क्यूं न हो चश्म-ए-बुतां[1] महव-ए-तग़ाफ़ुल[2] क्यूं न हो
यानी उस बीमार को नज़्ज़ारे[3] से परहेज़ है
मरते मरते देखने की आरज़ू रह जाएगी
वाए[4] ना-कामी कि उस काफ़िर का ख़ंजर तेज़ है
आ़रिज़-ए-गुल[5] देख रू-ए-यार[6] याद आया 'असद'
जोशिश-ए-फ़सल-ए बहारी[7] इश्तियाक़-अंगेज़[8] है
शब्दार्थ:
- ↑ बुत की आँख
- ↑ बे-खबरी में लुप्त
- ↑ दर्शन
- ↑ आखिर
- ↑ गुलाब का गाल
- ↑ प्रिय का चेहरा
- ↑ बंसत का फूटना(ज़ोर से आना)
- ↑ रोमांचक