इश्क़ तासीर[1] से नोमीद[2] नहीं
जां-सुपारी[3] शजर-ए-बेद[4] नहीं
सल्तनत दस्त-ब-दस्त आई है
जाम-ए-मै ख़ातिम-ए-जमशेद[5] नहीं
है तजल्ली[6] तेरी सामाने-वजूद
ज़र्रा बे-परतवे-ख़ुर्शीद[7] नहीं
राज़-ए-माशूक़ न रुसवा हो जाये
वर्ना मर जाने में कुछ भेद नहीं
गर्दिश-ए-रंग-ए-तरब[8] से डर है
ग़म-ए-महरूमी-ए-जावेद[9] नहीं
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं
शब्दार्थ: