जब कभी दरया में होते साया-अफ़गन आप हैं
फ़िल्स-ए-माही को बताते माह-ए-रौशन आप हैं.
सीते हैं सोज़न से चाक-ए-सीना क्या ऐ चारा-साज़
ख़ार-ए-ग़म सीने में अपने मिस्ल-ए-सोज़न आप हैं.
प्यार से कर के हमाइल ग़ैर की गर्दन में हाथ
मारते तेग़-ए-सितम से मुझ को गर्दन आप हैं.
खींच कर आँखों में अपनी सुरमा-ए-दुम्बाला-दार
करते पैदा सेहर से नर्गिस में सोसन आप हैं.
देख कर सहरा में मुझ को पहले घबराया था क़ैस
फिर जो पहचाना तो बोला हज़रत-ए-मन आप हैं.
जी धड़कता है कहीं तार-ए-रंग-ए-गुल चुभ न जाए
सेज पर फूलों की करते क़स्द-ए-ख़ुफ़तन आप हैं.
क्या मज़ा है तेग़-ए-क़ातिल में के अक्सर सैद-ए-इश्क़
आन कर उस पर रगड़ते अपनी गर्दन आप हैं.
मुझ से तुम क्या पूछते हो कैसे हैं हम क्या कहें
जी ही जाने है के जैसे मशफ़िक़-ए-मन आप हैं.
पुर-ग़ुरूर ओ पुर-तकब्बुर पुर-जफ़ा ओ पुर-सितम
पुर-फ़रेब ओ पुर-दग़ा पुर-मक्र ओ पुर-फ़न आप हैं.
ज़ुल्म-पेशा जु़ल्म-शेवा जु़ल्म-रान ओ ज़ुल्म-दोस्त
दुश्मन-ए-दिल दुश्मन-ए-जाँ दुश्मन-ए-तन आप हैं.
यक्का-ताज ओ नेज़ा-बाज़ ओ अरबदा-जू तुंद-ख़ू
तेग़-ज़न दश्ना-गु़ज़ार ओ नावक-अफ़गन आप हैं.
तस्मा-कश तर्राज़ ओ ग़ारत-गर ताराज-साज़
काफ़िर यग़माई ओ क़ज़ाक़ रह-ज़न आप हैं.
फ़ित्ना-जू बेदाद-गर सफ़्फ़ाक ओ अज़्लम कीना-वर
गर्म-जंग ओ गर्म-क़त्ल ओ गर्म-कुश्तन आप हैं.
बद-मिज़ाज ओ बद-दिमाग़ व बद-शिआर ओ बद-सुलूक
बद-तरीक़ ओ बद-ज़बाँ बद-अहद ओ बद-ज़न आप हैं.
बे-मुरव्वत बे-वफ़ा ना-मेहर-बाँ ना-आशना
मेरे क़ातिल मेरे हासिद मेरे दुश्मन आप हैं.
ऐ ‘ज़फ़र’ क्या पा-ए-क़ातिल के है बोसे की हवस
यूँ जो बिस्मिल हो के सर-गर्म-ए-तपीदन आप हैं.