में
ज़ख़्म से गिरता तो मैं पलकों से चुनता था नमक