घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।
घट घट रमता राम रमैया,
कटुक बचन मत बोल रे॥
रंगमहल में दीप बरत है,
आसन से मत डोल रे॥
कहत कबीर सुनो भाई साधों,
अनहद बाजत ढोल रे॥
घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।
घट घट रमता राम रमैया,
कटुक बचन मत बोल रे॥
रंगमहल में दीप बरत है,
आसन से मत डोल रे॥
कहत कबीर सुनो भाई साधों,
अनहद बाजत ढोल रे॥