गीताधर्म से संबंध रखने वाली सभी प्रमुख बातों पर जहाँ तक हो सका हमने अब तक प्रकाश डाला और इस तरह गीतार्थ समझने का रास्ता बहुत कुछ साफ कर दिया। अब हमें समाप्त करने के पहले कुछ और भी कह देना है। जो बातें हम अब कहेंगे उनका भी ताल्लुक गीताधर्म से ही है। उनसे भी गीता का आशय समझने में बहुत कुछ सहायता मिलेगी; हालाँकि ये बातें इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितनी अब तक लिखी गई हैं। बात असल यह है कि केवल आशय समझना ही जरूरी नहीं होता। श्लोकों और पदों के अर्थों को ठीक-ठीक हृदयंगम करना भी आवश्यक होता है। इसके बिना आशय आसानी ने समझ में आ नहीं सकता। कभी-कभी तो शब्दार्थ अच्छी तरह जाने बिना आशय और भाषार्थ कतई समझ में आते ही नहीं। शब्दार्थ के सिवाय भी कुछ बातें होती हैं जिनसे श्लोकार्थ और श्लोक का आशय समझने में आसानी हो जाती है। उन बातों को जाने बिना बड़ी दिक्कत होती है। कभी-कभी तो चीज उलटे समझी जाती है। एकाध ऐसी भी बातें हैं जिनसे और कुछ न भी हो तो आशय की गंभीरता जरूर मालूम पड़ती है। इसलिए उनका जानना भी जरूरी है। यही सब बातें लिख के और अंत में दो-चार शब्दों में गीता-धर्म का उपसंहार करके यह वक्तव्य पूरा करेंगे। इसीलिए इसमें छोटी-मोटी-छुटी-छुटाई बातों का ही समावेश पाया जाएगा।