Problems in the initial stage of pregnancy

परिचय-


          गर्भावस्था में स्त्रियों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनमें से कई समस्याओं का समाधान उसे अपने आप ही मिल जाता है। गर्भावस्था के समय स्त्री को समय-समय पर डॉक्टर के पास जाकर अपना चेकअप कराते रहना चाहिए।

इसके अलावा स्त्री को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे-

    बिना जानकारी के किसी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए,
    अधिक विश्राम करना चाहिए,
    भोजन सन्तुलित होना चाहिए,
    अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए।

गर्भावस्था में रक्तस्राव-

        गर्भावस्था में स्त्री के शरीर में उत्तेजित द्रव (हार्मोन्स) स्वयं ही बनते हैं जिन्हे प्रौजेस्ट्रोन कहते हैं। जैसे ही हार्मोन्स शरीर में कम होने लगते हैं वैसे ही स्त्री की योनि से रक्त जाने लगता है। रक्त हमेशा मासिक-धर्म के समय ही जाता है। यह 3-4 महीने तक भी जा सकता है। यह रक्त लाल रंग का और बिना किसी दर्द के आता है। कभी-कभी इस प्रकार की घटना को स्त्रियां ठीक प्रकार से नहीं बता पाती है परन्तु अल्ट्रासाउन्ड के द्वारा जांच करके पता किया जा सकता है। कुछ महिलाएं यह सोचती है कि यह रक्त बच्चे के शरीर से आ रहा है परन्तु यह धारणा गलत है क्योंकि यह रक्त बच्चेदानी से आता है। यदि रक्त आना बन्द हो जाए तो भी गर्भाशय में कोई हानि नहीं होती है। इस रक्त से गर्भाशय में पल रहे बच्चे को कोई हानि नहीं होती है परन्तु फिर भी इस बारे में स्त्री को अपने डॉक्टर की राय अवश्य लेनी चाहिए।

योनि में घाव-

        कभी-कभी योनि में छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं जिनमें से सफेद और पीले रंग का एक तरल पदार्थ निकलता रहता है। कभी-कभी योनि से इन तरल पदार्थों के साथ-साथ खून भी आने लगता है। यदि स्त्रियां अपने जननांगों की सफाई ठीक प्रकार से नहीं रखती है तो इन घावों में कीटाणु पैदा हो जाते हैं। इन कीटाणुओं की वजह से छोटी सी बीमारी भी बहुत बड़ी बीमारी का रूप ले लेती हैं। इस कारण घाव का बढ़ जाना, योनि से गाढ़े पीले रंग के तरल पदार्थ का आना, खून का आना आदि रोग और भी फैल जाते हैं तथा स्त्री को बुखार आदि रहने लगता है। गर्भ के कारण अधिक दवा का सेवन नहीं करना चाहिए तथा अपने डॉक्टर की राय जरूर लेते रहना चाहिए।

गर्भपात-

        गर्भावस्था में 24 सप्ताह से पहले रक्त का आना इस बात का सूचक होता है कि गर्भवती स्त्री का कभी भी गर्भपात हो सकता है। इस अवस्था में कभी तो कम रक्त निकलता है तथा कभी बहुत अधिक मात्रा में रक्त आने लगता है। इसे नियन्त्रण में करने के लिए डॉक्टर को शीघ्र ही दिखाना चाहिए।

        गर्भावस्था में 24 सप्ताह से पहले योनि से खून निकलने लगे और दर्द न हो तो इस स्थिति को थ्रेटन गर्भपात कहते हैं। यदि स्त्री को दर्द होने लगे, बच्चेदानी में संकुचन हो, बच्चेदानी का मुंह खुल जाए तो ऐसी स्थिति को अनिवार्य गर्भपात कहते हैं। जब गर्भ पूर्ण हो तो इसे पूर्ण गर्भपात कहते हैं। यदि गर्भ का कुछ हिस्सा रह जाए तो ऐसी अवस्था को अपूर्ण गर्भपात कहते हैं। यदि गर्भ में बच्चा मर जाता है तो वह मिस्ड गर्भपात कहलाता है। यदि किसी स्त्री के 3 या उससे अधिक बार गर्भपात हो जाए तो वह आदतीय गर्भपात कहलाता है।

किसी भी प्रकार के गर्भपात में स्त्री को दो प्रकार के खतरे हो सकते हैं-


    गर्भपात होने के बाद गर्भाशय से अधिक रक्त का निकलना।
    गर्भपात होने के बाद शरीर में किसी प्रकार का रोग हो जाना।

          गर्भपात में किसी भी झिल्ली का भाग रह जाने से स्त्री को लगातार रक्तस्राव होता रहता है। जिससे उसके शरीर में रक्त की कमी तथा कमजोरी आ जाती है। संकुचन पैदा होने के कारण इस रक्त का निकलना बन्द हो जाता है और बचे हुए रक्त के टुकड़ों को औजारों के सहारे निकाल लिया जाता है। इस कार्य को अस्पताल में शीघ्र करवा लेना चाहिए वरना स्त्री का अधिक मात्रा में रक्त बह सकता है।

          गर्भपात के समय नीचे पेट में दर्द होना, बुखार आना, कमजोरी आदि होने के कारण स्त्री को दवा का सेवन अवश्य करना चाहिए वरना उसका रोग और ज्यादा गम्भीर हो सकता है।

फैलोपियन टयूब में बच्चे का जम जाना-


          संभोग क्रिया के बाद जैसे ही स्त्री के अण्डाणु और पुरुष के शुक्राणु आपस में मिलते हैं तो यह लगभग एक सप्ताह के भीतर ही जाईगोट का रूप धारण करके बच्चेदानी में पहुंच जाता है और वहां जाकर बच्चेदानी की अन्दर की दीवार (जिसे इन्डोमैट्रियम कहा जाता है) में जम जाता है। किसी कारणवश यह जाइगोट इन्डोमैट्रियम में न जाकर फैलोपियन टयूब में जम जाए तो इस अवस्था को एक्टोपिक गर्भावस्था कहते हैं। इस अवस्था में बच्चा बढ़ नहीं पाता है। इस दशा में बच्चे के विकास का कोई साधन उपलब्ध नहीं हो पाता है। प्रारम्भ में स्त्री को हल्का-सा दर्द होता है जो एक ओर ही होता है।   जैसे-जैसे गर्भावस्था का समय बढ़ता है, यह दर्द भी अधिक बढ़ता जाता है। एक समय ऐसा भी आता है कि जब स्त्री यह दर्द सहन नहीं कर पाती है। लगभग 6 से 12 हफ्ते में फैलोपियन टयूब के एक तरफ से खून निकलने लगता है या फिर वह फट जाती हैं और स्त्री को बेहोशी आने लगती है। इससे स्त्री को अधिक दर्द में राहत मिलती है तथा रक्त पेट में बहने लगता है। यह एक आपातकालीन अवस्था होती है। कुछ स्त्रियों को रक्तस्राव भी होता है। ऐसी दशा में स्त्री को तुरंत ही हॉस्पिटल ले जाकर ऑपरेशन कराना पड़ सकता है। ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर फैलोपियन टयूब के उस भाग को निकाल देते हैं अथवा कभी-कभी फैलोपियन टयूब को भी बचा लेते हैं। अगर फैलोपियन टयूब को बचाया गया तो कुछ बारीक शल्य चिकित्सा द्वारा बाद में इन्हे फिर से बनाया जा सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि शल्य चिकित्सा करने के समय फैलोपियन टयूब किस अवस्था में हैं।

फैलोपियन टयूब में बच्चे का पैदा होना-

          प्रारम्भ में यह जानना भी काफी कठिन होता है कि गर्भ कहां पर स्थित है क्योंकि रोगी की दशा ठीक साधारण दशा जैसी होती है। एक बार फैलोपियन टयूब में गर्भधारण करने के बाद स्त्री को डर रहता है कि कहीं दूसरी बार गर्भ फिर से फैलोपियन टयूब में न हो जाए। लगभग 10 प्रतिशत स्त्रियों में ऐसा भी हो जाता है। इस अवस्था में जैसे ही स्त्री को गर्भधारण के बारे में मालूम चले, उसे शीघ्र ही डॉक्टर के पास जाना चाहिए। अल्ट्रासाउन्ड मशीन द्वारा यह जानकारी मिल सकती है कि गर्भ में बच्चा किस स्थान पर पनप रहा है।

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