मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ ।
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं ॥
तूने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया ।
आकर के संसार में मैंने इसको दाग लगाया ।
जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊं ॥
निर्मल वाणी पाकर मैने नाम न तेरा गाया ।
नयन मूंद कर हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया ।
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊं ॥
इन पैरों से चल कर तेरे मन्दिर कभी न आया ।
जहां जहां हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया ।
हे हरि हर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊं ॥