हम जानते तो इश्क न करते किसू के साथ,
ले जाते दिल को खाक में इस आरजू के साथ।

नाजां हो उसके सामने क्या गुल खिला हुआ,
रखता है लुत्फे-नाज भी रू-ए-निकू के साथ।

हंगामे जैसे रहते हैं उस कूचे में सदा,
जाहिर है हश्र होगी ऐसी गलू के साथ।

मजरूह अपनी छाती को बखिया किया बहुत,
सीना गठा है 'मीर' हमारा रफू के साथ.

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