है कलेजा फ़िगार[1] होने को
दामने-लालाज़ार होने को

इश्क़ वो चीज़ है कि जिसमें क़रार[2]
चाहिए बेक़रार होने को

जुस्तजू-ए-क़फ़स[3] है मेरे लिए
ख़ूब समझे शिकार होने को

पीस डाला है आसमाँ ने मुझे
किसकी रह[4] का ग़ुबार होने को

क्या अदा थी वो जाँनिसारी[5] में
थे वो मुझपर निसार[6] होने को

वादा करते हुए न रुक जाओ
है मुझे एतबार[7] होने को

उसने पूछा कि कौन छुपता है
हम छुपे आशकार[8] होने को

हमने ‘इक़बाल’ इश्क़बाज़ी की
पी ये मय[9] होशियार होने को

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