चचाजान,
तस्लीमात!
बहुत लंबे अर्से के बाद आपसे मुखातिब हो रहा हूँ। मैं वास्तव में बीमार था। इलाज इसका वही, खुशी पैदा करने वाला पानी था - साकी - मगर मालूम हुआ कि यह सिर्फ शाइरी है। मालूम नहीं, 'साकी' किस जानवर का नाम है। आप लोग तो उसे उम्र खैयाम की रुबाइयोंवाली अतिसुंदर नाज-नखरों वाली माशूका कहते हैं जो बिल्लौर की नाजुक गर्दन नुमा सुराहियों से उस खुशकिस्मत शाइर को जाम भर-भर के देती थी, मगर यहाँ तो कोई मूँछोंवाला बदशक्ल लौंडा भी इस काम के लिए नहीं मिलता।
यहाँ से हुस्न बिलकुल रफूचक्कर हो गया है - औरतें पर्दे से बाहर तो आई हैं, मगर उन्हें देखकर जी चाहता है कि वह पर्दे के पीछे ही रहतीं तो अच्छा था। आपके मैक्स फैक्टर ने उनका हुलिया और भी बिगाड़ के रख दिया है - आप मुफ्त गेहूँ भेजते हैं, मुफ्त लिट्रेचर भेजते हैं, मुफ्त हथियार भेजते हैं, क्यों नहीं आप सौ-दो सौ ठेट अमरीकी लड़कियाँ यहाँ रवाना कर देते जो साकीगिरी के फर्ज सलीके से निभा सकें। मैं अपनी बीमारी का जिक्र कर रहा था - इसका कारण वही यहाँ की बनी हुई शराब थी। अल्लाह इस खानाखराब का खानाखराब करे। जहर है लेकिन निहायत खालिस किस्म का - सबकुछ जानता था, सबकुछ समझता था, मगर :
मीर क्या सादा हैं, बीमार हुए जिसके सबब
उसी अत्तार के लौंडे से दवा लेते हैं।
जाने उस दवा बेचने वाले लौंडे में क्या कशिश थी कि हजरत मीर उसी से दवा लेते रहे, हालाँकि वही उनकी बीमारी का कारण था - यहाँ मैं जिस दुकानदार से शराब लेता हूँ, वह तो मुझसे भी कहीं ज्यादा बीमार है। मैं तो अपनी सख्त जान की वजह से बच गया, लेकिन उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं।
मैं तीन महीने हस्पताल में रहा हूँ। जनरल वार्ड में था। मुझे वहाँ आपकी कोई अमरीकी सहायता न मिली - मेरा खयाल है, आपको मेरी बीमारी की कोई खबर नहीं मिली, वर्ना आप जरूर वहाँ से दो-तीन पेटियाँ टेरामाइसिन की भेज देते और दोनों लोकों के पुन्य करम कमा लेते।
हमारी फॉरेन पब्लिसिटी बहुत कमजोर है। इसके अलावा हमारी सरकार को अदीबों, शाइरों और चित्रकारों से कोई दिलचस्पी नहीं । आखिर 'किस-किसकी हाजत रवा करे कोई।'
हमारी पिछली मरहूम गवर्नमेंट के आखिरी दौर में जंग शुरू हुई तो अंग्रेज बहादुर ने फिरदौसी-ए-इस्लाम (खिताब) हाफील जालंधरी को सौंग एँड पब्लिसिटी डिपार्टमेंट का डायरेक्टर बनाकर एक हजार रुपए प्रतिमाह तय कर दिया। पाकिस्तान बना तो उसको सिर्फ एक कोठी और शायद एक प्रेस अलाट हुआ। अब बेचारा अखबारों में अपना रोना रो रहा है कि 'तराना कमेटी' ने उसको निकाल बाहर किया है, जबकि सारे पाकिस्तान में अकेला वही शाइर है जो दुनिया की इस सबसे बड़ी इस्लामी सल्तनत के लिए कौमी तराना लिख सकता है और उसकी धुन भी बना सकता है - उसने अपनी अंग्रेज बीवी को तलाक दे दी है, इसलिए कि अंग्रेजों का जमाना ही नहीं रहा। अब सुना है, वह किसी अमरीकी बीवी की तलाश में है - चचाजान, खुदा के लिए उसकी मदद कीजिए, ऐसा न हो कि गरीब का परलोक भी दुखदायी हो। आपके यूँ तो लाखों और करोड़ों भतीजे हैं, लेकिन मुझ-जैसा भतीजा आपको एटम बम की रोशनी से भी कहीं नहीं मिलेगा। किबला कभी इधर भी ध्यान दीजिए। बस आपकी कृपा दृष्टि काफी है। सिर्फ इतना ऐलान कर दीजिए कि आपका देश, खुदा उसे रहती दुनिया तक सलामत रखे, सिर्फ उसी सूरत में पाकिस्तान को - खुदा इसके देसी शराब बनाने वाले कारखानों को बिल्कुल बरबाद कर दे - फौजी सहायता देने के लिए तैयार होगा, अगर सआदत हसन मंटो आपके हवाले कर दिया जाए।
यहाँ मेरी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाएगी। मैं इस ऐलान के बाद शमा मुअम्मे और डायरेक्टर मुअम्मे हल करना बंद कर दूँगा। बड़ी-बड़ी शख्सियतें मेरे गरीबखाने पर आएँगी। मैं आपसे हवाई डाक द्वारा ठेठ अमरीकी मुस्कराहट मँगवाकर अपने होंठों पर चिपका लूँगा और उसके साथ उन सबका स्वागत करूँगा।
मेरी उस मुस्कराहट के हजार मायने होंगे। मिसाल के तौर पर "आप निरे खुरे गधे हैं…", "आप परले दर्जे के जहीन इंसान हैं…", "आपसे मिलकर मुझे बहुत कोफ्त हुई", …"आपसे मिलकर निहायत खुशी हुई", "आप अमरीका की बनी हुई बुश्शर्ट हैं…", "आप पाकिस्तान की बनी हुई माचिस हैं…", "आप संजीवनी हैं…", "आप कोका कोला हैं…", वगैरह-वगैरह।
मैं रहना पाकिस्तान ही में चाहता हूँ क्योंकि मुझे इसकी मिट्टी का कण-कण प्यारा है जो मेरे फेफड़ों में हमेशा के लिए जगह बना चुकी है, लेकिन मैं आपके मुल्क में जरूर आऊँगा, इसलिए कि मैं अपना कायाकल्प कराना चाहता हूँ। फेफड़े छोड़कर मैं अपने तमाम बाकी के अंग आपके माहिरों के सुपुर्द कर दूँगा और उनसे कहूँगा कि वह उन्हें अमरीकी नमूने का बना दें।
मुझे अमरीकी चाल-ढाल बहुत पसंद है, इसलिए कि चाल, ढाल का काम देती है और ढाल, चाल का। आपकी बुश्शर्ट का नया डिजाइन भी मुझे बहुत भाता है। डिजाइन का डिजाइन और इश्तिहार का इश्तिहार-हर रोज यहाँ आपके दफ्तर में गए, मतलब की यानी प्रोपेगंडे की चीजें बुशर्ट पर छपवाईं और इधर-उधर घूमते फिरे। कभी 'शीजीन' में जा बैठे, कभी कॉफी हाऊस में और कभी चाइनीज लंच होम में।
फिर मैं एक पैकार्ड चाहता हूँ ताकि जब मैं यह बुश्शर्ट पहने, मुँह में आपका तोहफे में दिया हुआ पाइप दबाए माल पर से गुजरूँ तो लाहौर के बस तरक्कीपसंद और गैर-तरक्कीपसंद अदीबों को महसूस हो कि वह सारा वक्त भाड़ ही झोंकते रहे हैं - लेकिन देखिए चचाजान, इसके पेट्रोल का बंदोबस्त आप ही को करना पड़ेगा। वैसे मैं आपसे वादा करता हूँ कि पैकार्ड मिलते ही मैं एक कहानी लिखूँगा, जिसका उनवान होगा : 'ईरान का नौ मन तेल और राधा।' यकीन मानिए, इस कहानी के छपते ही ईरान के तेल का सारा टंटा ही खत्म हो जाएगा और मौलाना जफर अली खाँ को, जो अभी तक जीवित हैं, अपने इस शेर में मुनासिब संशोधन करना पड़ेगा :
वाय नाकामी कि चश्मे तेल के सूखे तमाम
ले के लायड जार्ज जब भागे कनस्तर टीन का
एक छोटा-सा, नन्हा-मुन्ना एटम बम तो मैं आपसे जरूर लूँगा। मेरे दिल में अर्से से यह ख्वाहिश दबी पड़ी है कि मैं अपनी जिंदगी में एक नेक काम करूँ - आप पूछेंगे : 'यह नेक काम क्या है?' आपने तो खैर कई नेक काम किए हैं और लगातार किए जा रहे हैं - आपने हीरोशिमा को तबाह और बिल्कुल बर्बाद कर दिया और नागासाकी को धुएँ और गर्दो-गुबार में बदल कर रख दिया और इसके साथ-साथ आपने जापान में लाखों अमरीकी बच्चे पैदा किए - फिक्र हर कस बकदरे हिम्मते-ओस्त- मैं एक ड्राइक्लीन करनेवाले को मारना चाहता हूँ - हमारे यहाँ बाज मौलवी किस्म के हजरात पेशाब करते हैं तो ढेला लगाते हैं - मगर आप क्या समझेंगे - बहरहाल मामला कुछ यूँ होता है कि पेशाब करने के बाद वह सफाई की खातिर कोई ढेला उठाते हैं और शलवार के अंदर हाथ डालकर सारे-बाजार ड्राइक्लीन करते चलते-फिरते हैं - मैं बस यह चाहता हूँ कि यूँही मुझे कोई ऐसा आदमी नजर आए, जेब से आपका दिया हुआ मिनी एटम बम निकालूँ और उस पर दे मारूँ ताकि वह ढेले समेत धुआँ बनकर उड़ जाए।
हमारे साथ फौजी सहायता का समझौता बड़ी मा़र्के की चीज है। इस पर कायम रहिएगा। उधर हिंदुस्तान के साथ भी ऐसा ही रिश्ता मजबूत कर लीजिए। दोनों को पुराने हथियार भेजिए, क्योंकि अब तो आपने वह तमाम हथियार कंडम कर दिए होंगे जो आपने पिछली जंग में इस्तेमाल किए थे। आपका यह कंडम और फालतू अस्त्र शस्त्र भी ठिकाने लग जाएगा और आपके कारखाने भी बेकार नहीं रहेंगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी हैं। उनको तोहफे के तौर पर एक ऐसी बंदूक जरूर भेजिएगा जो धूप में रखने से ही ठुस कर जाए। कश्मीरी मैं भी हूँ, मगर मुसलमान। मैंने अपने लिए आपसे नन्हा-मुन्ना एटम बम माँगा है।
एक बात और - यहाँ कानून बनने ही में नहीं आता। खुदा के लिए आप वहाँ से कोई माहिर जल्द-से-जल्द रवाना कीजिए। कौम बगैर 'तराने' (राष्ट्रीयगान) के तो चल सकती है, लेकिन किसी दस्तूर के बगैर नहीं चल सकती - आप चाहें तो बाबा चल भी सकती है : जो चाहें, आपके अनोखेपन का जादू कुछ भी कर सकता है।
एक और बात - यह खत मिलते ही अमरीकी माचिसों का एक जहाज रवाना कर दीजिए। यहाँ जो माचिस बनी हैं, उसको जलाने के लिए ईरानी माचिस खरीदनी पड़ती है, जो आधी खत्म होने के बाद बेकार हो जाती है और जिसकी बची हुई तीलियाँ जलाने के लिए रूसी माचिस लेनी पड़ती है, जो पटाखे ज्यादा छोड़ती है और जलती कम है।
अमरीकी गरम कोट बहुत खूब हैं। लुंडा बाजार इनके बगैर बिलकुल लुंडा था। मगर आप पतलूनें क्यों नहीं भेजते? क्या आप पतलूनें नहीं उतारते? हो सकता है कि हिंदुस्तान रवाना कर देते हों - आप बड़े काइयाँ हैं। जरूर कोई बात है - इधर कोट भेजते हैं, उधर पतलूनें। जब लड़ाई होगी तो आपके कोट और आप ही की पतलूनें, आप ही के भेजे हुए हथियारों से लड़ेंगे।
यह मैं क्या सुन रहा हूँ कि चार्ली चेपलिन अमरीकी नागरिकता के अधिकार से निरस्त हो गया है। उस मसखरे को क्या सूझी। जरूर उसको कम्युनिज्म हो गया है, वर्ना वह सारी उम्र आपके मुल्क में रहा, वहीं उसने नाम कमाया, वहीं उसने दौलत हासिल की। क्या उसे वह वक्त याद नहीं रहा, जब वह लंदन के गली-कूचों में भीख माँगा करता था और कोई उसे पूछता तक नहीं था - रूस चला जाता, लेकिन वहाँ मसखरों की क्या कमी है - चलो इंगलिस्तान ही में रहे और कुछ नहीं तो वहाँ के रहने वालों को अमरीकनों का सा खुल कर हँसना तो आएगा और वह जो हर वक्त उनके चेहरों पर संजीदगी का गिलाफ चढ़ा रहता है, कुछ तो अपनी जगह से हटेगा।
अच्छा, अब मैं खत बंद करता हूँ।
हैडी ला मार को फ्री स्टाइल का एक चुम्मा।
खाकसार
सआदत हसन मंटो
15 मार्च, 1954
31, लक्ष्मी मैन्शंज, हॉल रोड लाहौर