प्यारे! जरा तो मनमें बिचारो; क्या साथ लाये अब ले चलोगे।
जावे यही साथ सदा पुकारो, गोविन्द! दामोदर! माधवेति॥१॥
नारी धरा-धाम सुपुत्र प्यारे, सन्मित्र सद्वाम्धव द्रव्य सारे।
कोई न साथी, हरिको पुकारो, गोविन्द! दामोदर! माधवेति॥२॥
नाता भला क्या जगसे हमारा, आये यहाँ क्यों? कर क्या रहे हैं।
सोचो बिचारो, हरिको पुकारो, गोविन्द! दामोदर! माधवेति॥३॥
सच्चे सखा हैं हरि ही हमारे, माता पिता स्वामि सुबन्दु प्यारे।
भूलो न भाई दिन-रात गावो, गोविन्द! दामोदर! माधवेति॥४॥