था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था
ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़हूर था[1]

हंगामा गर्म कुन[2] जो दिले-नासुबूर[3] था
पैदा हर एक नाला-ए-शोरे-नशूर था[4]

पहुँचा जो आप को तो मैं पहुँचा खुदा के तईं
मालूम अब हुआ कि बहोत मैं भी दूर था

आतिश बुलन्द दिल की न थी वर्ना ऐ कलीम[5]
यक शोला बर्क़े-ख़िरमने-सद[6]कोहे-तूर[7] था

हम ख़ाक में मिले तो मिले लेकिन ऐ सिपहर[8]
उस शोख़ को भी राह पे लाना ज़रूर था

मजलिस[9] में रात एक तेरे परतवे[10] बग़ैर
क्या शम्म क्या पतंग[11]हर एक बे-हज़ूर[12] था

मूनिम[13] के पास क़ाक़िमो-सिंजाब[14] था तो क्या
उस रिन्द की भी रात कटी जोकि ऊर[15] था

कल पाँव एक कासा-ऐ-सर[16] पर जो आ गया
यक-सर वो इस्तख़्वान[17] शिकस्तों[18] चूर था

कहने लगा के देख के चल राह बे-ख़बर
मैं भी कभू[19] किसी का सर-ऐ-पुर-ग़ुरूर[20] था

था वो तो रश्क-ए-हूर-ए-बहिश्ती हमीं[21] में 'मीर'
समझे न हम तो फ़हम[22] का अपने क़सूर था

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