दिन नीके बीते जाते हैं॥टेर॥
सुमिरन कर ले राम नाम, तज विषय भोग सब और काम।
तेरे संग न चाले इक छदाम, जो देते हैं सो पाते हैं॥१॥
लख चौरासी भोग के आया, बड़े भाग मानस तन पाया।
उस पर भी नहीं करी कमाई, अन्त समय पछिताते हैं॥२॥
कौन तुम्हारा कुटुम्ब परिवारा, किसके हो तुम कौन तुम्हारा।
किसके बल हरि नाम बिसारा, सब जीते जी के नाते हैं॥३॥
जो तू लाग्यो विषय बिलासा, मूरख फँस गयो मोह की फाँसा।
क्या करता श्वासन की आशा, गये श्वास नहीं आते हैं॥४॥
सच्चे मनसे नाम सुमिर ले, बन आवे तो सुकृत कर ले।
साधु पुरुष की संगति कर ले, दास कबीरा गाते हैं॥५॥