परिचय-
एक स्वस्थ स्त्री को हर महीने मासिक-स्राव (माहवारी) होती है। गर्भ ठहरने के बाद उसी महीने से मासिक-स्राव होना बन्द हो जाता है। इसके साथ-साथ दिल का खराब होना, उल्टी होना, बार-बार पेशाब का होना तथा स्तनों में हल्का दर्द बना रहना आदि साधारण शिकायतें होती हैं। इन शिकायतों को लेकर स्त्रियां, स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाती हैं। डॉक्टर स्त्री के पेट और योनि की जांच करती है और बच्चेदानी की ऊंचाई को देखती है। गर्भधारण करने के बाद बच्चेदानी का बाहरी भाग मुलायम हो जाता है। इन सभी बातों को देखकर डॉक्टर स्त्री को मां बनने का संकेत देता है। इसी बात को अच्छे ढंग से मालूम करने के लिए डॉक्टर रक्त या मूत्र की जांच के लिए राय देता है।
स्त्री के रक्त और पेशाब की जांच-
गर्भवती स्त्री के रक्त और मूत्र में एच.सी.जी. होता है जो कौरिऔन से बनता है। ये कौरिऔन ओवल बनाती है। ओवल का एक भाग बच्चेदानी की दीवार से तथा बच्चे की नाभि से जुड़ा होता है। इसके शरीर में पैदा होते ही रक्त और मूत्र में एच.सी.जी. आ जाता है। इस कारण स्त्री को आगे माहवारी होना रुक जाती है।
एच.सी.जी. की जांच रक्त या मूत्र से की जाती है। साधारणतः डॉक्टर मूत्र की जांच ही करा लेते हैं। जांच माहवारी आने की तारीख के दो सप्ताह बाद करानी चाहिए ताकि जांच का सही परिणाम मालूम हो सके। यदि जांच दो सप्ताह से पहले ही करवा ली जाए तो परिणाम हां या नहीं में मिल जाता है। यह वीकली पाजिटिव कहलाता है।
कुछ स्त्रियां माहवारी शुरु करने के लिए दवाईयों का सेवन करना शुरू कर देती हैं। इस प्रकार की दवा का सेवन उनके लिए हानिकारक होता है इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने गर्भधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए।
गर्भधारण करने के बाद स्त्री को किसी भी प्रकार की दवा के सेवन से पूर्व डॉक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि वह किसी ऐसी दवा का सेवन न करें जो उसके और उसके होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है। यदि स्त्री को शूगर का रोग हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करानी चाहिए। यदि मिर्गी, सांस की शिकायत या फिर टी.बी. का रोग हो तो भी इसके लिए भी डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
यह भी सच है कि स्त्री के विचार और कार्य भी गर्भधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि उसके होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े।
सामान्य भारतीय नारी का वजन और लम्बाई-