वो फ़िराक़[1] और वो विसाल[2] कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल[3] कहाँ
फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
जौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल[4] कहाँ
दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल[5] कहाँ
थी वो इक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल[6] कहाँ
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल[7] कहाँ
हमसे छूटा क़िमारख़ाना-ए-इश्क़[8]
वां जो जावें, गिरह[9] में माल कहाँ
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल[10] कहाँ
मुज़्मंहिल[11] हो गये क़ुवा[12] "ग़ालिब"
वो अ़नासिर[13] में एतदाल[14] कहाँ
शब्दार्थ: