बीच में पर्दा दुई का था जो हायल उठ गया
ऐसा कुछ देखा के दुनिया से मेरा दिल उठ गया
शमा ने रो-रो के काटी रात सूली पर तमाम
शब को जो महफ़िल से तेरी ऐ ज़ेब-ए-महफ़िल उठ गया
मेरी आँखों में समाया उस का ऐसा नूर-ए-हक़
शौक़-ए-नज़्ज़ारा ऐ बद्र-ए-कामिल उठ गया
ऐ ज़फ़र क्या पूछता है बेगुनाह-ओ-बर-गुनह
उठ गया अब जिधर को वास्ते क़ातिल उठ गया