प्रात पुनीत काल प्रभु जागे ।
अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥
प्रात काल उठि कै रघुनाथा ।
मात पिता गुरु नावइँ माथा ॥
मात पिता गुरु प्रभु कै बानी ।
बिनहिं बिचार करिय सुभ जानी ॥
सुनु जननी सोइ सुत बड़भागी ।
जो पितु मात बचन अनुरागी ॥
धरम न दूसर सत्य समाना ।
आगम निगम पुराण बखाना ।।
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा ।
पर निंदा सम अघ न गरीसा ॥
पर हित सरिस धरम नहि भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥
पर हित बस जिन के मन माँहीं ।
तिन कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीँ ॥
गिरिजा संत समागम, सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हरि कृपा न होइ सो, गावहिं वेद पुराण ॥