जग असारमें सार रसना! हरि-हरि बोल।
यह तन है एक जर्जरि नैया केवल है हरिनाम खिवैया।
हरिसे नाता जोड़, रसना! हरि-हरि बोल॥१॥
यह तन तुझको करज मिला है,चुकता तूने कुछ न किया है।
जगसे नाता तोड़, रसना! हरि-हरि बोल॥२॥
ना पूरा तो थोड़ा कर ले, राम नाम हिरदयमें धर ले।
हरि सुमिरन कर शोर रसना! हरि-हरि बोल॥३॥
लख-चौरासी भरम गमायो, बड़े भाग मानुष तन पायो।
जाग! हो गया भोर, रसना! हरि-हरि बोल॥४॥